हम सबो ने रोड पर गाड़ियों से चलते गाँवो के किनारे खेजड़ी के वृक्षों पर पिले कपड़े चढ़े हुए अक्सर देखे ही होंगे ज़ब दूल्हा विवाह करने जाता है तो विवाह यात्रा मे ससुराल की परिधि मे पहुंचने के पूर्व शमी पूजन कांकड खेजड़ी का पूजन अवश्य करता है ,
शमी पूजन सनातन धर्म मे बहुत विशिष्ट स्थान रखता है, श्रीमद्देवीभागवत मे जगदम्बा के भक्त सुदर्शन और शशिकला के विवाह के समय ज़ब शशिकला जी को राजकुमार सुदर्शन जी से बलपूर्वक राजागण हरण करने जाते है तब जगदम्बा अपने भक्त की रक्षा के लिए खेजड़ी वृक्ष से प्रगट हो जाती है, और दुष्टो का संहार कर देती है, तब से प्रत्येक विवाह के समय राजाओं मे शमी पूजन की परम्परा बनी और अब प्रत्येक वर्ग के लोग विवाह के समय शमी पूजन ईस भाव से करते है की जिस प्रकार आपने भक्त सुदर्शन जी की रक्षा की उसी प्रकार हमारे लाडले वर की भी रक्षा करना, खेजड़ी वृक्ष मे साक्षात् माता जगदम्बा पंचमुखी दशभुजा विजया देवी के रुप मे निवास करती है, जो भक्तो को विजय प्रदान करती है,
सुदर्शन जी के बाद भगवान श्रीराम ने भी लंका विजय के पहले शमी वृक्ष का पूजन किया था, पांडवो ने अज्ञात वास के समय अपने अस्त्र शस्त्र खेजड़ी वृक्ष मे ही छुपाकर रखे थे और विजया दशमी को शस्त्रों का पूजन करके पुनः उन्हें ग्रहण किया था, अस्तु,
आजकल ऐक कुप्रथा चल पड़ी है जो अनेको विवाहों मे देखने को मिल जाती है,
खेजड़ी मे माताजी का पूजन तो बड़े ही धूमधाम से करते है पिले वस्त्र भी अर्पण करते है पतासे पान चुडिया सभी चढ़ाते है और फिर उसी खेजड़ी को अपनी तलवार से काट भी देते है,
यह तो वेसे ही है जैसे कोई आपका खूब सम्मान करने के बाद अचानक से घोर अपमान करदे
खेजड़ी पूजन के बाद उसको खड़ग स्पर्श करने का विधान है जिससे जिन विजया देवी की आपने पूजन की है उनसे प्रार्थना की जाती है की माँ आप अपनी शक्ति हमारी खड़ग मे भर दे जिससे हम शत्रुओ से विघ्न बाधाओं से सुरक्षित रहे, और हम माताजी पर ही खड़ग चला देते है,
शक्ति भक्तो के लिए प्रत्येक विजया दशमी को शमी पूजन का विधान है, आज भी विजया दशमी को खेजड़ी के पत्ते कही कही प्रसाद रुप मे बाँटे जाते है,
जिस प्रकार बढ़ पीपल तुलसी आंवला वृक्षों को हम पूजते है पर काटते नहीं उसी प्रकार शमी खेजड़ी भी पूजनीय है,
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खेजड़ी पूजन का मन्त्र
शमी शम्यते पापम् शमी शत्रुविनाशिनी।
अर्जुनस्य धनुर्धारी रामस्य प्रियदर्शिनी।।
करिष्यमाणयात्राया यथाकालम् सुखम् मया।
तत्रनिर्विघ्नकर्त्रीत्वं भव श्रीरामपूजिता।।’
शमी वृक्ष भगवान शनिदेव का वृक्ष है जो भक्त शनिवार को माँ भगवती को खेजड़ी के पत्ते अर्पण करते है उनके शत्रुओ का नाश होता है, और साढ़े साती ढय्या शनि महा दशाओ से शांति प्राप्त होती है