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श्वेतार्क महागणपति श्वेतार्क गणपति का महत्व और प्रयोग

 

लेकिन आप यकीन माने मुझे आज तक इस बात की बहुत ग्लानि है जब तक श्वेतार्क गणपति की प्रतिमा हमारे घर में स्थापित रही उसका प्रभाव ये था कि किसी भी माह मुझे आर्थिक तंगी महसूस नहीं हुई धन का आवगमन कहाँ से होता था ये भी पता नहीं चलता था और घर में जैसे साक्षात अन्नपूर्णा का वास था मानसिक शान्ति पूर्ण रूप से थी-

 

जिसके भी घर में श्वेतार्क गणपति की इस प्रतिमा की स्थापना होगीसच माने उसके घर में धन-वैभव की कभी कमी नहीं होती और सुख-शान्ति का निवास होता है मुझे आज तक इस बात का अफ़सोस है कि प्रतिष्ठापित प्रतिमा जल विलय हो गई मुझे शायद उतने ही दिन श्वेतार्क गणपति की आराधना का फल मिलना था और फिर अचानक ही वहां से मेरा तबादला हो गया-

 

श्वेतार्क महिमा(Svetark glory)-

 

शास्त्रों में श्वेतार्क के बारे में कहा गया है “जहां कहीं भी यह पौधा अपने आप उग आता है उसके आस-पास पुराना धन गड़ा होता है”जिस घर में श्वेतार्क की जड़ रहेगी वहां से दरिद्रता स्वयं पलायन कर जाएगी-इस प्रकार मदार का यह पौधा मनुष्य के लिए देव कृपा,रक्षक एवं समृद्धिदाता भी है-

 

सफेद मदार की जड़ में गणेशजी का वास होता है कभी-कभी इसकी जड़ गणशेजी की आकृति ले लेती है इसलिए सफेद मदार की जड़ कहीं से भी प्राप्त करें और उसकी श्रीगणेश की प्रतिमा बनवा लें-उस पर लाल सिंदूर का लेप करके उसे लाल वस्त्र पर स्थापित करें-यदि जड़ गणेशाकार नहीं है तो किसी कारीगर से आकृति बनवाई जा सकती है शास्त्रों में मदार की जड़ की स्तुति इस मंत्र से करने का विघान है-

 

           चतुर्भुज रक्ततनुंत्रिनेत्रं पाशाकुशौ मोदरक पात्र दन्तो।

 

           करैर्दधयानं सरसीरूहस्थं गणाधिनाभंराशि चूडामीडे।।

 

गणेशोपासना में साधक लाल वस्त्र, लाल आसान, लाल पुष्प, लाल चंदन, मूंगा अथवा रूद्राक्ष की माला का प्रयोग करें-नेवैद्य में गुड़ व मूंग के लड्डू अर्पित करें- “ऊँ वक्रतुण्डाय हुम्” मंत्र का जप करें- श्रद्धा और भावना से की गई श्वेतार्क की पूजा का प्रभाव थोड़े बहुत समय बाद आप स्वयं प्रत्यक्ष रूप से अनुभव करने लगेंगे-

 

श्वेतार्क गणपति एक बहुत प्रभावी मूर्ति होती है जिसकी आराधना साधना से सर्व-मनोकामना सिद्धि-अर्थ लाभ,कर्ज मुक्ति,सुख-शान्ति प्राप्ति ,आकर्षण प्रयोग,वैवाहिक बाधाओं,उपरी बाधाओं का शमन ,वशीकरण ,शत्रु पर विजय प्राप्त होती है-यद्यपि यह तांत्रिक पूजा है यदि श्वेतार्क की स्वयमेव मूर्ति मिल जाए तो अति उत्तम है अन्यथा रवि-पुष्य योग में पूर्ण विधि-विधान से श्वेतार्क को आमंत्रित कर रविवार को घर लाकर तथा गणपति की मूर्ति बना विधिवत प्राण प्रतिष्ठा कर अथवा प्राण प्रतिष्ठित मूर्ति किसी साधक से प्राप्त कर साधना/उपासना की जाए तो उपर्युक्त लाभ शीघ्र प्राप्त होते है यह एक तीब्र प्रभावी प्रयोग है श्वेतार्क गणपति साधना भिन्न प्रकार से भिन्न उद्देश्यों के लिए की जा सकती है तथा इसमें मंत्र भी भिन्न प्रयोग किये जाते है-

 

श्वेतार्क गणपति के विभिन्न प्रयोग-

 

सर्वमनोकामना की पूर्ति हेतु श्वेतार्क गणपति का पूजन बुधवार के दिन प्राराम्भ करे तथा पीले रंग के आसन पर पीली धोती पहनकर पूर्व दिशा की और मुह्कर बैठे-एक हजार मंत्र प्रतिदिन के हिसाब से 21 दिन में 21 हजार मंत्र जप मंत्र सिद्ध चैतन्य मूंगे की माला से करे और पूजन में लाल चन्दन ,कनेर के पुष्प ,केशर,गुड ,अगरबत्ती ,शुद्ध घृत के दीपक का प्रयोग करे-

 

मन्त्र-  

 

                        “ऊँ वक्रतुण्डाय हुम्”

 

1- घर में विवाह कार्य ,सुख-शान्ति के लिए श्वेतार्क गणपति प्रयोग बुधवार को लाल वस्त्र ,लाल आसन का प्रयोग करके प्रारम्भ करे ,इक्यावन दिन में इक्यावन हजार जप मंत्र का करे ,मुह पूर्व हो ,माला मूगे की हो,साधना समाप्ति पर कुवारी कन्या को भोजन कराकर वस्त्रादि भेट करे-

 

2- आकर्षण प्रयोग हेतु रात्री के समय पश्चिम दिशा को,लाल वस्त्र- आसन के साथ हकीक माला से शनिवार के दिन से प्रारंभ कर पांच दिन में पांच हजार जप मंत्र का करे -पूजा में तेल का दीपक ,लाल फूल,गुड आदि का प्रयोग करे -उपरोक्त प्रयोग किसी के भी आकर्षण हेतु किया जा सकता है-

 

3- सर्व स्त्री आकर्षण हेतु श्वेतार्क गणपति प्रयोग,पूर्व मुख ,पीले आसन पर पीला वस्त्र पहनकर किया जाता है तथा पूजन में लाल चन्दन ,कनेर के पुष्प ,अगरबत्ती,शुद्ध घृत का दीपक का प्रयोग होता है तथा मूगे की माला से इक्यावन दिन में इक्यावन हजार जप मंत्र का किया जाता है जिसे बुधवार से प्रारंभ किया जाता है-

 

4- स्थायी रूप से विदेश में प्रवास करके विवाह करने अथवा अविवाहित कन्या का प्रवासी भारतीय से विवाह करके विदेश में बसने हेतु अथवा विदेश जाने में आ रही रूकावटो को दूर करने हेतु श्वेतार्क गणपति का प्रयोग शुक्ल पक्ष के बुधवार से प्रातः काल ब्रह्म मुहूर्त में प्रारम्भ करे-पूर्व दिशा की और लाल ऊनी कम्बल ,पीली धोती के प्रयोग के साथ मंत्र सिद्ध चैतन्य मूंगे की माला से 21 दिन में सवा लाख जप मंत्र का करे तथा पूजन में लाल कनेर पुष्प ,घी का दीपक ,अगरबत्ती ,केशर ,बेसन के लड्डू ,लाल वस्त्र ,लकड़ी की चौकी ,का प्रयोग करे तथा बाइसवे दिन हवंन कर पांच कुवारी कन्याओं को भोजन कराकर वस्त्र-दक्षिणा दे विदा करे इसके उपरान्त मूगे की माला आप अपने गले में धारण करे –

 

5- कर्ज मुक्ति हेतु श्वेतार्क गणपति का प्रयोग बुधवार को लाल वस्त्रादि-वस्तुओ के साथ शुरू करे और 21 दिन में सवा लाख जप मंत्र का करे मूंगे अथवा रुद्राक्ष अथवा स्फटिक की मंत्र सिद्ध चैतन्य माला से करे साधना के बाद माला अपने गले में धारण करे तथा पूजन में लाल वस्तुओ का प्रयोग करे और दीपक घी का जलाए-

 

6- श्वेतार्क गणपति की साधना में एक बात ध्यान देने की है की प्राण प्रतिष्ठा होने के बाद मूर्ति चैतन्य हो जाती है और उसे हर हाल में प्रतिदिन पूजा देनी होती है साधना समाप्ति पर यदि रोज पूजा देते रहेगे तो चतुर्दिक विकास होता है यदि किसी कारण से आप पूजा न दे सके या कोई भी सदस्य घर का पूजा न कर सके तो मूर्ति का विसर्जन कर दे-

 

उपरोक्त प्रयोगों में मंत्र भिन्न-भिन्न प्रयोग होते है-जिन्हें न देने का कारण सिर्फ इनके दुरुपयोग से इनको बचाना है-यह प्रयोग तंत्र के अंतर्गत आते है अतः सावधानी आवश्यक है इसलिए मन्त्र यहाँ नहीं लिखे गए है क्युकि तंत्र के मन्त्र अचूक होते है और आज वैमनस्य के कारण लोग हित की जगह दूसरों का अहित कर देते है सिर्फ जो पात्रता के योग्य होते है ये मन्त्र गुरु की देखरेख में ही शिष्य को दिया जाता है-वैसे सभी मन्त्र शंकर भगवान् द्वारा कीलित अवस्था में है जिनका उत्कीलन गुरु द्वारा शिष्य से करवा कर मन्त्र को प्रभावी बनाया जाता है पुस्तक में दिए गए मन्त्र चैतन्य अवस्था में नहीं होते है इसलिए उसका कोई प्रभाव नहीं होता है जबकि मन्त्र शक्ति आज भी पूर्वकाल की तरह ही गुण सम्पन्न है-

 

 #सफेद_आक के सरलतम तंत्र प्रयोग”

 

गर्मियों के दिनों में प्रायः अनेक स्थानों पर श्वेतार्क के बीज उड़ते हुए दिखाई देते हैं। साधारण सी भाषा में इनकों बुढ़िया के बाल कह देते हैं। कहावत ही यदि मन की इच्छा बोलकर बुढ़िया के एक बाल को उड़ा दें तो इच्छा पूर्ण होती है। बचपन में हम भी यह खूब किया करते थे। सम्भवतः आपने भी यह सब सुना हो। इसको अर्श, मदार, अकौआ आदि भी कहते है। बरगद के पत्रों के समान इसके पत्ते भी मोटे से होते हैं। आयुर्वेद संहिताओं में इसकी गणना उपविषयों में की जाती है। अनेक चिकित्सकों द्वारा औषधीय रूप में मदार का उपयोग किया जाता है। अनेक रोगों से मुक्ति के लिए इस वृक्ष का बहुत बड़ा योगदान है। इसलिए इसको ‘वानस्पतिक पारद’ की संज्ञा दी गयी है। भदार की तीन प्रजातियाँ पाई जाती हैं। रक्तार्क, राजार्क और श्वेतार्क। तंत्र श्रेत्र में श्वेतार्क प्रजाति के मदार की बहुत उपयोगिता बताई गयी है। तीन चार वर्ष से अधिक पुराने वृक्ष की कुछ जड़ें लगभग गणेश जी की आकृति में प्रायः मिल जाती हैं।

सम्भव हो तो शुभ मुहूर्त में इसको विधिनुसार सावधानी से निकाल लें। यदि गणपति जी की आकृति स्पष्ट न हो तो किसी कारीगर से आकृति बनवाई भी जा सकती है। इसको अपने पूजा में रखकर नियमित पूजन- आराधना करने से त्रिसुखों की प्राप्ति होती है। शास्त्रों में मदार की स्तुति इस मंत्र से करने का विधान है।

 

“”चतुर्भुज रक्तनुंत्रिनेत्रं पाशाकुशौ मोदरक पात्र दन्तो, करैर्दधयानं सरसीरूहस्थं गणाधि नामंराशि चू यडमीडे।””

 

गणेशोपासना में लाल वस्त्र धारण करके लाल आसन, लाल पुष्प, लाल चंदन, लाल रत्न-उपरत्न की माला से पूजन तथा नैवेद्य में गुड़ तथा भूंग के लड्डू अर्पण करके निम्न मंत्र का जप करें। देव की कृपा साधक को अवश्य ही मिलेगी। ‘ऊँ वक्रतुण्डाय हुम’कुछ सरल से उपाय श्वेतार्क तंत्र पर पाठकों के लाभार्थ दे रहा हूँ। सहज, सुलभ होने के कारण कोई भी इनको सरलता से अपनाकर लाभ उठा सकता है।

 

  1. सफेद आक के फूलों से शिव पूजन करें, भोले बाबा की कृपा होगी।

 

  1. आक की जड़ रविपुष्य नक्षत्र में लाल कपड़े में लपेटकर घर में रख लें, घर में सुख-शांति तथा समृद्धि बनी रहेगी।

 

  1. श्वेतार्क के नीचे बैठकर प्रतिदिन साधना करें, जल्दी फल मिलेगा।

 

  1. वृक्ष के नीचे बैठकर प्रतिदिन ‘ऊँ गं गणपतये नमः’ की एक माला जप करें, हर क्षेत्र में लाभ मिलेगा।

 

  1. श्वेतार्क की जड़, गोरोचन तथा गोघृत में घिसकर तिलक किया करें, वशीकरण तथा सम्मोहन में इससे त्वरित फल मिलेगा।

 

  1. होलिका में श्वेतार्क की जड़ तथा छोटे से एक शंख की राख बनाकर रख लें। इससे नित्य तिलक किया करें, दुर्भिक्षों से रक्षा होगी।

 

  1. श्वेतार्क से गणपति की प्रतिमा बनाकर घर में स्थापित करें। नित्य एक दूर्वाघास अर्पण कर श्रद्धापूर्वक गणपति जी का ध्यान किया करें, प्रत्येक कार्य में सफलता मिलेगी तथा सब प्रकार के विघ्नों से आपकी रक्षा होगी।

 

  1. श्वेतार्क के पत्ते पर अपने शत्रु का नाम इसके ही दूध से लिखकर जमीन में दबा दिया करें, वह शांत रहेगा। इस पत्ते को जल प्रवाह कर दें तो शत्रु आपको छोड़कर और कहीं चला जाएगा। इस पत्ते से यदि होम करते हैं तब तो शत्रु का भगवान ही मालिक है ।

 

  1. श्वेतार्क के फल से निकलने वाली रुई की बत्ती तिल के तेल के दीपक में जलाकर लक्ष्मी साधनाएँ करें, माँ की आप पर कृपा बनी रहेगी ।

 

  1. श्वेतार्क की जड़, मूंगा, फिटकरी, लहसुन तथा मोर का पंख एक थैली में सिल लें। यह एक नजरबट्टू बन जाएगा। बच्चे के सोते समय चौंकना, डरना, रोना आदि में यह बहुत लाभदायक सिद्ध होगा।

 

  1. सफेद आक की जड़, गणेश चतुर्थी से अनन्त चतुर्दशी तक नित्य ‘ऊँ गं गणपतये नम’ मंत्र से पूजा करें, सुख, समृद्धि और धन की प्राप्ति होगी तथा मनोवांछित कामनाएं पूर्ण होंगी।

 

  1. श्वेतार्क व़ृक्ष पर नित्य ‘ऊँ नमो विघ्नहराय गं गणपतये नमः’ मंत्र जप करते हुए मिश्रित जल से अर्ध्य दिया करें, दुष्ट ग्रह शांत होंगे।

 

  1. सिंदूर मिश्रित चावल के आसन पर श्वेतार्क गणपति जी को विराजमान कर लें। हल्दी, चन्दन, धूप, दीप, नैवेद्य से देव की पूजा करें। नित्य गणपति स्तोत्र का पाठ किया करें, धन-धान्य का अभाव नहीं रहेगा।

 

  1. श्वेतार्क की जड़ ‘ऊँ नमो अग्नि रूपाय ह्रीं नमः’ मंत्र जपकर पास रख लें, यात्रा में दुर्घटना का भय नहीं रहेगा।

 

  1. श्वेतार्क की समिधाओं में ‘ ऊँ जूं सः रुं रुद्राय नमः सः जूँ ऊँ’ मंत्र जपते हुए हवन सामग्री होम किया करें रोग-शोक का नाश होने लगेगा।

 

  1. पूर्णिमा की रात्रि सफेद आक की जड़ तथा रक्तगुंजा को बकरी के दूध में घिसकर तिलक करें और ‘ऊँ नमः श्वेतगात्रे सर्वलोक वंशकरि दुष्टान वशं कुरू कुरू (अमुकं) में वशमानय स्वाहा’ मंत्र का जप करें। अमुक के स्थान पर उस व्यक्ति का नाम जप करें जिसको वश में करना है।

 

1- शास्त्रों में श्वेतार्क के बारे में कहा गया है ” जहां कहीं भी यह पौधा अपने आप उग आता है उसके आस-पास पुराना धन गड़ा होता है” जिस घर में श्वेतार्क गणपति (Shwetaark Ganapati) की जड़ रहेगी वहां से दरिद्रता स्वयं पलायन कर जाएगी -इस प्रकार मदार का यह पौधा मनुष्य के लिए देव कृपा, रक्षक एवं समृद्धि दाता भी है-

2- सफेद मदार की जड़ में गणेशजी का वास होता है कभी-कभी इसकी जड़ गणशेजी की आकृति ले लेती है इसलिए सफेद मदार की जड़ कहीं से भी प्राप्त करें और उसकी श्रीगणेश की प्रतिमा बनवा लें-उस पर लाल सिंदूर का लेप करके उसे लाल वस्त्र पर स्थापित करें- यदि जड़ गणेशाकार नहीं है तो किसी कारीगर से आकृति बनवाई जा सकती है शास्त्रों में मदार की जड़ की स्तुति इस मंत्र से करने का विघान है-

चतुर्भुज रक्ततनुंत्रिनेत्रं पाशाकुशौ मोदरक पात्र दन्तो।

करैर्दधयानं सरसीरूहस्थं गणाधिनाभंराशि चूडामीडे।।

3- गणेशोपासना में साधक लाल वस्त्र, लाल आसान, लाल पुष्प, लाल चंदन, मूंगा अथवा रूद्राक्ष की माला का प्रयोग करें-नेवैद्य में गुड़ व मूंग के लड्डू अर्पित करें- ” ऊँ वक्रतुण्डाय हुम् ” मंत्र का जप करें- श्रद्धा और भावना से की गई श्वेतार्क की पूजा का प्रभाव थोड़े बहुत समय बाद आप स्वयं प्रत्यक्ष रूप से अनुभव करने लगेंगे –

4- श्वेतार्क गणपति (Shwetaark Ganapati) एक बहुत प्रभावी मूर्ति होती है जिसकी आराधना साधना से सर्व-मनोकामना सिद्धि, अर्थ-लाभ, कर्ज मुक्ति, सुख-शान्ति प्राप्ति, आकर्षण प्रयोग, वैवाहिक बाधाओं, उपरी बाधाओं का शमन, वशीकरण, शत्रु पर विजय प्राप्त होती है-

5- यद्यपि यह तांत्रिक पूजा है यदि श्वेतार्क की स्वयमेव मूर्ति मिल जाए तो अति उत्तम है अन्यथा रवि-पुष्य योग में पूर्ण विधि-विधान से श्वेतार्क को आमंत्रित कर रविवार को घर लाकर तथा गणपति की मूर्ति बना विधिवत प्राण प्रतिष्ठा कर अथवा प्राण प्रतिष्ठित मूर्ति किसी साधक से प्राप्त कर साधना/उपासना की जाए तो उपर्युक्त लाभ शीघ्र प्राप्त होते है यह एक तीब्र प्रभावी प्रयोग है श्वेतार्क गणपति (Shwetaark Ganapati) साधना भिन्न प्रकार से भिन्न उद्देश्यों के लिए की जा सकती है तथा इसमें मंत्र भी भिन्न प्रयोग किये जाते है-

सर्वमनोकामना की पूर्ति हेतु श्वेतार्क गणपति (Shwetaark Ganapati) का पूजन बुधवार के दिन प्राराम्भ करे तथा पीले रंग के आसन पर पीली धोती पहनकर पूर्व दिशा की और मुह्कर बैठे-एक हजार मंत्र प्रतिदिन के हिसाब से 21 दिन में 21 हजार मंत्र जप मंत्र सिद्ध चैतन्य मूंगे की माला से करे और पूजन में लाल चन्दन, कनेर के पुष्प, केशर, गुड, अगरबत्ती, शुद्ध घृत के दीपक का प्रयोग करे-

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“ऊँ वक्रतुण्डाय हुम्”

1- घर में विवाह कार्य, सुख-शान्ति के लिए श्वेतार्क गणपति (Shwetaark Ganapati) प्रयोग बुधवार को लाल वस्त्र, लाल आसन का प्रयोग करके प्रारम्भ करे-इक्यावन दिन में इक्यावन हजार जप मंत्र का करे, मुह पूर्व हो, माला मूगे की हो तथा साधना समाप्ति पर कुवारी कन्या को भोजन कराकर वस्त्रादि भेट करे-

2- आकर्षण प्रयोग हेतु रात्री के समय पश्चिम दिशा को लाल वस्त्र-आसन के साथ हकीक माला से शनिवार के दिन से प्रारंभ कर पांच दिन में पांच हजार जप मंत्र का करे-पूजा में तेल का दीपक, लाल फूल, गुड आदि का प्रयोग करे-

उपरोक्त प्रयोग किसी के भी आकर्षण हेतु किया जा सकता है-

3- सर्व-स्त्री आकर्षण हेतु श्वेतार्क गणपति प्रयोग, पूर्व मुख, पीले आसन पर पीला वस्त्र पहनकर किया जाता है तथा पूजन में लाल चन्दन, कनेर के पुष्प, अगरबत्ती, शुद्ध घृत का दीपक का प्रयोग होता है तथा मूगे की माला से इक्यावन दिन में इक्यावन हजार जप मंत्र का किया जाता है जिसे बुधवार से प्रारंभ किया जाता है-

4- स्थायी रूप से विदेश में प्रवास करके विवाह करने अथवा अविवाहित कन्या का प्रवासी भारतीय से विवाह करके विदेश में बसने हेतु अथवा विदेश जाने में आ रही रूकावटो को दूर करने हेतु श्वेतार्क गणपति का प्रयोग शुक्ल पक्ष के बुधवार से प्रातः काल ब्रह्म मुहूर्त में प्रारम्भ करे -पूर्व दिशा की और लाल ऊनी कम्बल ,पीली धोती के प्रयोग के साथ मंत्र सिद्ध चैतन्य मूंगे की माला से 21 दिन में सवा लाख जप मंत्र का करे तथा पूजन में लाल कनेर पुष्प ,घी का दीपक ,अगरबत्ती ,केशर ,बेसन के लड्डू ,लाल वस्त्र ,लकड़ी की चौकी ,का प्रयोग करे तथा बाइसवे दिन हवंन कर पांच कुवारी कन्याओं को भोजन कराकर वस्त्र-दक्षिणा दे विदा करे इसके उपरान्त मूगे की माला आप अपने गले में धारण करे –

5- कर्ज मुक्ति हेतु श्वेतार्क गणपति का प्रयोग बुधवार को लाल वस्त्रादि-वस्तुओ के साथ शुरू करे और 21 दिन में सवा लाख जप मंत्र का करे मूंगे अथवा रुद्राक्ष अथवा स्फटिक की मंत्र सिद्ध चैतन्य माला से करे साधना के बाद माला अपने गले में धारण करे तथा पूजन में लाल वस्तुओ का प्रयोग करे और दीपक घी का जलाए-

6- श्वेतार्क गणपति की साधना में एक बात ध्यान देने की है की प्राण प्रतिष्ठा होने के बाद मूर्ति चैतन्य हो जाती है और उसे हर हाल में प्रतिदिन पूजा देनी होती है साधना समाप्ति पर यदि रोज पूजा देते रहेगे तो चतुर्दिक विकास होता है यदि किसी कारण से आप पूजा न दे सके या कोई भी सदस्य घर का पूजा न कर सके तो मूर्ति का विसर्जन कर दे-

पवित्रीकरण 

 

बायें हाथ में जल लेकर उसे दाये हाथ से ढक कर मंत्र पढे एवं मंत्र पढ़ने के बाद इस जल को दाहिने हाथ से अपने सम्पूर्ण शरीर पर छिड़क ले

॥ ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यंतरः शुचिः ॥

 

  आचमन

 

 मन , वाणि एवं हृदय की शुद्धि के लिए आचमनी द्वारा जल लेकर तीन बार  मंत्र के उच्चारण के साथ पिए  ।

( ॐ केशवया नमः  , ॐ नारायणाय नमः , ॐ माधवाय नमः  )

 ॐ हृषीकेशाय नमः  ( इस मंत्र को बोलकर हाथ धो ले )

 

  शिखा बंधन 

 

शिखा पर दाहिना हाथ रखकर दैवी शक्ति की स्थापना करें                                                           चिद्रुपिणि महामाये दिव्य तेजः समन्विते ,तिष्ठ देवि शिखामध्ये तेजो वृद्धिं कुरुष्व मे ॥

 

  मौली बांधने का मंत्र 

 

येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबल: । 

 तेन त्वामनुबध्नामि  रक्षे मा चल मा चल ॥

  तिलक लगाने का मंत्र 

 

कान्तिं लक्ष्मीं धृतिं सौख्यं सौभाग्यमतुलं बलम् ।

ददातु चन्दनं नित्यं सततं धारयाम्यहम् ॥

 

  यज्ञोपवीत मंत्र 

 

ॐ यज्ञोपवीतम् परमं पवित्रं प्रजापतेर्यत्सहजं पुरस्तात्  ।

आयुष्यमग्रयं प्रतिमुञ्च शुभ्रं यज्ञोपवीतं  बलमस्तु  तेज:।।

 

  पुराना यगोपवीत त्यागने का मंत्र 

 

एतावद्दिनपर्यन्तं ब्रह्म त्वं धारितं मया । 

जीर्णत्वात् त्वत्परित्यागो गच्छ सूत्र यथासुखम् ।

  न्यास 

 

संपूर्ण शरीर को साधना के लिये पुष्ट एवं सबल बनाने के लिए प्रत्येक मन्त्र के साथ संबन्धित अंग को दाहिने हाथ से स्पर्श करें

 

  ॐ वाङ्ग में आस्येस्तु   –   मुख को

  ॐ नसोर्मे प्राणोऽस्तु  –     नासिका के छिद्रों को

 ॐ चक्षुर्में तेजोऽस्तु  –       दोनो नेत्रों को

 ॐ कर्णयोमें श्रोत्रंमस्तु –   दोनो कानो को

  ॐ बह्वोर्मे  बलमस्तु  –    दोनो बाजुओं  को

  ॐ ऊवोर्में ओजोस्तु  –     दोनों जंघाओ  को

  ॐ अरिष्टानि  मे अङ्गानि सन्तु –   सम्पूर्ण शरीर को

 

  आसन पूजन  

 

अब अपने आसन के नीचे चन्दन से त्रिकोण बनाकर उसपर अक्षत , पुष्प समर्पित करें एवं मन्त्र बोलते हुए हाथ जोडकर प्रार्थना करें

 

 ॐ पृथ्वि त्वया धृतालोका देवि त्वं विष्णुना धृता  ।

  त्वं च धारय मां देवि पवित्रं कुरु चासनम् ॥

 

 दिग् बन्धन  

 

बायें हाथ में जल या चावल लेकर दाहिने हाथ से चारों दिशाओ में छिड़कें

 

 ॥ ॐ अपसर्पन्तु ये भूता ये भूताःभूमि संस्थिताः  ।  ये भूता विघ्नकर्तारस्ते नश्यन्तु शिवाज्ञया , अपक्रामन्तु भूतानि पिशाचाः सर्वतो दिशम्  । सर्वे षामविरोधेन  पूजाकर्म समारम्भे ॥

 

 गणेश स्मरण  

 

सुमुखश्चैकदन्तश्च कपिलो गजकर्णकः  । लम्बोदरश्च विकटो विघ्ननाशो विनायकः ॥

 धुम्रकेतुर्गणाध्यक्षो भालचन्द्रो गजाननः   ।   द्वादशैतानि नामानि  यः पठेच्छृणुयादपि ॥

विद्यारम्भे विवाहे च प्रवेशे निर्गमे तथा    ।     संग्रामे संकटे चैव विघ्नस्तस्य न जायते ॥

 

  श्री गुरु ध्यान  

 

अस्थि चर्म युक्त देह को हिं गुरु नहीं कहते अपितु इस देह में जो ज्ञान समाहित है उसे गुरु कहते हैं , इस ज्ञान की प्राप्ति के लिये उन्होने जो तप और त्याग किया है , हम उन्हें नमन करते हैं , गुरु हीं हमें दैहिक , भौतिक एवं आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त करने का ज्ञान देतें हैं इसलिये शास्त्रों में गुरु का महत्व सभी देवताओं से ऊँचा माना गया है , ईश्वर से भी पहले गुरु का ध्यान एवं पूजन करना शास्त्र सम्मत कही गई है।

 

द्विदल  कमलमध्ये  बद्ध  संवित्समुद्रं     ।  धृतशिवमयगात्रं     साधकानुग्रहार्थम्  ॥

श्रुतिशिरसि विभान्तं बोधमार्तण्ड मूर्तिं   ।  शमित तिमिरशोकं  श्री गुरुं भावयामि  ॥

ह्रिद्यंबुजे      कर्णिक       मध्यसंस्थं       ।  सिंहासने      संस्थित       दिव्यमूर्तिम्  ॥

ध्यायेद्   गुरुं   चन्द्रशिला    प्रकाशं       ।     चित्पुस्तिकाभिष्टवरं           दधानम्  ॥

श्री  गुरु  चरणकमलेभ्यो   नमः  ध्यानं  समर्पयामि ।

 

॥ श्री गुरु चरण कमलेभ्यो नमः प्रार्थनां समर्पयामि , श्री गुरुं मम हृदये आवाहयामि मम हृदये कमलमध्ये स्थापयामि नमः ॥

 

गणेश पूजन

 

ध्यान

 

खर्वं   स्थूलतनुं   गजेन्द्रवदनं   लम्बोदरं  सुन्दरं

प्रस्यन्दन्मदगन्धलुब्धमधुपव्यालोलगण्डस्थलम्  ।

दन्ताघातविदारितारिरुधिरैः    सिन्दुरशोभाकरं

वन्दे शैलसुतासुतं  गणपतिं सिद्धिप्रदं कामदम्  ॥

ॐ   गं    गणपतये     नमः    ध्यानं   समर्पयामि ।

 

आवाहन

 

ॐ गणानां त्वां गणपति ( गूं ) हवामहे प्रियाणां त्वां प्रियपति ( गूं ) हवामहे निधीनां त्वां निधिपति ( गूं ) हवामहे वसो मम । आहमजानि गर्भधमा त्वमजासि गर्भधम्  ॥

एह्येहि  हेरन्ब  महेशपुत्र समस्त  विघ्नौघविनाशदक्ष  ।

माङ्गल्यपूजाप्रथमप्रधान गृहाण पूजां भगवन् नमस्ते  ॥

ॐ भूर्भुवः स्वः सिद्धिबुद्धिसहिताय गणपतये नमः गणपतिमावाहयामि , स्थापयामि , पूजयामि

 

आसन

 

॥ अनेकरत्नसंयुक्तं नानामणिगणान्वितम् कार्तस्वरमयं दिव्यमासनं  परिगृह्यताम ॥

ॐ  गं  गणपतये  नमः आसनार्थे  पुष्पं समर्पयामि ।

 

स्नान

 

॥ मन्दाकिन्यास्तु  यद्वारि  सर्वपापहरं शुभम्   तदिदं कल्पितं देव  स्नानार्थं  प्रतिगृह्यताम् ॥

 

ॐ  गं  गणपतये नमः  पद्यं , अर्ध्यं , आचमनीयं च  स्नानं समर्पयामि , पुनः आचमनीयं जलं समर्पयामि  ।  (पांच आचमनि जल प्लेटे मे चदायें )

 

वस्त्र

 

॥ सर्वभुषादिके सौम्ये  लोके  लज्जानिवारणे , मयोपपादिते तुभ्यं गृह्यतां वसिसे शुभे ॥

ॐ गं  गणपतये नमः वस्त्रोपवस्त्रं समर्पयामि , आचमनीयं जलं समर्पयामि  ।

 

यज्ञोपवीत

 

ॐ यज्ञोपवीतं परमं पवित्रं प्रजापतेर्यत्सहजं  पुरस्तात् ।

आयुष्यमग्रयं प्रतिमुञ्च शुभ्रं यज्ञोपवीतं बलमस्तु तेजः  ॥

यज्ञोपवीतमसि यज्ञस्य   त्वा यज्ञोपवितेनोपनह्यामि  ।

नवभिस्तन्तुभिर्युक्तं  त्रिगुणं   देवतामयम्  ।

उपवीतं  मया   दत्तं   गृहाण    परमेश्वर  ॥

ॐ गं  गणपतये नमः यज्ञोपवीतं समर्पयामि  , यज्ञोपवीतान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि ।

 

चन्दन

 

॥ ॐ  श्रीखण्डं  चन्दनं  दिव्यं  गन्धाढयं सुमनोहरं , विलेपनं सुरश्रेष्ठ चन्दनं प्रतिगृह्यताम् ॥

 

ॐ  गं  गणपतये नमः चन्दनं समर्पयामि ।

 

अक्षत

 

॥ अक्षताश्च सुरश्रेष्ठ कुङ्कुमाक्ताः  सुशोभिताः  मया निवेदिता भक्त्या गृहाण परमेश्वर   ॥

ॐ  गं  गणपतये नमः अक्षतान् समर्पयामि ।

 

पुष्प

 

 माल्यादीनि सुगन्धीनि मालत्यादीनि भक्तितः , मयाऽऽ ह्रतानि पुष्पाणि पूजार्थं प्रतिगृह्यतां ॥

 

ॐ  गं  गणपतये नमः पुष्पं बिल्वपत्रं च समर्पयामि ।

 

दुर्वा

 

॥ दूर्वाङ्कुरान्  सुहरितानमृतान् मङ्गलप्रदान्  ,  आनीतांस्तव पूजार्थं  गृहाण  गणनायक ॥

ॐ  गं  गणपतये नमः दूर्वाङ्कुरान समर्पयामि ।

 

सिन्दुर

 

॥ सिन्दूरं शोभनं रक्तं सौभाग्यं सुखवर्धनम्  ,  शुभदं कामदं चैव सिन्दूरं प्रतिगृह्यताम्  ॥

ॐ  गं  गणपतये नमः सिदुरं समर्पयामि ।

 

धूप

 

॥ वनस्पति रसोद् भूतो    गन्धाढयो  सुमनोहरः , आघ्रेयः सर्वदेवानां धूपोऽयं प्रतिगृह्यताम् ॥

ॐ  गं  गणपतये नमः धूपं आघ्रापयामि ।

 

दीप

 

॥ साज्यं च वर्तिसंयुक्तं वह्निना  योजितं मया , दीपं गृहाण   देवेश  त्रैलोक्यतिमिरापहम्  ॥

 

ॐ  गं  गणपतये नमः दीपं दर्शयामि  ।

 

नैवैद्य

 

॥ शर्कराखण्डखाद्यानि दधिक्षीरघृतानि च , आहारं भक्ष्यभोज्यं च नैवैद्यं प्रतिगृह्यताम् ॥

ॐ  गं  गणपतये नमः नैवैद्यं निवेदयामि नानाऋतुफलानि च समर्पयामि , आचमनीयं जलं समर्पयामि ।

 

ताम्बूल

 

॥ पूगीफलं महद्दिव्यम्  नागवल्लीदलैर्युतम्  एलालवङ्ग संयुक्तं ताम्बूलं   प्रतिगृह्यताम् ॥

 

ॐ  गं  गणपतये नमः  ताम्बूलं समर्पयामि ।

 

दक्षिणा

 

॥ हिरण्यगर्भगर्भस्थं  हेमबीजं विभावसोः   अनन्तपुण्यफलदमतः  शान्तिं  प्रयच्छ मे ॥

ॐ  गं  गणपतये नमः  कृतायाः  पूजायाः  सद् गुण्यार्थे  द्रव्यदक्षिणां समर्पयामि ।

 

आरती

 

॥ कदलीगर्भसम्भूतं कर्पूरं तु प्रदीपितम् , आरार्तिकमहं  कुर्वे पश्य मां वरदो  भव ॥

ॐ  गं  गणपतये नमः आरार्तिकं समर्पयामि ।

 

मन्त्रपुष्पाञ्जलि

 

॥ नानासुगन्धिपुष्पाणि  यथाकालोद् भवानि च  पुष्पाञ्जलिर्मया दत्तो गृहान परमेश्वर ॥

 

ॐ  गं  गणपतये नमः मन्त्रपुष्पाञ्जलिम्  समर्पयामि ।

 

प्रदक्षिणा

 

॥ यानि कानि च पापानि जन्मान्तरकृतानि  च , तानि सर्वाणि नश्यन्तु प्रदक्षिणपदे पदे ॥

ॐ  गं  गणपतये नमः  प्रदक्षिणां समर्पयामि ।

 

विशेषार्ध्य

 

 रक्ष रक्ष गणाध्यक्ष रक्ष त्रैलोक्यरक्षक  ,   भक्तानामभयं कर्ता त्राता भव भवार्णवात् ।

द्वैमातुर कृपासिन्धो  षाण्मातुराग्रज प्रभो  ,  वरदस्त्वं वरं देहि वाञ्छितं    वाञ्छितार्थद ॥

अनेन सफलार्ध्येण  वरदोऽस्तु सदा मम  ॥

ॐ  गं  गणपतये नमः   विशेषार्ध्य    समर्पयामि ।

 

प्रार्थना

 

विघ्नेश्वराय वरदाय सुरप्रियाय लम्बोदराय सकलाय जगध्दिताय

नागाननाय श्रुतियज्ञविभूषिताय  गौरीसुताय गणनाथ नमो नमस्ते

भक्तार्तिनाशनपराय गणेश्वराय   सर्वेश्वराय शुभदाय सुरेश्वराय

विद्याधराय विकटाय च वामनाय  भक्तप्रसन्नवरदाय नमो नमस्ते

नमस्ते ब्रह्मरूपाय विष्णुरूपाय ते नमः  नमस्ते रुद्ररुपाय करिरुपाय ते नमः

विश्वरूपस्वरुपाय नमस्ते ब्रह्मचारिणे  भक्तप्रियाय देवाय नमस्तुभ्यं विनायक

त्वां विघ्नशत्रुदलनेति च सुन्दरेति  भक्तप्रियेति शुखदेति फलप्रदेति

विद्याप्रदेत्यघहरेति च ये स्तुवन्ति  तेभ्यो गणेश वरदो भव नित्यमेव

त्वं वैष्णवी शक्तिरनन्तवीर्या  विश्वस्य बीजं परमासि माया

सम्मोहितं देवि समस्तमेतत्  त्वं वै प्रसन्ना भुवि मुक्तिहेतुः

ॐ  गं  गणपतये नमः   प्रार्थनापूर्वकं नमस्कारान्  समर्पयामि ।  ( साष्टाङ्ग  नमस्कार करे )

समर्पण

गणेशपूजने   कर्म  यन्न्यूनमधिकं कृतम्   ।

तेन सर्वेण सर्वात्मा प्रसन्नोऽस्तु सदा मम  ॥

अनया पूजया गणेशे प्रियेताम्  , न मम  ।

( ऐसा कहकार समस्त पूजनकर्म  भगवान् को समर्पित कर दें ) तथा पुनः नमस्कार करें  ।

 

लक्ष्मी पूजन

 

  ध्यान

 

पद्मासनां     पद्मकरां       पद्ममालाविभूषिताम्

क्षीरसागर संभूतां    हेमवर्ण – समप्रभाम्  ।

क्षीरवर्णसमं वस्त्रं दधानां   हरिवल्लभाम्

भावेय भक्तियोगेन भार्गवीं कमलां शुभाम्

सर्वमंगलमांगल्ये विष्णुवक्षःस्थलालये

आवाहयामि देवी त्वां क्षीरसागरसम्भवे

पद्मासने पद्मकरे सर्वलोकैकपूजिते

नारायणप्रिये देवी सुप्रीता भव सर्वदा

 

आवाहन

 

सर्वलोकस्य  जननीं  सर्वसौख्यप्रदायिनीम्

  सर्वदेवमयीमीशां  देविमावाहयाम्यम्

ॐ तां म आ वह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम् 

 यस्यां हिरण्यं विन्देयं गामश्वं पुरुषानहम्

ॐ महालक्ष्म्यै नमः  महालक्ष्मीमावाहयामि  , आवाहनार्थे पुष्पाणि  समर्पयामि

 

आसन

 

 अनेकरत्नसंयुक्तं नानामणिगणान्वितम्  । इदं हेममयं  दिव्यमासनं  परिगृह्यताम ॥

श्री  महालक्ष्म्यै नमः   आसनार्थे  पुष्पं समर्पयामि ।

 

पाद्य

 

गङ्गादिसर्वतीर्थेभ्य आनीतं तोयमुत्तमम्  । पाद्यार्थं ते प्रदास्यामि गृहाण परमेश्वरी ॥

श्री  महालक्ष्म्यै नमः   पादयोः  पाद्यं  समर्पयामि । ( जल चढ़ाये )

 

अर्ध्य

 

गन्धपुष्पाक्षतैर्युक्तमर्ध्यं  सम्पादितं मया ।  गृहाण त्वं महादेवि प्रसन्ना भव सर्वदा ॥

श्री  महालक्ष्म्यै नमः    हस्तयोः अर्ध्यं  समर्पयामि ।

( चन्दन , पुष्प , अक्षत , जल से युक्त अर्ध्य दे  )

 

आचमन

 

कर्पूरेण सुगन्धेन वासितं स्वादु शीतलम्  ।  तोयमाचमनीयार्थं गृहाण परमेश्वरी ॥

श्री  महालक्ष्म्यै नमः    आचमनं   समर्पयामि ।

( कर्पुर से सुवासित शीतल जल चढ़ाये )

 

स्नान

 

 मन्दाकिन्यास्तु  यद्वारि सर्वपापहरं शुभम्  ।  तदिदं कल्पितं देवी स्नानार्थं  प्रतिगृह्यताम् ॥

श्री  महालक्ष्म्यै नमः  स्नानार्थम  जलं  समर्पयामि  । ( जल चढ़ाये )

 

वस्त्र

 

 सर्वभूषादिके सौम्ये  लोक  लज्जानिवारणे  ।  मयोपपादिते तुभ्यं गृह्यतां वसिसे शुभे ॥

श्री  महालक्ष्म्यै नमः  वस्त्रोपवस्त्रं समर्पयामि , आचमनीयं जलं समर्पयामि  ।

( दो मौलि के टुकड़े अर्पित करें एवं एक आचमनी जल अर्पित करें )

 

चन्दन

 

॥ श्रीखण्डं  चन्दनं  दिव्यं गन्धाढयं सुमनोहरं ।  विलेपनं सुरश्रेष्ठे चन्दनं प्रतिगृह्यताम् ॥

श्री  महालक्ष्म्यै नमः  चन्दनं समर्पयामि । ( मलय चन्दन लगाये )

 

कुङ्कुम

 

कुङ्कुमं कामदं दिव्यं कामिनीकामसम्भवम्  ।  कुङ्कुमेनार्चिता देवी कुङ्कुमं                              प्रतिगृह्यताम् ॥

श्री  महालक्ष्म्यै नमः  कुङ्कुमं  समर्पयामि ।  ( कुङ्कुम चढ़ाये )

 

सिन्दूर

 

सिन्दूरमरुणाभासं  जपाकुसुमसन्निभम् ।  अर्पितं ते मया भक्त्या प्रसीद परमेश्वरी ॥ 

श्री  महालक्ष्म्यै नमः  सिन्दूरं  समर्पयामि ।  ( सिन्दूर चढ़ाये )

 

अक्षत

 

 अक्षताश्च सुरश्रेष्ठ कुङ्कुमाक्ताः सुशोभिताः ।  मया निवेदिता भक्त्या गृहाण परमेश्वरी॥

श्री  महालक्ष्म्यै नमः  अक्षतान् समर्पयामि । ( बिना टूटा चावल चढ़ाये )

 

आभुषण

 

हारकङकणकेयूरमेखलाकुण्डलादिभिः । रत्नाढ्यं हीरकोपेतं भूषणं प्रतिगृह्यताम् ॥

श्री  महालक्ष्म्यै नमः  आभूषणानि  समर्पयामि ।  (  आभूषण  चढ़ाये )

 

पुष्प

 

 माल्यादीनि सुगन्धीनि मालत्यादीनि भक्तितः । मयाऽह्रतानि पुष्पाणि पूजार्थं प्रतिगृह्यतां

श्री  महालक्ष्म्यै नमः  पुष्पं  समर्पयामि । ( पुष्प चढ़ाये )

 

दुर्वाङकुर

 

तृणकान्तमणिप्रख्यहरिताभिः  सुजातिभिः ।  दुर्वाभिराभिर्भवतीं  पूजयामि महेश्वरी ॥

श्री  जगदम्बायै  दुर्गा देव्यै  नमः दुर्वाङ्कुरान  समर्पयामि ।  (  दूब  चढ़ाये )

 

अङ्ग – पूजा

 

कुङ्कुम , अक्षत , पुष्प से निम्नलिखित मंत्र पढ़ते हुए अङ्ग – पूजा करे –

ॐ चपलायै नमः , पादौ पूजयामि

ॐ चञ्चलायै नमः , जानुनी पूजयामि

ॐ कमलायै नमः , कटिं पूजयामि

ॐ कात्यायन्यै नमः , नाभिं पूजयामि

ॐ जगन्मात्रे नमः , जठरं पूजयामि

ॐ विश्ववल्लभायै नमः , वक्षः स्थलं पूजयामि

ॐ कमलवासिन्यै  नमः , हस्तौ पूजयामि

ॐ पद्माननायै नमः , मुखं पूजयामि

ॐ कमलपत्राक्ष्यै नमः , नेत्रत्रयं पूजयामि

ॐ श्रियै नमः , शिरः  पूजयामि

ॐ महालक्ष्मै नमः , सर्वाङ्गं पूजयामि

 

अष्टसिद्धि – पूजन

 

कुङ्कुम , अक्षत , पुष्प से निम्नलिखित मंत्र पढ़ते हुए आठों दिशाओं में आठों सिद्धियों की पूजा करे –

 

१ –  ॐ अणिम्ने  नमः  ( पूर्वे  )  

 

२- ॐ महिम्ने नमः  ( अग्निकोणे  )

 

३ – ॐ  गरिम्णे नमः  ( दक्षिणे )   

        

 ४ – ॐ लघिम्णे नमः  ( नैर्ॠत्ये )

 

 ५ – ॐ प्राप्त्यै नमः  ( पश्चिमे  )   

 

 ६ – ॐ  प्राकाम्यै नमः  ( वायव्ये )

 

 ७ – ॐ ईशितायै  नमः  ( उत्तरे )  

   

 ८ –  ॐ वशितायै नमः  ( ऐशान्याम् )

 

अष्टलक्ष्मी  पूजन

 

कुङ्कुम , अक्षत , पुष्प से निम्नलिखित   नाम – मंत्र पढ़ते हुए आठ   लक्ष्मियों  की पूजा करे –

 

 ॐ आद्यलक्ष्म्यै नमः , 

ॐ विद्यालक्ष्म्यै नमः ,

ॐ सौभाग्यलक्ष्म्यै नमः ,

ॐ अमृतलक्ष्म्यै   ,

 ॐ कामलक्ष्म्यै  नमः ,

ॐ सत्यलक्ष्म्यै नमः ,

ॐ भोगलक्ष्म्यै नमः , 

ॐ योगलक्ष्म्यै नमः

 

धूप

 

 वनस्पति रसोद् भूतो गन्धाढ्यो  सुमनोहरः ।  आघ्रेयः सर्वदेवानां धूपोऽयं प्रतिगृह्यताम् ॥

श्री  महालक्ष्म्यै नमः  धूपं आघ्रापयामि  । ( धूप दिखाये )

 

दीप

 

 साज्यं च वर्तिसंयुक्तं वह्निना योजितं मया । दीपं गृहाण  देवेशि त्रैलोक्यतिमिरापहम् ॥ 

श्री  महालक्ष्म्यै नमः  दीपं दर्शयामि ।

 

नैवैद्य

 

  शर्कराखण्डखाद्यानि दधिक्षीरघृतानि च ।  आहारं भक्ष्यभोज्यं च नैवैद्यं प्रतिगृह्यताम् ॥

श्री  महालक्ष्म्यै नमः  नैवैद्यं निवेदयामि । पुनः आचमनीयं जलं समर्पयामि ।

( प्रसाद चढ़ाये एवं इसके बाद आचमनी से जल चढ़ाये )

 

ऋतुफल

 

इदं फलं मया देवी स्थापितं पुरतस्तव ।  तेन मे सफलावाप्तिर्भवेज्जन्मनि जन्मनि ॥

श्री  महालक्ष्म्यै नमः  ॠतुफलानि  समर्पयामि  ( फल चढ़ाये )

 

ताम्बूल

 

 पूगीफलं महद्दिव्यम्  नागवल्लीदलैर्युतम् । एलालवङ्ग संयुक्तं ताम्बूलं  प्रतिगृह्यताम् ॥

श्री  महालक्ष्म्यै नमः  ताम्बूलं समर्पयामि ।  ( पान चढ़ाये )

 

दक्षिणा

 

 हिरण्यगर्भगर्भस्थं  हेमबीजं विभावसोः ।  अनन्तपुण्यफलदमतः  शान्तिं  प्रयच्छ मे ॥

श्री  महालक्ष्म्यै नमः  दक्षिणां समर्पयामि ।  ( दक्षिणा चढ़ाये )

 

आरती

 

॥ कदलीगर्भसम्भूतं कर्पूरं तु प्रदीपितम् ।  आरार्तिकमहं  कुर्वे पश्य मां वरदो  भव ॥

श्री  महालक्ष्म्यै नमः  आरार्तिकं समर्पयामि ।  ( कर्पूर की आरती करें )

 

जल आरती

 

ॐ द्यौ: शान्तिरन्तरिक्ष  ( गूं ) शान्ति: ,    पृथ्वी शान्तिराप:   शान्तिरोषधय:   शान्ति: ।

वनस्पतय: शान्तिर्विश्वे देवा: शान्तिर्ब्रह्म शान्ति: , सर्व ( गूं ) शान्ति: , शान्तिरेव शान्ति:, सा मा शान्तिरेधि  ॥   ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति:  ॥

 

मन्त्रपुष्पाञ्जलि

 

 नानासुगन्धिपुष्पाणि  यथाकालोद् भवानि च  पुष्पाञ्जलिर्मया दत्तो गृहान परमेश्वरि  ॥

श्री  महालक्ष्म्यै नमः  मन्त्रपुष्पाञ्जलिम्  समर्पयामि ।

 

नमस्कार

 

सुरासुरेन्द्रादिकिरीटमौक्तिकैर्युक्तं   सदा  यत्तव  पादपङ्कजम् 

परावरं  पातु  वरं  सुमङ्गलं   नमामि   भक्त्याखिलकामसिद्धये

भवानि  त्वं    महालक्ष्मीः  सर्वकामप्रदायिनी

 सुपूजिता  प्रसन्ना  स्यान्महालक्ष्मि  नमोऽस्तु  ते

नमस्ते  सर्वदेवानां  वरदासि  हरिप्रिये

या गतिस्त्वत्प्रपन्नानां  सा मे भूयात् त्वदर्चनात्

श्री  महालक्ष्म्यै नमः  ,  प्रार्थनापूर्वकं  नमस्कारान्   समर्पयामि

 

 लक्ष्मी  मन्त्र का जाप अपनी सुविधनुसार करे

 

 ॥ ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं ॐ  महालक्ष्म्यै नमः  ॥

 

 जप समर्पण  –

 ( दाहिने हाथ में जल लेकर मंत्र बोलें एवं जमीन पर छोड़ दें )

॥ ॐ गुह्यातिगुह्य  गोप्ता त्वं  गृहाणास्मत्कृतं  जपं ,

 सिद्धिर्भवतु  मं देवी  त्वत् प्रसादान्महेश्वरि  ॥

 

श्री लक्ष्मी जी की आरती

 

ॐ जय लक्ष्मी माता , मैया जय लक्ष्मी माता ।

तुमको  निसिदिन  सेवत हर – विष्णू – धाता  ॥  ॐ जय  ॥

उमा , रमा , ब्रह्माणी , तुम ही जग – माता 

सूर्य – चन्द्रमा ध्यावत ,  नारद ऋषि गाता ॥  ॐ जय  ॥

दुर्गारुप  निरञ्जनि  , सुख – सम्पति – दाता

जो कोइ तुमको ध्यावत , ऋधि – सिधि – धन पाता ॥  ॐ जय  ॥

तुम पाताल – निवासिनि , तुम ही शुभदाता

कर्म – प्रभाव -प्रकाशिनि  ,  भवनिधिकी  त्राता  ॥  ॐ जय  ॥

जिस घर तुम रहती , तहँ  सब   सद् गुण   आता

सब सम्भव हो जाता , मन नहिं  घबराता  ॥  ॐ जय  ॥

तुम बिन यज्ञ न होते , वस्त्र न हो पाता

खान – पान का वैभव सब तुमसे  आता ॥  ॐ जय  ॥

शुभ – गुण – मन्दिर  सुन्दर , क्षीरोदधि – जाता

रत्न चतुर्दश तुम बिन कोइ नहि पाता  ॥  ॐ जय  ॥

महालक्ष्मी जी कि आरति , जो कोई नर गाता

उर आनन्द समाता , पाप उतर जाता    ॥  ॐ जय  ॥

 

क्षमा – याचना

 

 मन्त्रहीनं  क्रियाहीनं  भक्तिहीनं सुरेश्वरि  ।  यत्युजितं मया देवी   परिपूर्ण तदस्तु मे ॥

श्री  महालक्ष्म्यै नमः   क्षमायाचनां  समर्पयामि

 

ना तो मैं आवाहन करना जानता हूँ , ना विसर्जन करना जानता हूँ और ना पूजा करना हीं जानता हूँ । हे परमेश्वरी  क्षमा करें । हे परमेश्वरी  मैंने जो मंत्रहीन , क्रियाहीन और भक्तिहीन पूजन किया है , वह सब आपकी दया से पूर्ण हो ।

 

“सफेद आक के सरलतम तंत्र प्रयोग”

 

गर्मियों के दिनों में प्रायः अनेक स्थानों पर श्वेतार्क के बीज उड़ते हुए दिखाई देते हैं। साधारण सी भाषा में इनकों बुढ़िया के बाल कह देते हैं। कहावत ही यदि मन की इच्छा बोलकर बुढ़िया के एक बाल को उड़ा दें तो इच्छा पूर्ण होती है। बचपन में हम भी यह खूब किया करते थे। सम्भवतः आपने भी यह सब सुना हो। इसको अर्श, मदार, अकौआ आदि भी कहते है। बरगद के पत्रों के समान इसके पत्ते भी मोटे से होते हैं। आयुर्वेद संहिताओं में इसकी गणना उपविषयों में की जाती है। अनेक चिकित्सकों द्वारा औषधीय रूप में मदार का उपयोग किया जाता है। अनेक रोगों से मुक्ति के लिए इस वृक्ष का बहुत बड़ा योगदान है। इसलिए इसको ‘वानस्पतिक पारद’ की संज्ञा दी गयी है। भदार की तीन प्रजातियाँ पाई जाती हैं। रक्तार्क, राजार्क और श्वेतार्क। तंत्र श्रेत्र में श्वेतार्क प्रजाति के मदार की बहुत उपयोगिता बताई गयी है। तीन चार वर्ष से अधिक पुराने वृक्ष की कुछ जड़ें लगभग गणेश जी की आकृति में प्रायः मिल जाती हैं।

सम्भव हो तो शुभ मुहूर्त में इसको विधिनुसार सावधानी से निकाल लें। यदि गणपति जी की आकृति स्पष्ट न हो तो किसी कारीगर से आकृति बनवाई भी जा सकती है। इसको अपने पूजा में रखकर नियमित पूजन- आराधना करने से त्रिसुखों की प्राप्ति होती है। शास्त्रों में मदार की स्तुति इस मंत्र से करने का विधान है।

 

“”चतुर्भुज रक्तनुंत्रिनेत्रं पाशाकुशौ मोदरक पात्र दन्तो, करैर्दधयानं सरसीरूहस्थं गणाधि नामंराशि चू यडमीडे।””

 

गणेशोपासना में लाल वस्त्र धारण करके लाल आसन, लाल पुष्प, लाल चंदन, लाल रत्न-उपरत्न की माला से पूजन तथा नैवेद्य में गुड़ तथा भूंग के लड्डू अर्पण करके निम्न मंत्र का जप करें। देव की कृपा साधक को अवश्य ही मिलेगी। ‘ऊँ वक्रतुण्डाय हुम’कुछ सरल से उपाय श्वेतार्क तंत्र पर पाठकों के लाभार्थ दे रहा हूँ। सहज, सुलभ होने के कारण कोई भी इनको सरलता से अपनाकर लाभ उठा सकता है।

 

  1. सफेद आक के फूलों से शिव पूजन करें, भोले बाबा की कृपा होगी।

 

  1. आक की जड़ रविपुष्य नक्षत्र में लाल कपड़े में लपेटकर घर में रख लें, घर में सुख-शांति तथा समृद्धि बनी रहेगी।

 

  1. श्वेतार्क के नीचे बैठकर प्रतिदिन साधना करें, जल्दी फल मिलेगा।

 

  1. वृक्ष के नीचे बैठकर प्रतिदिन ‘ऊँ गं गणपतये नमः’ की एक माला जप करें, हर क्षेत्र में लाभ मिलेगा।

 

  1. श्वेतार्क की जड़, गोरोचन तथा गोघृत में घिसकर तिलक किया करें, वशीकरण तथा सम्मोहन में इससे त्वरित फल मिलेगा।

 

  1. होलिका में श्वेतार्क की जड़ तथा छोटे से एक शंख की राख बनाकर रख लें। इससे नित्य तिलक किया करें, दुर्भिक्षों से रक्षा होगी।

 

  1. श्वेतार्क से गणपति की प्रतिमा बनाकर घर में स्थापित करें। नित्य एक दूर्वाघास अर्पण कर श्रद्धापूर्वक गणपति जी का ध्यान किया करें, प्रत्येक कार्य में सफलता मिलेगी तथा सब प्रकार के विघ्नों से आपकी रक्षा होगी।

 

  1. श्वेतार्क के पत्ते पर अपने शत्रु का नाम इसके ही दूध से लिखकर जमीन में दबा दिया करें, वह शांत रहेगा। इस पत्ते को जल प्रवाह कर दें तो शत्रु आपको छोड़कर और कहीं चला जाएगा। इस पत्ते से यदि होम करते हैं तब तो शत्रु का भगवान ही मालिक है ।

 

  1. श्वेतार्क के फल से निकलने वाली रुई की बत्ती तिल के तेल के दीपक में जलाकर लक्ष्मी साधनाएँ करें, माँ की आप पर कृपा बनी रहेगी ।

 

  1. श्वेतार्क की जड़, मूंगा, फिटकरी, लहसुन तथा मोर का पंख एक थैली में सिल लें। यह एक नजरबट्टू बन जाएगा। बच्चे के सोते समय चौंकना, डरना, रोना आदि में यह बहुत लाभदायक सिद्ध होगा।

 

  1. सफेद आक की जड़, गणेश चतुर्थी से अनन्त चतुर्दशी तक नित्य ‘ऊँ गं गणपतये नम’ मंत्र से पूजा करें, सुख, समृद्धि और धन की प्राप्ति होगी तथा मनोवांछित कामनाएं पूर्ण होंगी।

 

  1. श्वेतार्क व़ृक्ष पर नित्य ‘ऊँ नमो विघ्नहराय गं गणपतये नमः’ मंत्र जप करते हुए मिश्रित जल से अर्ध्य दिया करें, दुष्ट ग्रह शांत होंगे।

 

  1. सिंदूर मिश्रित चावल के आसन पर श्वेतार्क गणपति जी को विराजमान कर लें। हल्दी, चन्दन, धूप, दीप, नैवेद्य से देव की पूजा करें। नित्य गणपति स्तोत्र का पाठ किया करें, धन-धान्य का अभाव नहीं रहेगा।

 

  1. श्वेतार्क की जड़ ‘ऊँ नमो अग्नि रूपाय ह्रीं नमः’ मंत्र जपकर पास रख लें, यात्रा में दुर्घटना का भय नहीं रहेगा।

 

  1. श्वेतार्क की समिधाओं में ‘ ऊँ जूं सः रुं रुद्राय नमः सः जूँ ऊँ’ मंत्र जपते हुए हवन सामग्री होम किया करें रोग-शोक का नाश होने लगेगा।

 

  1. पूर्णिमा की रात्रि सफेद आक की जड़ तथा रक्तगुंजा को बकरी के दूध में घिसकर तिलक करें और ‘ऊँ नमः श्वेतगात्रे सर्वलोक वंशकरि दुष्टान वशं कुरू कुरू (अमुकं) में वशमानय स्वाहा’ मंत्र का जप करें। अमुक के स्थान पर उस व्यक्ति का नाम जप करें जिसको वश में करना है।

 

#मदार [आक] पृथ्वी पर अलौकिक और चमत्कारी

मदार (वानस्पतिक नाम) एक औषधीय पादप है। इसको मंदार’, आक, ‘अर्क’ और अकौआ भी कहते हैं। इसका वृक्ष छोटा और छत्तादार होता है। पत्ते बरगद के पत्तों समान मोटे होते हैं। हरे सफेदी लिये पत्ते पकने पर पी ले रंग के हो जाते हैं। इसका फूल सफेद छोटा छत्तादार होता है। फूल पर रंगीन चित्तियाँ होती हैं। फल आम के तुल्य होते हैं जिनमें रूई होती है। आक की शाखाओं में दूध निकलता है। वह दूध विष का काम देता है। आक गर्मी के दिनों में रेतिली भूमि पर होता है। चौमासे में पानी बरसने पर सूख जाता है।

आक के पौधे शुष्क, उसर और ऊँची भूमि में प्रायः सर्वत्र देखने को मिलते हैं। इस वनस्पति के विषय में साधारण समाज में यह भ्रान्ति फैली हुई है कि आक का पौधा विषैला होता है, यह मनुष्य को मार डालता है। इसमें किंचित सत्य जरूर है क्योंकि आयुर्वेद संहिताओं में भी इसकी गणना उपविषों में की गई है। यदि इसका सेवन अधिक मात्रा में कर लिया जाये तो, उल्दी दस्त होकर मनुष्य की मृत्यु हो सकती है। इसके विपरीत यदि आक का सेवन उचित मात्रा में, योग्य तरीके से, चतुर वैद्य की निगरानी में किया जाये तो अनेक रोगों में इससे बड़ा उपकार होता है।आक में विष इसकी पत्तियों और दूध में अधिक होता है ,अतः पत्तियों और दूध का प्रयोग बिना वैद्य की निगरानी अथवा सलाह के खाने या नाजुक अंगों पर लगाने से बचना चाहिए |जड का प्रयोग सावधानी के साथ किया जा सकता है |

 तन्त्र जगत के जानकार कोई भी व्यक्ति आक या मदार को जरुर जानता है |इसका तन्त्र में अतीव महत्वपूर्ण प्रयोग है |इससे स्वयमेव श्वेतार्क गणपति की उत्पत्ति होती है ,जो जीवन के समस्त अभाव ,दुःख ,कष्ट ,परेशानी ,असफलता समाप्त कर देता है ,सुख-समृद्धि-शांति-सुरक्षा-सफलता देता है |इससे समस्त षट्कर्म आकर्षण-वशीकरण-मोहन-मारन-विद्वेषण-उच्चाटन-शान्ति-पुष्टि-कर्म किये जा सकते हैं |यह साक्षात गणपति होता है और तुरंत प्रभावी भी |इसका जड अनेक tantra प्रयोगों के काम आता है |धारण मात्र अभिचार मुक्त कर सुरक्षा प्रदान करता है सब प्रकार से |हम अपने पूर्व के लेखों में अपने पेज अलौकिक शक्तियां और Tantra Marg पर श्वेतार्क और श्वेतार्क गणपति के बारे में अनेक बार लिख आये हैं अतः आज उन्हें न दोहराते हुए हम आज आक या मदार के चिकित्सकीय गुणों के बारे में चर्चा करेंगे |

 अर्क ,आक या मदार की तीन जातियाँ पाई जाती है-जो निम्न प्रकार है:

(१) रक्तार्क : इसके पुष्प बाहर से श्वेत रंग के छोटे कटोरीनुमा और भीतर लाल और बैंगनी रंग की चित्ती वाले होते हैं। इसमें दूध कम होता है।

(२) श्वेतार्क : इसका फूल लाल आक से कुछ बड़ा, हल्की पीली आभा लिये श्वेत करबीर पुष्प सदृश होता है। इसकी केशर भी बिल्कुल सफेद होती है। इसे ‘मंदार’ भी कहते हैं। यह प्रायः मन्दिरों में लगाया जाता है। इसमें दूध अधिक होता है। tantra  प्रयोगों में इसका अत्यधिक महत्त्व है |इसकी जड को साक्षात गणपति का स्वरुप माना जाता है और इससे समस्त प्रकार के षट्कर्म सिद्ध होते हैं |

(३) राजार्क : इसमें एक ही टहनी होती है, जिस पर केवल चार पत्ते लगते है, इसके फूल चांदी के रंग जैसे होते हैं, यह बहुत दुर्लभ जाति है।

इसके अतिरिक्त आक की एक और जाति पाई जाती है। जिसमें पिस्तई रंग के फूल लगते हैं।

 आक का हर अंग दवा है, हर भाग उपयोगी है। यह सूर्य के समान तीक्ष्ण तेजस्वी और पारे के समान उत्तम तथा दिव्य रसायनधर्मा हैं। कहीं-कहीं इसे ‘वानस्पतिक पारद’ भी कहा गया है।

 १. आक के पीले पत्ते पर घी चुपड कर सेंक कर अर्क निचोड कर कान में डालने से आधा शिर दर्द जाता रहता है। बहरापन दूर होता है। दाँतों और कान की पीडा शाँत हो जाती है।

 २. आक के कोमल पत्ते मीठे तेल में जला कर अण्डकोश की सूजन पर बाँधने से सूजन दूर हो जाती है। तथा कडुवे तेल में पत्तों को जला कर गरमी के घाव पर लगाने से घाव अच्छा हो जाता है। एवं पत्तों पर कत्था चूना लगा कर पान समान खाने से दमा रोग दूर हो जाता है।

 ३.  हरा पत्ता पीस कर लेप करने से सूजन पचक जाती है।

 ४. कोमल पत्तों के धूँआ से बवासीर शाँत होती है।

 ५. कोमल पत्ते खाय तो ताप तिजारी रोग दूर हो जाता है।

 ६. आक के पत्तों को गरम करके बाँधने से चोट अच्छी हो जाती है। सूजन दूर हो जाती है।

 ७. आक के फूल को जीरा, काली मिर्च के साथ बालक को देने से बालक की खाँसी दूर हो जाती है।

 ८.  मदार के फल की रूई रूधिर बहने के स्थान पर रखने से रूधिर बहना बन्द हो जाता है।

 ९. आक का दूध लेकर उसमें काली मिर्च पीस कर भिगोवे फिर उसको प्रतिदिन प्रातः समय मासे भर खाय 9 दिन में कुत्ते का विष शाँत हो जाता है। परंतु कुत्ता काटने के दिन से ही खावे।

  1. आक का दूध पाँव के अँगूठे पर लगाने से दुखती हुई आँख अच्छी हो जाती है। बवासीर के मस्सों पर लगाने से मस्से जाते रहते हैं। बर्रे काटे में लगाने से दर्द नहीं होता। चोट पर लगाने से चोट शाँत हो जाती है।
  2. जहाँ के बाल उड गये हों वहाँ पर आक का दूध लगाने से बाल उग आते हैं। तलुओं पर लगाने से महिने भर में मृगी रोग दूर हो जाता है।

 १२. आक के दूध का फाहा लगाने से मुँह का लक्वा सीधा हो जाता है।

 १३. आक की छाल को पीस कर घी में भूने फिर चोट पर बाँधे तो चोट की सूजन दूर हो जाती है।

 १४. आक की जड को दूध में औटा कर घी निकाले वह घी खाने से नहरूआँ रोग जाता रहता है।

 १५. आक की जड को पानी में घीस कर लगाने से नाखूना रोग अच्छा हो जाता है।

 १६.  आक की जड छाया में सुखा कर पीस लेवे और उसमें गुड मिलाकर खाने से शीत ज्वर शाँत हो जाता है।

 १७. आक की जड 2 सेर लेकर उसको चार सेर पानी में पकावे जब आधा पानी रह जाय तब जड निकाल ले और पानी में 2 सेर गेहूँ छोडे जब जल नहीं रहे तब सुखा कर उन गेहूँओं का आटा पिसकर पावभर आटा की बाटी या रोटी बनाकर उसमें गुड और घी मिलाकर प्रतिदिन खाने से गठिया बाद दूर होती है। बहुत दिन की गठिया 21 दिन में अच्छी हो जाती है।

  १८. आक की जड के चूर्ण में काली मिर्च पिस कर मिलावे और रत्ती -रत्ती भर की गोलियाँ बनाये इन गोलियों को खाने से खाँसी दूर होती है।

 १९. आक की जड पानी में घीस कर लगाने से नाखूना रोग जाता रहता है।

 २०. आक की जड के छाल के चूर्ण में अदरक का अर्क और काली मिर्च पीसकर मिलावे और 2-2 रत्ती भर की गोलियाँ बनावे इन गोलियों से हैजा रोग दूर होता है।

 २१. आक की जड की राख में कडुआ तेल मिलाकर लगाने से खिजली अच्छी हो जाती है।

 २२. आक की सूखी डँडी लेकर उसे एक तरफ से जलावे और दूसरी ओर से नाक द्वारा उसका धूँआ जोर से खींचे शिर का दर्द तुरंत अच्छा हो जाता है।

 २३. आक का पत्ता और ड्ण्ठल पानी में डाल रखे उसी पानी से आबद्स्त ले तो बवासीर अच्छी हो जाती है।

 २४. आक की जड का चूर्ण गरम पानी के साथ सेवन करने से उपदंश (गर्मी) रोग अच्छा हो जाता है। उपदंश के घाव पर भी आक का चूर्ण छिडकना चाहिये। आक ही के काडे से घाव धोवे।

 २५. आक की जड के लेप से बिगडा हुआ फोडा अच्छा हो जाता है।

 २६. आक की जड की चूर्ण 1 माशा तक ठण्डे पानी के साथ खाने से प्लेग होने का भय नहीं रहता।

 २७.  आक की जड का चूर्ण दही के साथ खाने से स्त्री के प्रदर रोग दूर होता है।

 २८. आक की जड का चूर्ण 1 तोला, पुराना गुड़ 4 तोला, दोनों की चने की बराबर गोली बनाकर खाने से कफ की खाँसी अच्छी हो जाती है।

 २९. आक की जड पानी में घीस कर पिलाने से सर्प विष दूर होता है।

 ३०. आक की जड का धूँआ पीने से आतशक (सुजाक) रोग ठीक हो जाता है। इसमें बेसन की रोटी और घी खाना चाहिये। और नमक छोड देना चाहिये।

 ३१. आक की जड और पीपल की छाल का भष्म लगाने से नासूर अच्छा हो जाता है।

 ३२. आक की जड का चूर्ण का धूँआ पीकर उपर से बाद में दूध गुड पीने से श्वास बहुत जल्दी अच्छा हो जाता है।

 ३३. आक का दातून करने से दाँतों के रोग दूर होते हैं।

 ३४. आक की जड का चूर्ण 1 माशा तक खाने से शरीर का शोथ (सूजन) अच्छा हो जाता है।

 ३५.  आक की जड 5 तोला, असगंध 5 तोला, बीजबंध 5 तोला, सबका चूर्ण कर गुलाब के जल में खरल कर सुखावे इस प्रकार 3 दिन गुलाब के अर्क में घोटे बाद में इसका 1 माशा चूर्ण शहद के साथ चाट कर उपर से दूध पीवे तो प्रमेह रोग जल्दी अच्छा हो जाता है।

 ३६. आक की जड की काडे में सुहागा भिगो कर आग पर फुला ले मात्रा 1 रत्ती 4 रत्ती तक यह 1 सेर दूध को पचा देता है। जिनको दूध नहीं पचता वे इसे सेवन कर दूध खूब हजम कर सकते हैं।

 ३७. आक की पत्ती और चौथाई सेंधा नमक एक में कूट कर हण्डी में रख कर कपरौटी आग में फूँक दे। बाद में निकाल कर चूर्ण कर शहद या पानी के साथ 1 माशा तक सेवन करने से खाँसी, दमा, प्लीहा रोग शाँत हो जाता है।

 ३८. आक का दूध लगाने से ऊँगलियों का सडना दूर होता है।

 ३९. आक की जड का चूर्ण गर्म और उत्तेजक होता है ,यह संतुलित मात्र में सेवन किया जाये तो बल पुष्टिकारक होता है |

 ४०. आक की जड़ को कानों पर रखने से पुराना बुखार उतरता है |

उपरोक्त जानकारी और चिकित्सकीय गुणों के साथ अगर आक या मदार के तन्त्र प्रयोगों और आध्यात्मिक-ईश्वरिय-दैविय गुणों को जोड़ दें तो हम पाते हैं की यह सामान्य सा दिखने वाला ,सर्वत्र उपेक्षित रूप से पाया जाने वाला पौधा हमारे लिए एक ईश्वरीय वरदान है ,जो हमारे समस्त कष्टों का हरण अपने अलुकिक शक्ति और गुणों से कर सकता है |बस हमें इस और ध्यान देने की जरूरत है |

विशेष

 

——– हमारा करबद्ध अनुरोध है की बिना सोचे समझे कोई भी प्रयोग केवल यह पोस्ट पढकर न करने लगें ,वैद्य की वहां अवश्य सलाह लें जहाँ खाने पीने की बात हो ,कटने या घाव आदि पर लगाने की बात हो ,नाजुक अंगों पर प्रयोग की बात हो |क्योकि आपकी जानकारी के लिए आक का दूध आँख में पड़ जाने पर व्यक्ति अंधा हो सकता है |अतः सावधानी और सलाह से ही प्रयोग करें |यह पोस्ट जानकारी देने के उद्देश्य से लिखी गयी है |सीधे प्रयोग करने को प्रोत्साहित करने के लिए नहीं ,अतः किसी नुक्सान के लिए हम जिम्मेदार नहीं होंगे |इसी तरह इसके tantra प्रयोगों को भी योग्य की देखरेख में ही किया जाता है |यह अमृत भी है और विष भी |

 

l, जय महाँकाल l

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