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श्री गणेश मन्त्र स्तोत्रम्

श्री गणेशाय नमः।

 

उद्दालक उवाच।

 

शृणु पुत्र महाभाग योगशान्तिप्रदायकम्।

येन त्वं सर्वयोगज्ञो ब्रह्मभूतो भविष्यसि।।१।।

चित्तं पञ्चविधं प्रोक्तं क्षिप्तं मूढं महामते।

विक्षिप्तं च तथैकाग्रं निरोधं भूमिसज्ञकम्।।२।।

तत्र प्रकाशकर्ताऽसौ चिन्तामणिहृदि स्थितः।

साक्षाद्योगेश योगेज्ञैर्लभ्यते भूमिनाशनात्।।३।।

 

चित्तरूपा स्वयंबुद्धिश्चित्तभ्रान्तिकरी मता।

सिद्धिर्माया गणेशस्य मायाखेलक उच्यते।।४।।

 

अतो गणेशमन्त्रेण गणेशं भज पुत्रक।

तेन त्वं ब्रह्मभूतस्तं शन्तियोगमवापस्यसि।।५।।

इत्युक्त्वा गणराजस्य ददौ मन्त्रं तथारुणिः।

एकाक्षरं स्वपुत्राय ध्यनादिभ्यः सुसंयुतम्।।६।।

 

तेन तं साधयति स्म गणेशं सर्वसिद्धिदम्।

क्रमेण शान्तिमापन्नो योगिवन्द्योऽभवत्ततः।।७।।

 

।। इति मुद्गलपुराणोक्तं श्री गणेश मंत्र स्तोत्र समाप्तम् ।।

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