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सभी रूपों में दिव्यता का सार

जिस प्रकार लोहा अपने रूप और कार्य के अनुसार चाकू, हल, बर्तन, पुल या जहाज़ बन जाता है — और फिर उसे “लोहा” नहीं, बल्कि उसके उपयोग से पहचाना जाता है…

या जैसे सोना सिक्का, कंगन या मंदिर का मुकुट बनकर हर बार नया नाम और उद्देश्य पाता है…

उसी प्रकार परमपिता परमेश्वर, सर्वोच्च सत्ता, सृष्टि के हर कण में — विशालतम आकाशगंगाओं से लेकर सूक्ष्मतम परमाणुओं तक — विविध रूपों में प्रकट होते हैं।

आधुनिक विज्ञान कहता है कि हर वस्तु मूलतः एक जैसे कणों से बनी है — प्रोटॉन, न्यूट्रॉन, इलेक्ट्रॉन, और इनसे भी गहरे स्तर पर क्वार्क्स, बोसॉन्स, और वह रहस्यमयी हिग्स बोसॉन, जिसे कभी-कभी “गॉड पार्टिकल” भी कहा जाता है।

क्या यह आश्चर्यजनक नहीं है? चाहे वह पर्वत हो, वृक्ष, मनुष्य या तारा — मूल रूप में सब एक ही दिव्य तत्व से बने हैं।

जिस तरह पदार्थ अपने रूप और नाम बदलता है परंतु तत्व वही रहता है, उसी प्रकार ईश्वर भी अनेकों नामों, रूपों और भूमिकाओं में प्रकट होते हैं — परंतु उनका मूल एक ही है।

🕉 एक सत्य, अनेक रूपEk Satya, Anek Roop
ईश्वर को केवल ऊपर नहीं, अपने भीतर और चारों ओर भी पहचानिए।

हरि ॐ

 

अर्जुन ने केवल एक निर्णय लिया था,

 

   “श्री कृष्ण चाहिए”

 

आगे के सारे निर्णय फिर श्री कृष्ण ने स्वयं कर दिए,

 

आपका पहला निर्णय ही सबसे महत्वपूर्ण है..!

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