Sshree Astro Vastu

Generic selectors
Exact matches only
Search in title
Search in content
Post Type Selectors

मणिकर्ण के रहस्य

मणिकर्ण भारत के हिमाचल प्रदेश राज्य में कुल्लू जिले के भुंतर से उत्तर पश्चिम में पार्वती घाटी में व्यास और पार्वती नदियों के मध्य बसा है, जो हिन्दुओं और सिक्खों का एक तीर्थस्थल है। यह समुद्र तल से 1750 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है और कुल्लू से इसकी दूरी लगभग 45 किमी है। भुंतर में छोटे विमानों के लिए हवाई अड्डा भी है।

 

भुंतर-मणिकर्ण सडक एकल मार्गीय (सिंगल रूट) है, पर है हरा-भरा व बहुत सुंदर। सर्पीले रास्ते में तिब्बती बस्तियां हैं। इसी रास्ते पर शॉट नाम का गांव भी है, जहां कई बरस पहले बादल फटा था और पानी ने गांव को नाले में बदल दिया था।

मणिकर्ण अपने गर्म पानी के चश्मों के लिए भी प्रसिद्ध है। देश-विदेश के लाखों प्रकृति प्रेमी पर्यटक यहाँ बार-बार आते है, विशेष रूप से ऐसे पर्यटक जो चर्म रोग या गठिया जैसे रोगों से परेशान हों यहां आकर स्वास्थ्य सुख पाते हैं। ऐसा माना जाता है कि यहां उपलब्ध गंधकयुक्त गर्म पानी में कुछ दिन स्नान करने से ये बीमारियां ठीक हो जाती हैं। खौलते पानी के चश्मे मणिकर्ण का सबसे अचरज भरा और विशिष्ट आकर्षण हैं। प्रति वर्ष अनेक युवा स्कूटरों व मोटरसाइकिलों पर ही मणिकर्ण की यात्रा का रोमांचक अनुभव लेते हैं।

 

 

मणिकर्ण में गर्म पानी का चश्मा

 

 

समुद्र तल से छह हजार फुट की ऊँचाई पर बसे मणिकर्ण का शाब्दिक अर्थ है, कान की बाली। यहां मंदिर व गुरुद्वारे के विशाल भवनों से लगती हुई बहती है पार्वती नदी, जिसका वेग रोमांचित करने वाला होता है। नदी का पानी बर्फ के समान ठंडा है। नदी की दाहिनी ओर गर्म जल के उबलते स्रोत नदी से उलझते दिखते हैं। इस ठंडे-उबलते प्राकृतिक संतुलन ने वैज्ञानिकों को लंबे समय से चकित कर रखा है। वैज्ञानिकों का कहना है कि यहाँ के पानी में रेडियम है।

मणिकर्ण में बर्फ खूब पड़ती है, मगर ठंड के मौसम में भी गुरुद्वारा परिसर के अंदर बनाए विशाल स्नानास्थल में गर्म पानी में आराम से नहाया जा सकता है, जितनी देर चाहें, मगर ध्यान रहे, अधिक देर तक नहाने से चक्कर भी आ सकते हैं। पुरुषों व महिलाओं के लिए अलग-अलग प्रबंध है। दिलचस्प है कि मणिकर्ण के तंग बाजार में भी गर्म पानी की आपुर्ति की जाती है, जिसके लिए विशेष रूप से पाइप भी बिछाए गए हैं। अनेक रेस्त्राओं और होटलों में यही गर्म पानी उपलब्ध है। बाजार में तिब्बती व्यवसायी छाए हुए हैं, जो तिब्बती कला व संस्कृति से जुडा़ सामान और विदेशी वस्तुएं उपलब्ध कराते हैं। साथ-साथ विदेशी स्नैक्स व भोजन भी।

इन्हीं गर्म चश्मों में गुरुद्वारे के लंगर के लिए बडे-बडे गोल बर्तनों में चाय बनती है, दाल व चावल पकते हैं। पर्यटकों के लिए सफेद कपड़े की पोटलियों में चावल डालकर धागे से बांधकर बेचे जाते हैं। विशेषकर नवदंपती इकट्ठे धागा पकडकर चावल उबालते देखे जा सकते हैं, उन्हें लगता हैं कि यह उनकी जीवन का पहला खुला रसोईघर है और सचमुच रोमांचक भी। यहां पानी इतना खौलता है कि भूमि पर पांव नहीं टिकते। यहां के गर्म गंधक जल का तापमान हर मौसम में एक सामान ९४ डिग्री सेल्सियस रहता है। कहते हैं कि इस पानी की चाय बनाई जाए तो आम पानी की चाय से आधी चीनी डालकर भी दो गुना मीठी हो जाती है। गुरुद्वारे के विशालकाय किलेनुमा भवन में ठहरने के लिए पर्याप्त स्थान है। छोटे-बड़े होटल व कई निजी अतिथि गृह भी हैं। ठहरने के लिए तीन किलोमीटर पहले कसोल भी एक शानदार विकल्प है।

 

मणिकर्ण का प्रमुख गुरुद्वारा

 

मणिकर्ण में बहुत से मंदिर और एक गुरुद्वारा है। सिखों के धार्मिक स्थलों में यह स्थल विशेष स्थान रखता है। गुरुद्वारा मणिकर्ण साहिब गुरु नानकदेव की यहां की यात्रा की स्मृति में बना था। जनम सखी और ज्ञानी ज्ञान सिंह द्वारा लिखी तवारीख गुरु खालसा में इस बात का उल्लेख है कि गुरु नानक ने भाई मरदाना और पंच प्यारों के साथ यहां की यात्रा की थी। इसीलिए पंजाब से बडी़ संख्या में लोग यहां आते हैं। पूरे वर्ष यहां दोनों समय लंगर चलता रहता है।

यहाँ पर भगवान राम, भगवान कृष्ण, भगवान विष्णु और भगवान शिव के मंदिर हैं। हिंदू मान्यताओं में यहां का नाम इस घाटी में शिव के साथ विहार के दौरान पार्वती के कान (कर्ण) की बाली (मणि) खो जाने के कारण पडा़। एक मान्यता यह भी है कि मनु ने यहीं महाप्रलय के विनाश के बाद मानव की रचना की थी। यहां रघुनाथ मंदिर है। कहा जाता है कि कुल्लू के राजा ने अयोध्या से भगवान राम की मू्र्ति लाकर यहां स्थापित की थी। यहां शिवजी का भी एक पुराना मंदिर है। इस स्थान की विशेषता का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि कुल्लू घाटी के अधिकतर देवता समय-समय पर अपनी सवारी के साथ यहां आते रहते हैं।

 

मणिकर्ण अन्य कई मनलुभावन पर्यटक स्थलों का आधार स्थल भी है। यहां से आधा किमी दूर ब्रह्म गंगा है जहां पार्वती नदी व ब्रह्म गंगा मिलती हैं। यहां थोडी़ देर रुकना प्रकृति से जी भर मिलना है। डेढ़ किमी दूर नारायणपुरी है, 5 किमी दूर राकसट है, जहां रूप गंगा बहती हैं। यहां रूप का आशय चांदी से है। पार्वती पदी के बांई ओर 16 किलोमीटर दूर और 1600 मीटर की कठिन चढा़ई के बाद आने वाला सुंदर स्थल पुलगा जीवन अनुभवों में शानदार बढोतरी करता है। इसी प्रकार 22 किमी दूर रुद्रनाथ लगभग 8000 फुट की ऊंचाई पर बसा है और पवित्र स्थल माना जाता रहा है। यहां खुल कर बहता पानी हर पर्यटक को नया अनुभव देता है।

 

मणिकर्ण से लगभग 25 किमी दूर, दस हजार फुट से अधिक की ऊंचाई पर स्थित खीरगंगा भी गर्म जल सोतों के लिए जानी जाती हैं। यहां के पानी में भी औषधीय तत्व हैं। एक स्थल पांडव पुल 45 किमी दूर है। गर्मी में मणिकर्ण आने वाले रोमांचप्रेमी लगभग 115 किमी दूर मानतलाई तक जा पहुंचते हैं। मानतलाई के लिए मणिकर्ण से तीन-चार दिन लग जाते हैं। सुनसान रास्ते के कारण खाने-पीने का सामान, दवाएं इत्यादि साथ ले जाना नितांत आवश्यक है। इस दुर्गम रास्ते पर मार्ग की पूरी जानकारी रखने वाले एक सही व्यक्ति को साथ होना बहुत आवश्यक है। संसार से विरला, अपने प्रकार के अनूठे संस्कृति व लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था रखने वाला अद्भुत ग्राम मलाणा का मार्ग भी मणिकर्ण से लगभग 15 किमी पीछे जरी नामक स्थल से होकर जाता है। मलाणा के लिए नग्गर से होकर भी लगभग 15 किलोमीटर पैदल रास्ता है। इस प्रकार यह समूची पार्वती घाटी पर्वतारोहिण के शौकीनों के लिए स्वर्ग के समान है।

 

कितने ही पर्यटकों से छूट जाता है कसोल, जो कि मणिकर्ण से तीन किमी पहले आता है। यहां पार्वती नदी के किनारे, पेडों के बीच बसे खुलेपन में पसरी सफेद रेत, जो कि पानी को हरी घास से विलग करती है, यहां की दृश्यावली को विशेष बना देती है। यहां ठहरने के लिए हिमाचल पर्यटन के हट्स भी हैं।

 

मणिकर्ण की घुम्मकडी के दौरान आकर्षक पेड पौधों के साथ-साथ अनेक रंगों की मिट्टी के मेल से रची लुभावनी पर्वत श्रृंखलाओं के दृश्य मन में बस जाते हैं। प्रकृति के यहां और भी कई अनूठे रंग हैं। कहीं सुंदर पत्थर, पारदर्शी क्रिस्टल जो देखने में टोपाज जैसे होते है, मिल जाते हैं। तो कहीं चट्टानें अपना अलग ही आकार ले लेती हैं जैसे कि बीच सडक पर टकी ईगल्स नोज जो दूर से बिल्कुल किसी बाज के सिर जैसी लगती है। प्रकृति प्रेमी पर्यटकों को सुंदर ड्रिफ्टवुडस या फिर जंगली फूल-पत्ते मिल जाते हैं, जो उनके अतिथि कक्ष का स्मरणीय अंग बन जाते हैं और मणिकर्ण की रोमांचक स्मृतियों के स्थायी साक्ष्य बने रहते हैं।

 

1905 में आए विनाशकारी भूकंप के बाद इस क्षेत्र का भूगोल बहुत-कुछ बदल गया था।

 

पठानकोट (285 किमी) और चंडीगढ़ (258 किमी) सबसे निकट के रेल स्टेशन हैं। दिल्ली से भुंतर के लिए प्रतिदिन उडा़न भी है।

 

मणिकर्ण किसी भी मौसम में जाया जा सकता हैं। लेकिन जनवरी में यहां बर्फ गिर सकती है। तब ठंड कडा़के की रहती है। मार्च के बाद से मौसम थोड़ा अनुकूल होने लगता है। बारिश में इस क्षेत्र की यात्रा खतरनाक हो सकती है। जाने से पहले मौसम की जानकारी अवश्य प्राप्त कर लें।

 

पार्वती नदी में नहाने का खतरा ना उठाएं। न केवल इस नदी का पानी बहुत ठंडा है, बल्कि वेग इतना तेज़ होता है कि कुशल से कुशल तैराक भी अपना संतुलन नहीं बना पाते। बहुत लोग दुर्घटना का शिकार हो चुके हैं क्योंकि एक पल की भी असावधानी, बचा पाने के किसी भी प्रयास को विफल कर देती है।

 

आप सभी लोगों से निवेदन है कि हमारी पोस्ट अधिक से अधिक शेयर करें जिससे अधिक से अधिक लोगों को पोस्ट पढ़कर फायदा मिले |
Share This Article
error: Content is protected !!
×