सूर्य शनि, सूर्य राहु- महाकाली, तारा, शरभराज, नीलकंठ, यम, उग्रभैरव, कालभैरव, श्मशान भैरव की पूजा करें।
सूर्य बुध, सूर्य मंगल- गायत्री, सरस्वती, दुर्गा उपासना।
सूर्य शुक्र- वासुदेव, मातडंगी, तारा, कुबेर,
भैरवी, श्रीविद्या की उपासना करें।
सूर्य केतु- छिन्नमस्ता, आशुतोष शिव, अघोर शिव।
सूर्य शनि राहु- पशुपतास्त्र तंत्र, मंत्र मरणादि षट्कर्म से व्यक्ति अधिकतर पीड़ित होगा। रक्षा के लिए काली, तारा, प्रत्यंगिरा, जातवेद दुर्गा की उपासना करें।
सूर्य, गुरु, राहु- बगलामुखी, बगलाचामुंडा, उचिष्ट गणपति, वीरभद्र। केवल बगलामुखी उपासना से सिद्धि मिले, परंतु या तो सिद्धि दूसरों के लिए नष्ट होगी या देवी नाराज होकर वापस ले लेंगी।
गुरु- विष्णु, शिव याज्ञिक कर्म बगलामुखी उपासना करें। यदि कुंडली में 6, 8,12वें स्थान में हो तो बगलामुखी उपासना में विलंब से लाभ होए, गुरु राहु, गुरु शनि योग से भी विलंब से लाभ होए, सिद्धि प्राप्त होए किंतु पुनः क्षय हो जाए। गायत्री उपासना अवश्य करें।
गुरु- शुक्र, गुरु शनि, गुरु मंगल, गुरु राहु, गुरु केतु योग से साधना में विलंब आते हैं या सिद्धि विलंब से होती है जिससे साधना में श्रद्धा-अश्रद्धा पैदा हो जाती है अतः गुरु का उपयोग करें।
शुक्र- लक्ष्मी, तंत्र-मंत्र मार्ग का ज्ञाता होए। शिव, मृत्युञ्जय श्री विद्या, त्रिपुर सुंदरी, दुर्गा उपासना, हेरंब, गणपति, मातंगी, शाकंभरी, शबरी उपासना शुभ रहे। शुक्र-शनि, शुक्र-राहु, शुक्र-केतु, योग से क्षुद्र सिद्धि की ओर साधक का मन दौड़ता है।
शनि- शनि उपासना से पूर्व पापों का क्षय होता है। दुर्गा, काली, तारा, आसुरी दुर्गा व भैरवादि की उपासना करता है।
शनि- राहु, शनि, केतु आदि के कारण भी मानसिक यातनाएं प्राप्त होती हैं अतः शत्रुओं को दंड देने हेतु उग्र साधनाएं करता है।
कभी-कभी धूमावती की उपासना से भी ऐसे पापों व विघ्नों का निवारण होता है, परंतु धूमावती उपासना आसान नहीं है। सोच-समझकर ही करें, क्योंकि धूमावती विघ्नों की अधिष्ठात्री हैं, अमंगलयुक्ता हैं, अतः आह्वानघरमें न करें।
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