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संत चोखामेला जयंती

अभंग क्रमांक १६६३

 

करूँगा प्रयास से कोई काम, नाम गाऊँगा प्रेम से।


इसके अलावा मुझे कुछ और नहीं आता, न कोई दूसरा साधन।
सुख ही सुख हो गया है, अब कोई दुःख नहीं बचा।
चोखा कहता है – मैं भवसागर पार उतर गया हूँ, केवल नाम के सहारे।

अभंग क्रमांक १६६४

 

निर्गुण (बिना गुणों वाला परमात्मा) में सगुण (गुणों सहित) समा गया है, अब दोनों में एकता हो गई है।


ज्ञानी लोग शब्दों के पीछे का रहस्य समझते हैं, लेकिन साधारण लोग इसे केवल कहानी मानते हैं।
निवृत्ति, ज्ञानदेव, और सोपान जैसे संतों ने भी इस सच्चाई को जाना – सगुण और निर्गुण उन्हें भी मिले।
चोखा कहता है – मैं उनके चरणों की पादुका (चरणचिन्ह) श्रद्धा से सिर पर रखता हूँ, और यही मुझे ऐक्य (एकता) का अनुभव कराता है।

अभंग क्रमांक १६६५

 

सुंदरता को देखते ही आंख चौंक उठी, और फिर उसी सुंदरता में खो गई।


जिस आंख ने उस रूप को देखा, उसी ने स्वयं को छिपा लिया।
चोखा कहता है – यह अद्भुत चमत्कार हुआ, सुंदरता को देखते ही आंख मिट गई।

 

अभंग क्रमांक १६६६

 

जीवन का धागा टूट गया है, और चारों ओर बिखराव फैल गया है।


अब कौन बचाएगा इस जीवन को? सोचो और शांति से उत्तर पाओ।
सब कहते हैं कि जीवन सुखद है, लेकिन कोई भी अंत में काम नहीं आता।
चोखा कहता है – यह सब धोखा है, हर कोई अपना-अपना घर (स्वार्थ) ही देखता है।

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