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सूर्याभिमुख पेशाब जीवन के सौन्दर्य को नष्ट करता है - अथर्ववेद 13-1-56

वेदों में पृथ्वी लोकादि पर  सूर्य को परमात्मा का साक्षात प्रतिनिधि बताया गया है।

इसलिए भी हमको इसका सम्मान करना चाहिए न कि इसके सम्मुख पैशाब करके इसके प्रति असम्मान करके।(उगते सूर्य व अस्त होते सूर्य को हाथ जौड़ते हुये कमसे कम तीन बार गायत्री मंत्र के साथ सूर्य देव का अभिवादन  करना चाहिए।

गायत्री मंत्र का दूसरा नाम सविता मंत्र है। सविता सूर्य का नाम है)

  आयुर्वेद में भी सूर्याभिमुख होकर पेशाब करने से पेशाब की जलन वाला रोग होने का उल्लेख है।

 

 आज से ही स्वयं को सूर्यामुखी पैशाब करने से रोकिये,

परिवारजनों व मित्रो में यह बात समझाइए।

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