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चन्द्र ग्रह: एक विस्तृत शास्त्रीय विवेचन

ज्योतिष शास्त्र में चन्द्रमा को ‘मन’ और ‘माता’ का कारक माना गया है। “चन्द्रमा मनसो जातः” (पुरुष सूक्त) – अर्थात चन्द्रमा विराट पुरुष के मन से उत्पन्न हुआ है। जहाँ सूर्य आत्मा है, वहाँ चन्द्रमा मन है। सूर्य राजा है, तो चन्द्रमा रानी (राजमाता) है। पृथ्वी के सबसे निकट होने के कारण, मानव जीवन, वनस्पति और ज्वारभाटा पर इसका सर्वाधिक प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है। इसे सोम, शशाङ्क, निशाकर और ओषधीश आदि नामों से भी जाना जाता है।

१. पौराणिक एवं शास्त्रीय स्वरूप

पौराणिक कथा: पुराणों के अनुसार, चन्द्रमा महर्षि अत्रि और अनुसूया के पुत्र हैं। एक अन्य मत के अनुसार, इनका प्रादुर्भाव क्षीरसागर से हुआ, इसलिए इन्हें लक्ष्मी जी का भाई भी माना जाता है। भगवान शिव ने इन्हें अपने मस्तक पर धारण किया है, जिससे वे ‘चन्द्रशेखर’ कहलाते हैं।

 

शास्त्रीय स्वरूप (बृहत्पाराशरहोराशास्त्रम्): महर्षि पराशर ने चन्द्रमा के स्वरूप का वर्णन इस प्रकार किया है— बहुवातकफः प्राज्ञश्चन्द्रो वृत्ततनुर्द्विज। शुभदृङ्मधुवाक्यश्च चञ्चलो मदनातुरः॥

 

इस श्लोक का अर्थ है:

 

बहुवातकफः: चन्द्रमा वात और कफ प्रकृति का ग्रह है।

 

प्राज्ञः: यह अत्यन्त बुद्धिमान और विद्वान है।

 

वृत्ततनुः: इसका शरीर गोल है।

 

शुभदृक्: इसकी दृष्टि शुभ और सौम्य है।

 

मधुवाक्यश्च: इसकी वाणी मधुर है।

 

चञ्चलो: यह स्वभाव से अस्थिर और चञ्चल है।

 

मदनातुरः: यह कामुक और श्रृंगार प्रिय है।

 

अन्य ग्रन्थों (जैसे जातकपारिजात) में इसे ‘गौरगात्रो’ (गोरे रंग का) और ‘सत्वगुणी’ कहा गया है।

 

२. चन्द्रमा का कारकत्व (अधिकार क्षेत्र)

फलदीपिका  और अन्य संहिताओं के अनुसार चन्द्रमा निम्नलिखित विषयों का नैसर्गिक कारक है:

 

१. मन: मानसिक स्थिति, भावनाएं, और विचार शक्ति।

२. माता: जन्मकुण्डली में माता का सुख और स्वास्थ्य।

३. जल: सभी प्रकार के तरल पदार्थ, समुद्र, नदी, और जल यात्रा।

४. रक्त और द्रव: शरीर में रक्त का तरल भाग और जल तत्व।

५. श्वेत वस्तुएं: चांदी, मोती, चावल, नमक, और सफेद वस्त्र।

६. सौन्दर्य: मुख की कान्ति और आकर्षण।

७. प्रसन्नता: मनःप्रसाद (मानसिक शान्ति)।

८. स्त्री वर्ग: स्त्रियों से लाभ और सम्बन्ध।

९. वनस्पति: औषधियों और रसों का स्वामी।

१०. बायीं आँख: नेत्र ज्योति (विशेषकर बायीं)।

 

३. राशि, बल एवं दृष्टि विचार

स्वामित्व (राशि): चन्द्रमा कर्क राशि का स्वामी है।

 

उच्च राशि: चन्द्रमा वृषभ राशि में ३ अंश तक परम उच्च का होता है। यहाँ मन स्थिर और प्रसन्न रहता है।

 

नीच राशि: वृश्चिक राशि में ३ अंश तक यह परम नीच का होता है। यहाँ मन विचलित और दुखी रहता है।

 

मूलत्रिकोण: वृषभ राशि में ३ अंश के बाद ३० अंश तक यह मूलत्रिकोण में माना जाता है।

 

मित्र ग्रह: सूर्य और बुध।

 

शत्रु ग्रह: इसका कोई शत्रु नहीं है, किन्तु कुछ ग्रह (जैसे राहु-केतु, शनि) इसे शत्रु मानते हैं।

 

सम ग्रह: मङ्गल, बृहस्पति, शुक्र, शनि।

 

दिग्बल: चन्द्रमा चतुर्थ भाव (उत्तर दिशा) में दिग्बली होता है।

 

पक्ष बल: चन्द्रमा के पास एक विशेष बल होता है—’पक्ष बल’।

 

शुक्ल पक्ष का चन्द्रमा (विशेषकर सप्तमी से पूर्णिमा तक) शुभ और बली होता है।

 

कृष्ण पक्ष का चन्द्रमा (विशेषकर अष्टमी से अमावस्या तक) क्षीण और पाप फलप्रद (क्रूर) माना जाता है।

 

दृष्टि विचार: चन्द्रमा अपने स्थान से केवल सप्तम भाव (७) को पूर्ण दृष्टि से देखता है। शुभ चन्द्र की दृष्टि अमृततुल्य होती है।

 

४. द्वादश भावों में चन्द्रमा का फल (भावफल)

चमत्कारचिन्तामणि और मानसागरी  के आधार पर द्वादश भावों में चन्द्रमा का विस्तृत फल:

 

१. प्रथम भाव (लग्न) में चन्द्रमा: श्लोक: विधुर्गोकुलीराजगः सन् वपुस्थो… लग्नस्थ चन्द्रमा जातक को सुन्दर, ऐश्वर्यवान और सुखी बनाता है। यदि चन्द्रमा बली (पूर्ण) हो, तो जातक का शरीर पुष्ट और मन प्रसन्न रहता है। वह भावुक और संवेदनशील होता है। यदि क्षीण या पाप पीड़ित हो, तो जातक अस्थिर मति, मूक या बधिर (कम सुनने वाला) हो सकता है। उसे कफ जनित रोग हो सकते हैं।

 

२. द्वितीय भाव (धन) में चन्द्रमा: श्लोक: हिमांशौ वसुस्थानगे धान्यलाभः… धन भाव में चन्द्रमा जातक को मृदुभाषी और धनवान बनाता है। उसका चेहरा आकर्षक होता है। उसे परिवार का सुख मिलता है। धन की स्थिति घटती-बढ़ती रहती है (चन्द्रमा की कलाओं की तरह)। जातक को विद्या और कला में रुचि होती है।

 

३. तृतीय भाव (सहज) में चन्द्रमा: श्लोक: विधौ विक्रमे विक्रमेणैति वित्तं… यहाँ चन्द्रमा जातक को पराक्रमी बनाता है, किन्तु वह अपनी शक्ति का प्रयोग शान्तिपूर्ण कार्यों में करता है। भाइयों से सुख मिलता है। वह यात्राओं का शौकीन होता है। जातक का स्वभाव चञ्चल होता है और वह काव्य या लेखन में रुचि ले सकता है।

 

४. चतुर्थ भाव (सुख) में सूर्य: श्लोक: यदा बन्धुग बान्धवैराप्तजन्मा… यह चन्द्रमा का अपना घर (कालपुरुष की कुण्डली में कर्क राशि) और दिग्बल स्थान है। जातक को माता, वाहन, घर और भूमि का पूर्ण सुख मिलता है। वह दयालु और बड़े दिल वाला होता है। उसे जल वाले स्थानों (नदी, समुद्र) के पास रहना पसंद होता है। मन सदा प्रसन्न रहता है।

 

५. पञ्चम भाव (सुत) में चन्द्रमा: श्लोक: यदा पञ्चमे यस्य नक्षत्रनाथो… यह स्थिति बुद्धि और मन्त्रणा शक्ति के लिए उत्तम है। जातक बुद्धिमान और सात्त्विक होता है। उसे कन्या सन्तान अधिक हो सकती है। सट्टे या जुए से धन लाभ की सम्भावना रहती है, परन्तु मन अस्थिर होने के कारण निर्णय बदलने की आदत होती है। वह मन्त्र-सिद्ध हो सकता है।

 

६. षष्ठ भाव (शत्रु) में चन्द्रमा: श्लोक: रिपौ राजते विग्रहेणाऽपि राजा… छठे घर में चन्द्रमा (विशेषकर क्षीण) ‘बालारिष्ट’ का कारण बनता है। जातक का स्वास्थ्य कमजोर रहता है (कफ, श्वास रोग)। उसे शत्रुओं और ननिहाल पक्ष से कष्ट मिल सकता है। पाचक अग्नि मन्द रहती है। परन्तु यदि चन्द्रमा बली हो, तो जातक शत्रुओं को शान्त कर देता है।

 

७. सप्तम भाव (जाया) में चन्द्रमा: श्लोक: ददेद् दारशं सप्तमे शीतरश्मिः… सप्तमस्थ चन्द्रमा जातक को अत्यन्त सुन्दर और कामुक जीवनसाथी देता है। जातक स्वयं भी विपरीत लिंग के प्रति आकर्षित रहता है। विवाह से भाग्योदय होता है। वह व्यापार में सफल होता है और विदेश यात्राएं करता है। यदि चन्द्रमा क्षीण हो, तो पत्नी रोगी हो सकती है।

 

८. अष्टम भाव (आयु) में चन्द्रमा: श्लोक: सभा विद्यते भैषजी तस्यगेहे… अष्टम चन्द्रमा को “मृत्यु तुल्य कष्ट” देने वाला माना गया है, विशेषकर बाल्यकाल में। जातक को जल से भय, जलोदर रोग या मानसिक तनाव रहता है। यह स्थिति आयु के लिए बाधक है। मन में अज्ञात भय और चिन्ता बनी रहती है। यदि शुभ ग्रहों की दृष्टि हो, तो जातक की आयु लम्बी होती है।

 

९. नवम भाव (भाग्य) में चन्द्रमा: श्लोक: तपोभावगस्तारकेशो जनस्य… यह अत्यन्त शुभ स्थिति है। जातक भाग्यशाली, धार्मिक, और तीर्थयात्रा करने वाला होता है। वह अपने पिता का भक्त होता है। समाज में उसे प्रतिष्ठा मिलती है। वह दानी और परोपकारी होता है। मन धर्म-कर्म में लगता है।

 

१०. दशम भाव (कर्म) में चन्द्रमा: श्लोक: सुखं बान्धवेभ्यः खगे धर्मकर्मा… दशमस्थ चन्द्रमा जातक को लोकप्रिय नेता या व्यापारी बनाता है। वह बार-बार व्यवसाय बदल सकता है। उसे जनता का सहयोग मिलता है। वह शीतल स्वभाव का और माता के समान प्रजा का पालन करने वाला होता है। उसे राज्याश्रय (सरकारी लाभ) प्राप्त होता है।

 

११. एकादश भाव (लाभ) में चन्द्रमा: श्लोक: लभद् भूमिपादिदुना लभगेन… ग्यारहवें घर में चन्द्रमा सहज धन लाभ देता है। जातक की इच्छाएं सरलता से पूर्ण होती हैं। उसे पुत्र सुख और मित्रों का सहयोग मिलता है। वह दीर्घायु और धनी होता है। अनेक स्त्रियों से लाभ हो सकता है।

 

१२. द्वादश भाव (व्यय) में चन्द्रमा: श्लोक: शशी द्वादशे शत्रुनेत्रादिचिन्ता… बारहवें घर में चन्द्रमा नेत्र रोग और कफ विकार देता है। जातक का धन परोपकार या व्यर्थ के कार्यों में खर्च होता है। वह एकान्तप्रिय हो सकता है। उसे मानसिक क्लेश और अनिद्रा की शिकायत हो सकती है। यह स्थिति मोक्ष के लिए उत्तम मानी जाती है।

 

५. चन्द्रमा जनित विशिष्ट योग

चन्द्रमा की गति और अन्य ग्रहों से सम्बन्ध के आधार पर ज्योतिष में सर्वाधिक योग बनते हैं:

 

१. गजकेसरी योग: यदि चन्द्रमा से केन्द्र (१, ४, ७, १०) में बृहस्पति हो। फल: “गजकेसरीसमायुक्तो जातो यो नृपनन्दनः।” जातक तेजस्वी, धनवान, गुणी और राजा के समान वैभवशाली होता है। वह अपने शत्रुओं को वैसे ही परास्त करता है जैसे सिंह (केसरी) हाथी (गज) को।

 

२. सुनफा, अनफा और दुरुधरा योग:

 

सुनफा: यदि चन्द्रमा से द्वितीय भाव में (सूर्य को छोड़कर) कोई ग्रह हो। फल: जातक स्व-अर्जित धन का भोग करने वाला और राजा होता है।

 

अनफा: यदि चन्द्रमा से द्वादश भाव में (सूर्य को छोड़कर) कोई ग्रह हो। फल: जातक निरोगी, शीलवान और प्रसिद्ध होता है।

 

दुरुधरा: यदि चन्द्रमा के दोनों ओर (द्वितीय और द्वादश) ग्रह हों। फल: जातक सुखी, दानी और धनी होता है।

 

३. केमद्रुम योग:  यदि चन्द्रमा के आगे और पीछे (द्वितीय और द्वादश) कोई ग्रह न हो और केन्द्र खाली हो। फल: यह एक दरिद्र योग है। जातक राजा के कुल में जन्म लेकर भी दीन, दुखी और दूसरों पर आश्रित रहता है।

 

४. चन्द्र-मङ्गल योग:  यदि चन्द्रमा और मङ्गल की युति हो। फल: जातक धनी होता है, परन्तु धन कमाने के लिए अनुचित साधन भी अपना सकता है। वह माता के लिए कष्टकारी हो सकता है। मन में क्रोध और आवेश रहता है।

 

५. अधियोग:  यदि चन्द्रमा से ६, ७, और ८ भावों में शुभ ग्रह (बुध, गुरु, शुक्र) हों। फल: जातक सेनापति, मन्त्री या राजा होता है और दीर्घायु प्राप्त करता है।

 

६. अमावस्या दोष: यदि चन्द्रमा सूर्य के अत्यन्त निकट हो (अस्त), तो इसे अमावस्या दोष कहते हैं। इससे मानसिक दुर्बलता, माता को कष्ट और जीवन में संघर्ष रहता है।

 

६. चन्द्रमा की दशा एवं गोचर

विंशोत्तरी महादशा: चन्द्रमा की महादशा १० वर्ष की होती है।

 

शुभ चन्द्र की दशा: इसमें जातक को मानसिक शान्ति, धन लाभ, विवाह, कन्या रत्न की प्राप्ति, श्वेत वस्तुओं का लाभ और माता का सुख मिलता है।

 

अशुभ/क्षीण चन्द्र की दशा: इसमें मानसिक तनाव, माता को कष्ट, जल से भय, कफ रोग, और धन हानि होती है। मन उदास और भयभीत रहता है।

 

गोचर (Transit): चन्द्रमा सबसे तीव्रगामी ग्रह है, यह एक राशि में सवा दो दिन (२.२५ दिन) रहता है।

 

शुभ गोचर: १, ३, ६, ७, १०, ११ भावों में चन्द्रमा का गोचर शुभ फल देता है।

 

अशुभ गोचर: ४, ८, १२ भावों में चन्द्रमा का गोचर मानसिक कष्ट और शारीरिक पीड़ा देता है।

 

७. शान्ति के उपाय (शास्त्रीय उपचार)

यदि कुण्डली में चन्द्रमा नीच (वृश्चिक), क्षीण, या पाप ग्रहों (शनि, राहु, केतु) से पीड़ित हो, तो निम्नलिखित उपाय करने चाहिए:

 

१. मन्त्र उपासना: सोमवार को या पूर्णिमा को चन्द्रमा के वैदिक या बीज मन्त्र का जप करें।

 

वैदिक मन्त्र: ॐ इमं देवा असपत्नं सुवध्वं महते क्षत्राय महते ज्यैष्ठ्याय महते जानराज्याय इन्द्रस्येन्द्रियाय।

 

बीज मन्त्र: ॐ श्रां श्रीं श्रौं सः चन्द्रमसे नमः।

 

जप संख्या: ११,००० (कलयुग में ४४,०००)।

 

२. दान: सोमवार के दिन चावल, चीनी, दूध, चांदी, सफेद वस्त्र, शंख, और कर्पूर का दान किसी सुपात्र ब्राह्मण को करना चाहिए।  श्लोक: तण्डुलं वंशपात्रस्थं मुक्ता रौप्यं सितांशुकम्।

 

३. रत्न धारण: चन्द्रमा का रत्न मोती (Pearl) है।

 

विधि: २, ४ या ६ रत्ती का मोती चांदी की अंगूठी में कनिष्ठा अंगुली में सोमवार की शाम को धारण करें।

 

सावधानी: मोती तभी पहनें जब चन्द्रमा कारक हो (जैसे कर्क, वृश्चिक, मीन लग्न में)। मानसिक रोगियों को मोती लाभ देता है।

 

४. देवता उपासना: चन्द्रमा के अधिदेवता भगवान शिव और प्रत्यधिदेवता माँ गौरी हैं।

 

भगवान शिव का जलाभिषेक करें। ‘ॐ नमः शिवाय’ का जप परम औषधि है।

 

सोमवार का व्रत रखें।

 

५. अन्य टोटके:

 

माता की सेवा करें और उनका आशीर्वाद लें।

 

चांदी के गिलास में पानी पिएं।

 

रात्रि में दूध का सेवन न करें (यदि चन्द्रमा पीड़ित हो)।

 

पूर्णिमा के दिन चन्द्रमा को अर्घ्य दें।

 

चन्द्रमा ‘मन’ है और मन ही मनुष्य के बन्धन और मोक्ष का कारण है (मन एव मनुष्याणां कारणं बन्धमोक्षयोः)। यदि कुण्डली में चन्द्रमा बली है, तो व्यक्ति विषम परिस्थितियों में भी मानसिक सन्तुलन नहीं खोता। यदि चन्द्रमा कमजोर है, तो राजयोग भी फलित नहीं हो पाते क्योंकि व्यक्ति मानसिक रूप से उनका भोग करने में असमर्थ होता है। अतः सुखी जीवन के लिए चन्द्रमा का अनुकूल होना अनिवार्य है। भगवान शिव की शरण में जाने से चन्द्रमा के समस्त दोष समाप्त हो जाते हैं।

कुंडली में नीच चंद्रमा का गहन रहस्य: छठे घर आगे की रहस्यमयी ऊर्जा और दृष्टियों का अनछुआ शोध

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