हिंदू धर्मशास्त्रों के अनुसार, चतुर्थी तिथि हर माह आती है, लेकिन माघ माह की कृष्ण और शुक्ल पक्ष की चतुर्थी विशेष रूप से महत्वपूर्ण मानी जाती है। तिल कुंद चतुर्थी को भगवान श्री गणेश की पूजा के लिए समर्पित किया जाता है। इसे विनायकी चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन तिल और कुंद के फूलों से भगवान गणेश की पूजा करने का विशेष महत्व होता है।
तिल कुंद चतुर्थी का महत्व
माघ मास के शुक्ल पक्ष में आने वाली तिल कुंद चतुर्थी के दिन विशेष रूप से भगवान गणेश और चंद्रमा की पूजा की जाती है। माघ माह को हिंदू धर्म में अत्यंत पवित्र माना गया है, और इस दिन को गणेश जयंती के रूप में भी मनाया जाता है। इस दिन व्रत रखने और तिल के सेवन का विशेष महत्व है, जिससे मनुष्य की समस्त इच्छाएँ पूर्ण होती हैं। श्री गणेश को विघ्नहर्ता कहा जाता है, जो भक्तों के सभी कष्टों को हर लेते हैं।
तिल कुंद चतुर्थी व्रत के लाभ
5. सौभाग्य की वृद्धि – श्री गणेश के 108 या 1008 नामों का पाठ करने से जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और शुभता का संचार होता है।
6. संतान की दीर्घायु के लिए व्रत – महिलाएँ अपने पुत्र की लंबी आयु और सुखद भविष्य की कामना के लिए निर्जला व्रत रखती हैं।
7. जीवन में शांति और समृद्धि – इस दिन चंद्रमा की पूजा करने से गृहस्थ जीवन में शांति और समृद्धि बनी रहती है।
8. व्यापार और करियर में उन्नति – इस चतुर्थी पर व्रत करने से व्यवसाय में वृद्धि और जीवन में खुशहाली आती है।
9. दान-पुण्य का महत्व – तिल, गुड़, गर्म कपड़े, मिठाई और कंबल दान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है और जीवन में सकारात्मक बदलाव आते हैं।
तिल कुंद चतुर्थी का व्रत रखने से भक्तों को गणेश जी की विशेष कृपा प्राप्त होती है। यह व्रत न केवल मनोकामनाओं को पूर्ण करता है बल्कि जीवन में सुख, शांति और समृद्धि भी लाता है। अतः इस पावन तिथि पर विधिपूर्वक व्रत एवं पूजन करना अत्यंत शुभ और फलदायी होता है।