Sshree Astro Vastu

समंध (भयकथा)

मेरी दादी अक्सर कहा करती थीं…
“दोपहर 12 बजे लड़कियों को काजल लगाकर, नहा-धोकर खुले बालों में बाहर नहीं जाना चाहिए। हर समय एक जैसा नहीं होता।”
हमें यह बात कभी समझ नहीं आई। लेकिन हमारी पीढ़ी घर के बड़े-बुज़ुर्गों की बात मानी करती थी, उन्हें आदर देती थी।

आज दादी की बहुत याद आ रही है।
पड़ोस की मनाली आज ऑफिस गई थी।
अभी पितृपक्ष चल रहा है।
मनाली ने बाल धोए, ड्रायर से सुखाए।
आँखों में गाढ़ा काजल, भौंहें, पलकें सबका ज़बरदस्त मेकअप।
काली साड़ी, काला ब्लाउज़, काली चूड़ियाँ…

हे भगवान…
दिल में कहीं हल्की सी बेचैनी हुई।
उसे मीटिंग थी, वो जल्दी में निकल गई।

मुझे कभी-कभी पूर्वाभास होते हैं। शायद ध्यान, जाप का असर हो।
लेकिन उसके जाते हुए रूप को देखकर अंदर से एक आवाज़ आई –
आज इसका कुछ अनहोनी होने वाली है…”

सिर्फ आधे घंटे में ही पड़ोस में अफरा-तफरी मच गई, काकी रो रही थीं।
मैंने पूछा तो पता चला – मनाली का एक्सिडेंट हो गया है।
घर के सब लोग निकल गए।
मैं बेचैनी में, शाम को भगवान के सामने दीपक लगाकर बैठी, ध्यान किया।

अचानक मुझे एक पुराना पीपल का पेड़ दिखा।
उस पर चोटी वाला एक नौजवान बैठा था।
वो मनाली की ओर देख रहा था।
उसी रास्ते से एक गधा मनाली के सामने से भागता हुआ गया और फिर गायब हो गया।
वो युवक हँस रहा था।
उसी समय मनाली स्कूटी पर जा रही थी।
मैं ध्यान से बाहर आई।

हे भगवान…!! ये तो समंध था…”
और वो गधा… यानी पिडा…”

(समंध भूतों की एक श्रेणी होती है। अविवाहित ब्राह्मण या किसी एक्सिडेंट में मरा हुआ युवक जिसकी इच्छाएँ अधूरी रह जाती हैं, वह समंध बन जाता है। उसे मुक्ति नहीं मिलती। इसलिए उसकी चिता जलाने से पहले उसका विवाह रुई के पेड़ से करवाया जाता है।)

मनाली और उसके घरवाले इन बातों में विश्वास नहीं रखते थे।
मैंने भी कुछ नहीं कहा।
आगे पता चला – मनाली का पैर फ्रैक्चर है, उसे बुखार नहीं उतर रहा, उसे बहुत बेचैनी है, हड्डियाँ दुखती हैं।
मैं उसे देखने गई।
जिन्हें भूत-प्रभाव होता है, उनकी पलकें लटकती हैं, आँखें बिखरी हुई लगती हैं।

मैंने मनाली से पूछा:
“क्या तुम दोपहर को उस रास्ते से गई थीं जहाँ पीपल का पेड़ है?
क्या वहाँ तुम्हारी स्कूटी फिसली?
क्या तुम्हारे सामने से एक गधा गया था?
क्या तुम्हारी हड्डियाँ दुख रही हैं?
क्या तुम्हारे शरीर की सारी शक्ति जैसे खत्म हो गई है?”

सभी सवालों का जवाब सिर्फ हाँ” था।
मनाली के घरवाले चकित रह गए।

मैंने उन्हें बताया – “वहाँ कोई है।
उसके क्षेत्र में ये लड़की काजल, आईलाइनर, आँखों का चटक मेकअप कर, काले कपड़े और खुले बालों में चली गई थी।
उसने इसे पकड़ लिया है।”

अब मनाली और उसकी माँ को मुझ पर विश्वास हुआ।
उन्होंने पूछा – “अब क्या करें? वो तो खाना भी नहीं खा रही है…”

मेरे कहने पर उन्होंने दोपहर 12 बजे दही-चावल और लाल सिंदूर पीपल के पेड़ के नीचे रख दिया।
पीछे मुड़े बिना घर लौट आए, नहाए और भगवान के सामने दिया जलाया।
तीन समय की रात (तीन संध्या बेला) में मैंने नमक लेकर ओवाळी (घुमाकर) उस दिशा में फेंका।

मनाली ज़ोर-ज़ोर से चिल्ला रही थी, जैसे उसके शरीर से कुछ बाहर निकल रहा हो।
उस रात उसने थोड़ा भोजन किया।
उसका बुखार उतर गया।
कुछ ही दिनों में वो ठीक हो गई।

लेकिन…
कुछ जगहें होती हैं जहाँ अतृप्त आत्माएँ रहती हैं।
दोपहर 12 से 3 और रात 12 से 3 उनका समय होता है।
संभव हो तो, स्त्रियों को इस समय खुले बालों में, काजल लगाकर बाहर नहीं जाना चाहिए।

ये अदृश्य शक्तियाँ सभी को नहीं दिखतीं,
लेकिन होती ज़रूर हैं।
जहाँ वो पीपल का पेड़ है, वहाँ अक्सर एक्सिडेंट होते हैं।
क्योंकि पहले एक युवक का वहाँ एक्सिडेंट हुआ था और उसकी मृत्यु हो गई थी।

पितृपक्ष, अमावस्या, पूर्णिमा, शनिवार और बुधवार को इस तरह की घटनाएँ ज्यादा होती हैं।
ये रहस्यमयी है।
इसका कोई प्रमाण नहीं है,
लेकिन लोगों को अनुभव होते हैं।

आप सभी लोगों से निवेदन है कि हमारी पोस्ट अधिक से अधिक शेयर करें जिससे अधिक से अधिक लोगों को पोस्ट पढ़कर फायदा मिले |
Share This Article
error: Content is protected !!
×