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सष्ठी व्रत (शीतला षष्ठी व्रत) और इसका महत्व

परिचय

हिंदू धर्म में व्रत एवं उपवास का विशेष महत्व है। इन्हीं व्रतों में से एक प्रमुख व्रत *षष्ठी व्रत* होता है, जिसे विभिन्न रूपों में भारत के विभिन्न हिस्सों में मनाया जाता है। खासतौर पर *शीतला षष्ठी व्रत* अत्यंत प्रसिद्ध है, जिसे मुख्य रूप से संतान सुख और स्वास्थ्य के लिए किया जाता है। यह व्रत माता शीतला देवी को समर्पित होता है, जो रोगों से रक्षा करने वाली देवी मानी जाती हैं।

 

सष्ठी व्रत का महत्व

षष्ठी व्रत का अत्यंत धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व है। यह व्रत न केवल शारीरिक स्वास्थ्य को बनाए रखने में सहायक होता है, बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक शांति भी प्रदान करता है। इसे करने से विशेष रूप से माता शीतला की कृपा प्राप्त होती है, जो बीमारियों और संक्रमण से बचाने वाली देवी मानी जाती हैं। यह व्रत करने से परिवार में सुख-शांति बनी रहती है और बच्चों की दीर्घायु की कामना पूर्ण होती है।

शीतला षष्ठी व्रत की कथा

पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार एक राजा की रानी ने शीतला माता का व्रत और पूजन विधि के अनुसार नहीं किया, जिससे उनके पुत्रों को चेचक जैसी गंभीर बीमारी हो गई। राजा और रानी ने जब माता शीतला की सच्चे मन से पूजा-अर्चना की और सष्ठी व्रत का पालन किया, तब उनके पुत्र स्वस्थ हो गए। इस प्रकार, यह मान्यता है कि इस व्रत को करने से चेचक, खसरा, त्वचा रोग और संक्रामक बीमारियों से बचाव होता है।

व्रत की तिथि और समय

शीतला षष्ठी माघ माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को विशेष रूप से बंगाल और भारत के पूर्वी भागों में मनाई जाती है। भारत शीतला षष्ठी 2025 की तिथि 3 फरवरी है और यह देवी शीतला को समर्पित है। विभिन्न स्थानों पर इसे भिन्न-भिन्न नामों से जाना जाता है, लेकिन इसका मूल उद्देश्य माता शीतला की पूजा करके स्वास्थ्य और समृद्धि की प्राप्ति करना है।

 

व्रत की विधि

  1. *स्नान और संकल्प:*

   – प्रातःकाल स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।

   – माता शीतला की पूजा करने का संकल्प लें।

  

  1. *पूजा स्थल की व्यवस्था:*

   – माता शीतला की मूर्ति या चित्र की स्थापना करें।

   – चौकी पर जल, अक्षत (चावल), पुष्प और धूप-दीप की व्यवस्था करें।

 

  1. *माता शीतला की पूजा:*

   – माता को हल्दी, कुमकुम, चावल और फूल अर्पित करें।

   – गंध, धूप, दीप और नैवेद्य चढ़ाएं।

   – शीतला माता की आरती करें।

 

  1. *भोग एवं प्रसाद:*

   – व्रत में विशेष रूप से ठंडा भोजन करने की परंपरा है।

   – गरम भोजन का सेवन निषेध होता है।

   – आमतौर पर बासी भोजन, दही, चूरा और मीठे व्यंजन का प्रसाद चढ़ाया जाता है।

 

  1. *दान और कथा श्रवण:*

   – ब्राह्मणों और जरूरतमंदों को भोजन व दक्षिणा दें।

   – शीतला माता की कथा का श्रवण करें।

 व्रत के लाभ

  1. *संतान सुख और दीर्घायु:*

   – माता शीतला की कृपा से संतान निरोगी और दीर्घायु होती है।

 

  1. *बीमारियों से रक्षा:*

   – इस व्रत को करने से चेचक, खसरा, स्किन इंफेक्शन और अन्य संक्रामक रोगों से बचाव होता है।

 

  1. *मन की शांति:*

   – माता की पूजा से मनोबल बढ़ता है और मानसिक शांति मिलती है।

 

  1. *पारिवारिक सुख-समृद्धि:*

   – परिवार में सुख-शांति और सौहार्द बना रहता है।

विभिन्न राज्यों में व्रत की परंपरा

– *उत्तर भारत:* बिहार, उत्तर प्रदेश और राजस्थान में इसे बड़े धूमधाम से मनाया जाता है।

– *पश्चिम बंगाल:* इसे बसंती पूजा के रूप में मनाया जाता है।

– *गुजरात और महाराष्ट्र:* यहाँ माता शीतला को गृहस्थ जीवन की संरक्षिका माना जाता है और महिलाएँ विशेष रूप से इस व्रत को रखती हैं।

 

 निष्कर्ष

शीतला षष्ठी व्रत हिंदू धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण व्रतों में से एक है। यह व्रत न केवल धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण है, बल्कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी स्वास्थ्य को बनाए रखने में सहायक है। माता शीतला की कृपा से परिवार में सुख-समृद्धि, संतान की रक्षा और आरोग्यता प्राप्त होती है। अतः इस व्रत को श्रद्धा और विश्वास के साथ करना चाहिए ताकि जीवन में सुख, शांति और समृद्धि बनी रहे।

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