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21 दूर्वाओं को श्रीगणेश को अर्पित करने के आध्यात्मिक रहस्य

गणों के अधिपति गणपति।
हिंदू धर्मशास्त्रानुसार किसी भी कार्य की शुरुआत में गणपति की पूजा की जाती है।
गणपति विघ्नहर्ता हैं।
गणपति को दूर्वा की जोड़ी बहुत प्रिय है।
इसी कारण गणपति प्रसन्न होते हैं।
21 दूर्वाओं की एक विशेष जोड़ी गणपति को अर्पित की जाती है।

गणपति के सिर पर दूर्वा रखने की एक कथा भी प्रचलित है।
ऋषि-मुनी और देवताओं को अनलासूर नामक राक्षस ने परेशान करना शुरू कर दिया था।
‘अनल’ का अर्थ है अग्नि।
देवताओं की प्रार्थना पर गणेशजी ने उस असुर को निगल लिया।
इसके कारण गणपति के पेट में जलन होने लगी।
तब 88 सहस्र मुनियों ने प्रत्येक 21 दूर्वाओं की जोड़ी गणपति के सिर पर रखी।
और कश्यप ऋषियों ने गणपति को 21 दूर्वाओं की ये जोड़ी खाने को दी।
पर अथक प्रयास के बावजूद गणपति की पेट की जलन कम नहीं हुई।
तब गणपति ने कहा कि जो कोई भी मुझे दूर्वा अर्पित करेगा, उसे हजारों यज्ञ, व्रत, दान और तीर्थयात्रा करने का पुण्य मिलेगा।

यही कारण है कि गणपति को दूर्वा अर्पित की जाती है।

दूर्वा एक औषधीय वनस्पति है।
पेट की जलन और अन्य विकारों में यह लाभकारी है।
मानसिक शांति और तनाव मुक्ति के लिए भी दूर्वा फायदेमंद है।
कर्करोग के मरीजों पर भी दूर्वा लाभकारी पाई गई है।

🌿 प्रस्तावना

श्रीगणेश को 21 दूर्वा अर्पित करना एक अत्यंत प्रसिद्ध और प्रभावशाली उपासना है।
यह केवल एक परंपरागत कर्मकांड नहीं है, बल्कि इसके पीछे गहरा आध्यात्मिक अर्थ, सूक्ष्मदेह शुद्धि और मन की शांति का वैज्ञानिक मार्ग है।
इस लेख में हम जानेंगे 21 दूर्वाओं का रहस्य, उनके प्रतीकात्मक अर्थ और साधक पर उनका प्रभाव।

🌺 दूर्वा का अर्थ

‘दूर्वा’ शब्द का अर्थ है —
दुःख को दूर करने वाली वनस्पति”
यह एक सामान्य तृण होते हुए भी अनंत शक्ति की वाहक है।
यह चाहे कितनी भी बार काटी जाए, फिर भी उग आती है।
दूर्वा पुनर्जन्म, पुनरुत्थान और अजेयता का प्रतीक है।

🔱 गणपति को दूर्वा क्यों प्रिय हैं?

वेदों के अनुसार, दूर्वा पृथ्वी तत्व का प्रतीक है।
गणपति मूलाधार चक्र के अधिपति हैं, इसलिए दूर्वा और गणपति का संबंध मूल प्रकृति (बीजशक्ति) से जुड़ा है।

शास्त्र में कहा गया है:
दुर्वांकुरैस्तु यः पूज्यः शतं वर्षाणि तिष्ठति।”
(जो गणपति को दूर्वा अर्पित करता है, उसका जीवन शतायु होता है।)

21 दूर्वाओं के आध्यात्मिक अर्थ (सारांश)

दूर्वा क्रमांक

प्रतीक

1

एकाग्रता – मन को एकत्रित करना

2

द्वैत निवृत्ति – सुख-दुःख से परे जाना

3

त्रिगुण शमन – सत्त्व, रज, तम का संतुलन

4

चतुर्वेद पूजन – ज्ञान प्राप्ति की दिशा

5

पंचतत्त्व साक्षात्कार – पृथ्वी, जल, तेज, वायु, आकाश का संतुलन

6

षड्चक्र जागृति – मूलाधार से आज्ञा चक्र तक ऊर्जा प्रवाह

7

सप्तधातु शुद्धि – शरीर के सात धातुओं की निर्मलता

8

अष्टदिशा रक्षण – जीवन में सुरक्षा

9

नवग्रह शांति – ग्रहदोष निवारण

10

दशदिक्बंधन निर्मूलन – दिशाओं की नकारात्मक ऊर्जा शमन

11

एकादश रुद्र तत्त्व प्रबोधन – रुद्रतेज जागृत करना

12

द्वादश आदित्य तेज जागरण

13

त्रयोदशी – मृत्यु तत्व पर विजय

14

चतुर्दशी – भय पर विजय

15

पूर्णिमा – समृद्धि और शांति प्राप्ति

16

सोडस संस्कार जागृति – जीवन के महत्वपूर्ण संस्कारों की जागरूकता

17

सप्तर्षि स्मरण – ऋषिमार्ग की स्मृति

18

अष्टसिद्धियों की प्राप्ति

19

नवविधा भक्ति का अभ्यास

20

विश्वरूप दर्शन की पात्रता

21

पूर्ण आत्मसमर्पण – “त्वमेव सर्वं” भाव की पूर्ति

🔱 आध्यात्मिक प्रभाव

21 दूर्वा अर्पित करते समय साधक के जप, ध्यान और मंत्रोच्चार से ऊर्जा केंद्रों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
विशेष रूप से, यह मूलाधार से सहस्रार चक्र तक शुद्धि करता है।

मंत्र:
गं गणपतये नमः दुर्वांकुरान् समर्पयामि।”
इस मंत्र के साथ प्रत्येक दूर्वा अर्पित करने से यह श्रद्धा की वाहिका बन जाती है।

🙏 निष्कर्ष

दूर्वा केवल तृण नहीं है, बल्कि यह भक्ति का मूलतत्व है।
21 दूर्वा 21 भावस्थितियों, 21 शरीर केंद्रों की शुद्धि और 21 आत्मिक पायदानों का प्रतीक हैं।
जब श्रद्धा, मंत्र और ध्यान का मेल इन 21 दूर्वाओं में होता है,
तब साधक श्रीगणेश को ‘सिद्धिदाता’ रूप में अनुभव करता है।

समर्पण:
21 दूर्वा = ईश्वर को अर्पित 21 मौन प्रार्थनाएँ
और श्रीगणेश इन सभी प्रार्थनाओं का उत्तर देते हैं:
विघ्न नहीं, विजयी हो।”

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