
भारतवर्ष एक ऐसा देश है जहाँ हर पर्व और त्यौहार किसी न किसी आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और धार्मिक भावना से जुड़ा हुआ है। इन्हीं पावन पर्वों में से एक है त्रिपुरारि पूर्णिमा, जिसे देव दीपावली या कार्तिक पूर्णिमा भी कहा जाता है। यह दिन भगवान शिव के उस अद्भुत कार्य की स्मृति में मनाया जाता है जब उन्होंने अहंकार, अत्याचार और अधर्म के प्रतीक त्रिपुरासुर का संहार किया था। इसीलिए भगवान शिव को इस दिन त्रिपुरारि कहा गया, जिसका अर्थ है — त्रिपुर नामक असुर का अंत करने वाला।
🌕 त्रिपुरारि पूर्णिमा का अर्थ और नाम की उत्पत्ति
‘त्रिपुरारि’ शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है — ‘त्रिपुर’ और ‘अरी’।
अर्थात् त्रिपुरारि वह है जो त्रिपुर नामक तीन असुरों का शत्रु और संहारक है, अर्थात भगवान शिव।
यह पर्व हर वर्ष कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है। यह दिन हिंदू पंचांग के अनुसार वर्ष का सबसे पवित्र पूर्णिमा दिवस माना गया है।
📖 त्रिपुरासुर की कथा
पुराणों के अनुसार, तारकासुर नामक असुर का वध भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय ने किया था। तारकासुर के तीन पुत्र थे — तारकाक्ष, विद्युन्माली और कमलाक्ष। अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए उन्होंने कठोर तपस्या करके भगवान ब्रह्मा को प्रसन्न किया। ब्रह्मा ने उनसे वरदान माँगने को कहा, तो तीनों ने ऐसा वरदान माँगा कि कोई भी देवता उनका वध न कर सके।
उन्होंने कहा —
“हे प्रभु, हमें तीन अद्भुत नगर दीजिए — एक स्वर्ग में, दूसरा आकाश में और तीसरा पृथ्वी पर। ये नगर हमारे लिए चलायमान हों और हम इन्हें अपने अनुसार संचालित कर सकें। केवल तब हमारा वध संभव हो जब ये तीनों नगर एक सीध में आ जाएँ और कोई एक ही बाण से इनका नाश कर सके।”
ब्रह्मा जी ने वरदान दे दिया। असुरों ने मय दानव से उन तीन नगरों का निर्माण कराया।
इन तीनों को मिलाकर उन्हें त्रिपुर कहा गया और वे तीनों त्रिपुरासुर कहलाए।
⚔️ त्रिपुरासुर का अत्याचार और देवताओं की व्यथा
त्रिपुरासुर तीनों लोकों में अत्याचार करने लगे। उन्होंने स्वर्ग से इंद्र को, पाताल से नागों को और पृथ्वी से ऋषि-मुनियों को निकाल दिया। देवता असहाय होकर भगवान शिव की शरण में पहुँचे और उनसे इस अधर्म का अंत करने की प्रार्थना की।
भगवान शिव ने वचन दिया कि जब समय अनुकूल होगा, तब वे त्रिपुरासुर का संहार करेंगे।
🔱 भगवान शिव द्वारा त्रिपुरासुर का संहार
समय बीता और एक दिन वह घड़ी आ गई जब तीनों नगर — स्वर्ण, रजत और लौह — एक सीध में आ गए। यह दुर्लभ योग कार्तिक पूर्णिमा के दिन बना। तब भगवान शिव ने अपनी विशाल सेना के साथ आक्रमण किया।
कथा के अनुसार —
जैसे ही भगवान शिव ने वह बाण छोड़ा, तीनों नगर एक ही बार में भस्म हो गए। असुरों का अंत हुआ और देवताओं ने प्रसन्न होकर भगवान शिव की स्तुति की। उसी क्षण से भगवान शिव त्रिपुरारि नाम से प्रसिद्ध हुए।
🪔 देव दीपावली और त्रिपुरारि पूर्णिमा का उत्सव
त्रिपुरासुर के विनाश के पश्चात देवताओं ने स्वर्ग में दीप जलाकर आनंद मनाया। इसलिए यह दिन देव दीपावली के नाम से भी प्रसिद्ध हुआ।
मान्यता है कि इस दिन देवता गंगा स्नान करने पृथ्वी पर आते हैं। इसीलिए काशी (वाराणसी) में यह पर्व अत्यंत धूमधाम से मनाया जाता है। गंगा तटों, घाटों और मंदिरों पर हजारों दीप प्रज्वलित किए जाते हैं। यह दृश्य ऐसा लगता है मानो स्वर्ग पृथ्वी पर उतर आया हो।
🕉️ धार्मिक महत्व
🌸 पूजा विधि
दान-पुण्य – गरीबों और जरूरतमंदों को अन्न, वस्त्र या दीप दान करें।
💫 आध्यात्मिक संदेश
त्रिपुरारि पूर्णिमा केवल एक पौराणिक घटना नहीं है, बल्कि यह हमें एक गहरा आध्यात्मिक संदेश देती है। त्रिपुर नामक तीन नगर हमारे भीतर के तीन अहंकारों का प्रतीक हैं —
जब ये तीनों अहंकार एक साथ हमारे जीवन में प्रबल हो जाते हैं, तब मनुष्य अधर्म की ओर अग्रसर होता है। भगवान शिव का एक बाण इन तीनों का नाश करने का प्रतीक है — वह बाण है ज्ञान और विवेक का प्रकाश।
इसलिए त्रिपुरारि पूर्णिमा हमें यह सिखाती है कि भीतर के अहंकारों का नाश कर, आत्मज्ञान के प्रकाश से ही सच्चे अर्थों में जीवन में शांति और विजय प्राप्त की जा सकती है।
त्रिपुरारि पूर्णिमा का पर्व भगवान शिव की उस महिमा का प्रतीक है जिसने संपूर्ण सृष्टि को अधर्म से मुक्ति दिलाई। यह दिन भक्ति, तप, ज्ञान और प्रकाश का प्रतीक है। जब मनुष्य अपने भीतर के त्रिपुर (काम, क्रोध, अहंकार) को नष्ट कर देता है, तभी वह वास्तविक रूप से शिवत्व को प्राप्त करता है।
इस पूर्णिमा पर दीप जलाना केवल बाहरी उजाले का प्रतीक नहीं, बल्कि अपने भीतर के अंधकार को मिटाने का भी संकल्प है।
इसलिए कहा गया है —
“दीपज्योति परब्रह्म, दीपज्योति जनार्दनः।
दीपो हरतु मे पापं, संध्यादीप नमोऽस्तुते॥”
🙏 हर हर महादेव 🙏
त्रिपुरारि पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएँ।