शनिश्चरी अमावस्या, सूर्यदेव और देवी छाया के पुत्र भगवान शनि के अवतरण दिवस के रूप में मनाया जाता है, इस उत्सव को शनि जयंती भी कहा जाता है। श्री शनि, शनि ग्रह को नियंत्रित करते हैं, और इनकी मुख्यतया शनिवार के दिन पूजा व अर्चना की जाती है। श्री शनिदेव को न्याय का देवता माना जाता है।
श्री हनुमान जी ने रावण की कैद से शनिदेव को मुक्त कराया था, इसलिए शनिदेव के कथनानुसार, जो भी भक्त श्री हनुमंत लाल की पूजा करते हैं, वे भक्त शनि देव के अति प्रिय और कृपा पात्र होते हैं। अतः शनिदेव के साथ-साथ हनुमान जी की पूजा का भी विधान माना गया है।
कुंडली में शनि दोष, शनि ढैय्या या साढ़ेसाती है, तो शनिश्चरी अमावस्या इन सभी प्रकार की बाधाओं से मुक्ति दिलाएगी। शनि अमावस्या के दिन शनि देव की कृपा पाने हेतु शनि मंदिर अथवा नवग्रह धाम मंदिर जाएं और भगवान शनि की पूजा करें, तथा दशरथकृत शनि स्तोत्र का भी पाठ करना चाहिए।
संबंधित अन्य नाम – शनिश्चरी अमावस्या, शनि अमावस्या, शनिश्चरा जयंती
शुरुआत तिथि – ज्येष्ठ कृष्णा अमावस्या
कारण – श्री शनि देव की अवतरण।
उत्सव विधि – श्री शनि मंदिर में उपवास, दान, शनि तैलाभिषेकम, शनि शांति पूजा, प्रार्थना / हवन / यज्ञ।
शनि जयंती पूजा विधि
◉ शनि जयंती पर, भारत के विभिन्न हिस्सों में विभिन्न अनुष्ठान किए जाते हैं।
◉ शनि जयंती के दिन, भक्त एक विशेष पूजा समारोह, यज्ञ, या होम करते हैं जो आमतौर पर शनि मंदिरों या नवग्रह मंदिरों में आयोजित किया जाता है।
◉ अनुष्ठान शुरू करने से पहले, भक्त पूजा स्थल और देवता की मूर्ति को भी साफ करते हैं। पानी, तेल, पंचामृत और गंगाजल से सफाई की जाती है।
◉ देवता को प्रसन्न करने और जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए, भक्त शनि पाठ या शनि स्तोत्र का पाठ करते हैं।
◉ बाधा मुक्त जीवन जीने के लिए भक्त शनि जयंती के दिन सरसों के तेल, तिल और काले रंग के कपड़े का दान भी करना पड़ता है।
◉ लोग सख्त उपवास भी रखते हैं और जानवरों को विशेष रूप से काले कुत्ते या कौवे खिलाते हैं।
शनि जयंती के दिन पूजा के बाद निम्न मंत्रों का जाप करें। यह जाप कम से कम 11 मनकों का होना चाहिए। जाप शुरू करने से पहले तेल का दीपक जलाकर दक्षिण दिशा की ओर मुंह करें।
ऊँ शं अभय नमः
ऊँ शं शनैश्चराय नमः
नी नीलंजनसमाभाम सन पुत्रं यमाग्रजं श्योमर्त्तण्डसंभूतं तं नमामि शनैश्चरम।