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श्री सरस्वती अष्टकम्

श्रीसरस्वत्यष्टकम् ॥

अमला विश्ववन्द्या सा कमलाकरमालिनी । विमलाभ्रनिभा वोऽव्यात्कमला या सरस्वती ॥ १ ॥

 

वार्णसंस्थाङ्गरूपा या स्वर्णरत्नविभूषिता । निर्णया भारति श्वेतवर्णा वोऽव्यात्सरस्वती ॥ २॥

 

वरदाभयरुद्राक्षवरपुस्तकधारिणी । सरसा सा सरोजस्था सारा वोऽव्यात्सरास्वती ॥ ३ ॥

सुन्दरी सुमुखी पद्ममन्दिरा मधुरा च सा । कुन्दभासा सदा वोऽव्याद्वन्दिता या सरस्वती ॥ ४॥

 

रुद्राक्षलिपिता कुम्भमुद्राधृतकराम्बुजा ।

 भद्रार्थदायिनी साव्याद्भद्राब्जाक्षी सरस्वती ॥ ५॥

 

रक्तकौशेयरत्नाढ्या व्यक्तभाषणभूषणा । भक्तहृत्पद्मसंस्था सा शक्ता वोऽव्यात्सरस्वती ॥ ६ ॥

चतुर्मुखस्य जाया या चतुर्वेदस्वरूपिणी । चतुर्भुजा च सा वोऽव्याच्चतुर्वर्गा सरस्वती ॥ ७ ॥

 

सर्वलोकप्रपूज्या या पर्वचन्द्रनिभानना । सर्वजिह्वाग्रसंस्था सा सदा वोऽव्यात्सरस्वती ॥ ८॥

 

सरस्वत्यष्टकं नित्यं सकृत्प्रातर्जपेन्नरः । अज्ञैर्विमुच्यते सोऽयं प्राज्ञैरिष्टश्च लभ्यते ॥ ९॥

 

। इति श्रीसरस्वत्यष्टकं समाप्तम् ।

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