अहमदाबाद:
2014 से 2024 तक एक दशक तक चली वडनगर की खुदाई के दौरान, पुरातत्वविदों को जो सबसे चौंकाने वाली खोज मिली, वह थी 37 टेराकोटा के सिक्कों के सांचे (coin moulds)। ये सांचे किसी स्थानीय राजा के नहीं थे, बल्कि इंडो-ग्रीक सम्राट अपोलोडोटस द्वितीय के सिक्कों के थे। सबसे बड़ा आश्चर्य यह था कि ये सांचे वडनगर के 2500 वर्षों के निरंतर इतिहास के 5वीं से 10वीं सदी ईस्वी के कालखंड से जुड़े हैं, जबकि अपोलोडोटस द्वितीय के असली सिक्के 1वीं से 2वीं सदी ईस्वी में ढाले गए थे।
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के अधीक्षण पुरातत्वविद डॉ. अभिजीत अम्बेकर, जिन्होंने खुदाई में 10 वर्षों तक काम किया, ने बताया कि गुजरात, अरब सागर और हिंद महासागर के लिए एक महत्वपूर्ण व्यापारिक केंद्र रहा है, और यहाँ से इंडो-ग्रीक चांदी के सिक्के (Drachma) बड़ी मात्रा में मिले हैं। लेकिन सिक्कों के सांचे मिलना एक दुर्लभ घटना है।
उन्होंने बताया कि ये सांचे “कास्ट मिंटिंग” पद्धति का संकेत देते हैं, जिसमें सिक्कों को ढलाई से बनाया जाता था, जबकि पारंपरिक सिक्के “डाई-स्ट्रक” पद्धति से बनते थे। यह भी संभव है कि अपोलोडोटस द्वितीय की मृत्यु के तीन शताब्दी बाद तक भी उनका सिक्का व्यापार में लोकप्रिय रहा हो – इसलिए उसकी नकल में नए सिक्के बनाए गए हों। उस काल में भरुच एक बड़ा बंदरगाह था।
यह खोज वडनगर को एक महत्वपूर्ण व्यापारिक केंद्र के रूप में स्थापित करती है।
इस अध्ययन को डेक्कन कॉलेज पोस्टग्रेजुएट एंड रिसर्च इंस्टीट्यूट के अभिजीत डांडेकर के साथ मिलकर किया गया।
यह अध्ययन ऑस्ट्रेलिया के डार्विन में आयोजित 10वें वर्ल्ड आर्कियोलॉजिकल कांग्रेस में प्रस्तुत किया गया, जहाँ वडनगर से संबंधित कुल चार शोधों को पेश किया गया।
अन्य प्रस्तुतियों में शामिल थे:
ASI की सहायक पुरातत्वविद अनन्या चक्रवर्ती और अन्य शोधकर्ताओं ने भी इन प्रस्तुतियों में भाग लिया।
वडनगर से इंडो-पैसिफिक मनके, शंख की चूड़ियाँ, टॉरपीडो जार जैसे अनेक कलात्मक अवशेष प्राप्त हुए हैं, जो इसे एक उत्पादन केंद्र और स्थलपत्तन (Land Port) के रूप में स्थापित करते हैं।
नगर नियोजन (town planning) के अध्ययन में वडनगर के विभिन्न विकास चरणों – क्षत्रप काल से ब्रिटिश काल तक – को प्रस्तुत किया गया, और यह भी दिखाया गया कि कैसे इस नगर ने सूखे की विकट परिस्थितियों में जल निकायों को जोड़कर और आहार प्रणाली को पूरी तरह बदलकर खुद को संभाला।
इस शोध का निष्कर्ष:
वडनगर केवल एक पुरातन नगर नहीं, बल्कि 2500 वर्षों तक जीवित, जुड़ा हुआ और लचीला नगर रहा है, जिसने व्यापार, वास्तुकला, संस्कृति और संकट-प्रबंधन में अद्वितीय उदाहरण पेश किए हैं।