कोई भी ग्रह जब सूर्य के बहुत निकट आ जाता है तब उन्हें अस्त मन जाता है।
सूर्य के करण सभी ग्रहों की अस्त स्थिति का निर्माण होता है। इसलिए सूर्य कभी अस्त नहीं होते।
मुहूर्त और ज्योतिष की गणना में , यदि सूर्य और ग्रह एक ही नक्षत्र के एक ही चरण में हो तो ग्रह को अस्त माना जाता है।
ज्योतिष शास्त्र में उसे और सरलता से समझने के लिए अंशों में व्याखा की गई है। सभी ग्रहो का अस्त होने के अंश अलग अलग है।
सूर्य की तरह, राहु, केतु भी कभी अस्त नहीं होते। सरलता से समझे तो राहु , केतु का कोई भौतिक शरीर ना होने के कारण वह दिखाई भी नहीं देते। विज्ञान में राहु केतु के अस्तित्व को एक काल्पनिक बिंन्धु माना गया है। जिसके कारण गणित पद्धति से ग्रहण का समय निर्धारण किया जाता है। फर्क सिर्फ इतना है कि विज्ञान उन्हें राहु केतु से सम्बोधित ना कर उत्तरी नोड और दक्षिणी नोड कहता है। यह शस्त्रों की महानता है कि विज्ञान के कालपनिक बिन्दुओं की व्याखा बहुत पहले कर दी गई थी।
चंद्र 12अंश पर स्थित हो तो अस्त माने जाते हैं, और दो दिन बाद फिर उदय हो जाते हैं।
सूर्य से 12अंश पहले और सूर्य से 12अंश बाद। यानि 24 अंश का सूर्य के निकट गोचर से चन्द्रमा की अस्त स्थिति का निर्माण होता है। चंद्रमा सवा दो दिन में 30अंश का गोचर अर्थात राशि परिवर्तन करते हैं। इसलीये सूर्य से 12अंश और सूर्य के बाद 12अंश का गोचर दो दिन में लगभग पूरा कर लेते हैं। दो दिन बाद अस्त स्थिति से निकल कर उदय हो जाते है।
मंगल: मंगल 17 अंश सूर्य के निकट होने पर अस्त माने जाते हैं। 17 अंश पहले और 17 अंश बाद तक। मंगल ग्रह 118 दिनो में 34 अंश का गोचर करते हैं। इसलीये अन्य ग्रहो की तुलाना में सबसे अधिक दिनो तक अस्त रहते है। इसका एक सरल कारण यह है कि सूर्य और चंद्रमा की गति में अधिक फर्क नहीं है।
भू केंद्रीय आधार ज्योतिष का अर्थ यह है कि पृथ्वी को स्थिर माना गया है, और पृथ्वी की गत्ती को सूर्य की गति का आधर मान लिया गया है। मंगल पृथ्वी के निकटतम ग्रहो में से एक है। इसलिए सूर्य और मंगल की गति में ज्यादा अंतर नहीं है। पृथ्वी 29 किमी/सेकंड और मंगल 24 किमी/सेकेंड की गति से परिक्रमा करते हैं। पृथ्वी को स्थिर मान सूर्य को पुथ्वी की गति 29 किमी/सेकेंड प्रदान की गई है। इसलीये सूर्य और मंगल नजदीक आने पर अधिक समय तक एक दूसरे के साथ गोचर करते हैं और मंगल इसीलिये अन्य ग्रहो की तुलना में अधिक दिनो तक अस्त रहते है।
बुध 14 अंश, 11 से 12 दिन और वक्री स्थिति में 12 अंश, 21 से 33 दिन तक अस्त होते हैं।
बृहस्पति: 11अंश, 28 दिनो तक अस्त होते हैं।
शुक्र: 10 अंश 53 दिन और वक्री अवस्था में, 8 अंश और 5 दिन तक अस्त रहते हैं।
शनि : 16अंश, 57 दिनों तक अस्त होते हैं।
बुध और शुक्र आंतरिक ग्रह हैं, सूर्य और पुथ्वी की कक्षा से निकट है। इसलिए वक्री अवस्था में भी अस्त होते हैं। सभी जानते हैं कि चंद्रमा कभी वक्री नहीं होते। मंगल, बृहस्पति और शनि कभी वक्री अवस्था में अस्त नहीं होते। यह तीन ग्रह, मंगल , गुरु और शनि, सूर्य से 120अंश से 240अंश के मध्य होने पर ही वक्री होते हैं। इसलिये वक्री अवस्था में इनका सूर्य से दुरी अधिक होने के कारण , मंगल, गुरु और शनि का वक्री अवस्था में अस्त होना संभव नहीं होता।
हम सभी जानते हैं कि जन्म कुंडली जातक के जीवन का विशेषण है। किसी भाव का फल कब प्राप्त होगा यह दशा/अंतर्दश से निर्धारित किया जाता है। यह भी जानते हैं सही समय पर सही दशा का होना भी बहुत आवश्यक होता है। 80 साल की उम्र मे यदि भोगविलास, शादी विवाह और लंबी यात्रा के स्वामी सप्तमेश की दशा अंतर्दशा हो तो जातक भोग विलास का क्या आनंद ले पाएंगे। इस दशा का प्रभाव यह होगा कि जातक के घर में किसी ना किसी प्रकार का मांगलिक या उत्सव संबंधित कार्य होगा। परिवार का कोई सदस्य लंबी यात्रा पर जायेगा जिसका सुख और आनंद जातक को भी मिलेगा।
डी 1, जन्मकुंडली में अगर शुक्र अस्त है तो जातक के जीवन में भोग विलास नहीं होगा ऐसा फलकथन उचित नहीं है। जातक के जीवन में भोग विलास होगा लेकिन जितना जातक चाहता है उसमें कमी हो सकती है। और ऐसा कब होगा , जब शुक्र की दशा ,अंतर्दशा या प्रत्यंतर्दशा हो। यदि अस्त ग्रह की अंतर्दशा या प्रत्यंतर्दशा हो तो जातक को ग्रह के फल में कमी होगी। किसी भी ग्रह या भाव का फल , ग्रह की दशा/ अंतर्दशा के दौरान ही प्राप्त होता है। जब जातक के सुखेश ( सुख भाव के स्वामी) की दशा अंतर्दशा होगी, तभी जातक में भुमि,मकान और वाहन खरीदने की प्रबल इच्छा होगी।
यदि मंगल त्रिकोण का स्वामी है, और मंगल की दशा अंतर्दशा के दौरन मंगल अस्त हो जाते हैं। मंगल का वर्तमान फल में कमी आएगी लेकिन 118 दिन बाद जब मंगल उदिता हो जाएंगे तब अपना फल पूर्ण रूप से प्रदान करेंगे।
ग्रह के वक्री होने से भी अधिक प्रभाव ग्रह के अस्त होने से होता है। क्योंकि ग्रह संपूर्ण रूप से सूर्य के प्रकाश के प्रभाव में होता है। सरल शब्दों में कहें तो ग्रह सूर्य के अधीन हो जाता है और अपने कार्य तत्वों के फल देने की सक्षमता खो देता है। इस बात पर भी ध्यान देना होगा कि जब सूर्य, ग्रह को अपने प्रभाव में लेते है या अपने अधीन कर लेते हैं तो हमें ग्रह के कार्यों तत्वों को भी अपने अधीन कर लेते हैं । ऐसा माना जाता है, जब सूर्य गरू को अपने अधीन या अस्त करते हैं, तो अस्त ग्रह के कार्य तत्वों को अपनी दशा अंतर्दशा में प्रदान भी करते हैं।
डी1 जन्म कुंडली मे अस्त ग्रह के प्रभाव के लिए ग्रह के स्वामित्व वाले भाव और ग्रह के कार्य तत्वों को जानना आवश्यक होगा। गोचर वर्तमान में अस्त ग्रह के प्रभाव की व्याख्या है। दशा अंतर्दशा के फल को जातक प्राप्त करें , इसके लिए गोचर देखना आवश्यक होता है।
डी 1 जन्मकुंडली में अस्त और गोचर में अस्त ग्रह । यह स्थिति समान है, लेकिन फलकथन में गोचर ग्रह के अस्त होने से फल प्रभावित होगा। जन्मकुंडली में ग्रह अस्त है तो उसका क्या उपाय किया जा सकता है। क्या पूजा पाठ या कर्मकांड से ग्रह को उदय किया जा सकता है। पूजा पाठ और कर्म कांड अस्त ग्रह के फल को भोग करने का समर्थ प्रदान करते हैं। जातक को सक्षम बनाते है । ताकि जन्म कुंडली में, अस्त ग्रह होने की स्थिति में जातक को उसके फल को संयम, सामर्थ और एक अच्छी सोच से उन्हें स्वीकार कर सके।
गोचर में यदि मंगल ग्रह अस्त है लेकिन जातक की कुंडली में ना तो मंगल ग्रह की महादशा अंतर्दशा या प्रत्यंतर दशा। ऐसी स्थिति में जातक के जीवन में मंगल के अस्त होने का कोई प्रभाव नहीं होगा। अगर किसी जातक की कुंडली में मंगल की अंतर्दशा है तब जातक को मंगल के कार्य और मंगल जिन भाव के स्वामी हैं। उन भाव के फल में कमी आएगी।
गोचर में ग्रह के फल देने की क्षमता का निर्धारण किया जाता है। यदि गोचर में ग्रह अस्त है तो फल में कमी होगी। गोचर का महत्व ये है कि गोचर से दशा अंतर्दशा का कितना फल प्राप्त होगा यह निर्धारण किया जाएगा। कौन सा ग्रह गोचर में कितने दिन अस्त होगा। यह जान चुके है।
दशाफल में, अंतर्दशा का प्रभाव प्रबल होता है। वर्तमान में जो फल प्राप्त होगा वह अंतर्दशानाथ का होगा। यदि अंतर्दशानाथ अस्त हो जाए तो निसंदेह फल में कमी आएगी। अन्तर्दशा किस भाव और भावेश की है, यह डी-1, जन्म कुंडली से देखा जायेगा। दशा का फल कैसा और कितना प्राप्त होगा इसका अंतिम निर्णय, ग्रह के गोचर से निश्चित होगा।