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अष्टम भाव कुंडली का सबसे अधिक अनिष्टप्रद भाव माना जाता है।

यह भाव आयु, मृत्यु, आकस्मिक घटना, पूर्व जन्म के पाप कर्म, गुप्त रोग, गुप्त विद्या एवं अध्यात्म का होता है और मोक्ष त्रिकोण में गिना जाता है। अष्टमेश कुंडली के बारह भावों में से जिस भी भाव में बैठता है, प्रायः उस भाव के फल की हानि करता है।

कुंडली में चतुर्थ भाव घर, वाहन, माता, सुख, मित्र और भू-सम्पत्ति का भाव होता है।अष्टमेश चतुर्थ भाव में बैठकर इस भाव के नैसर्गिक कारकत्व की हानि करता है क्योंकि सुख के भाव में दुःख और पीड़ा के भाव के स्वामी का बैठना अच्छा नहीं होता। इसके मिले-जुले फल इंसान को प्राप्त होते हैं।चतुर्थ भाव प्रापर्टी और रियल एस्टेट से संबंधित होता है और अष्टम भाव पैतृक सम्पत्ति से संबंधित होता है।यदि अष्टमेश चतुर्थ भाव में शुभ स्थिति में हो तो इंसान को उत्तम पैतृक सम्पत्ति प्राप्त होती है लेकिन वह इस सम्पत्ति से सुख प्राप्त कर पाएगा या नहीं,इसमें संशय रहता है। इंसान को घर-परिवार का सुख भी नहीं मिलता और वह विभिन्न कारणों से घर से दूर रहता है या एक स्थान से दूसरे स्थान पर भटकता रह सकता है।

इंसान का घरेलू जीवन भी कलह-क्लेश और झगड़े से पूर्ण होता है वैवाहिक जीवन खुशहाल नहीं रहता। उसका मन उद्विग्न और अशांत रहता है तथा उसे मानसिक शांति नहीं प्राप्त होती।यह स्थिति माता के लिए भी कष्टकारक होगी और अष्टमेश के चतुर्थ में होने से इंसान मातृसुख से वंचित रहेगा। या तो वह माता से रहित होगा या माता रोगिणी होगी। इंसान की आर्थिक स्थिति भी अच्छी नहीं होगी और वह मित्रहीन होगा अर्थात् उसके मित्र नहीं होंगे।अष्टमेश की यह स्थिति जमीन-जायदाद और वाहन के लिए भी अच्छी नहीं होगी।

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