मुझे भूत दिखाई देते हैं।
हाँ…
मैं मानती हूँ कि भूतों की दुनिया सच है।
मैं इस पर अटल हूँ…
सुनिए ज़रा…
उस वक्त मैं अविवाहित थी। एक अस्पताल में
नर्स की नौकरी हाल ही में शुरू की थी।
श्रावण मास की अमावस्या थी। माँ ने घर पर
मीठे पकवान बनाए थे। मातृ दिवस था।
माँ का बार-बार फोन आ रहा था कि घर आ जाओ,
लेकिन मुझे एक गंभीर केस आने की वजह से
हमारे डॉक्टर ने रुकने को कहा।
सारा स्टाफ भी छुट्टी पर था… तो मैं रुक गई।
वो केस एक महिला का था जिसने खुद को आग लगा ली थी।
पुलिस केस था। वह महिला असहनीय पीड़ा झेलते हुए मुझसे बोली—
“मुझे ससुराल वालों ने जलाया है।
मेरे मायके वालों को बुलाइए।”
तभी उसका पति आ गया… वह सब पर नजर रखे हुए था।
मैंने कुछ नहीं कहा।
वॉर्ड में मेरे पास कई मरीज़ थे। मैं अपने काम में व्यस्त थी।
एक्सीडेंट केस आए हुए थे,
मैं उन्हीं में व्यस्त थी।
एक शनिवार की रात मैं देर से घर जा रही थी।
अस्पताल के पीछे से घूमकर घर जाना पड़ता था।
वहीं एक मुर्दाघर था।
घना अंधेरा, सन्नाटा,
वहाँ कोई नहीं था…
लेकिन मुझे आवाज़ आई,
“सिस्टर, ओ सिस्टर!”
मुझे लगा शायद इमरजेंसी होगी,
तो मैं अंदर चली गई…
क्योंकि वहाँ से शॉर्टकट में वॉर्ड जाया जा सकता है।
अंदर पूरा अंधेरा था,
मैं चलती रही।
किसी ने धीरे से “शुक… शुक…” किया।
मैंने मुड़कर देखा—
मुर्दाघर के दरवाज़े पर एक औरत खड़ी थी।
वह पूरी तरह जली हुई थी,
मेरी ओर आ रही थी।
मैंने उसका चेहरा देखा।
कैसे संभव है यह??
एक अनजानी डर से मैं दौड़ पड़ी।
वॉर्ड में घुस गई।
जिस चेहरे को मैंने देखा,
वही औरत थी जो दोपहर में मुझसे कह रही थी
कि उसे ससुराल वालों ने जलाया है…
मैं दौड़कर जनरल वॉर्ड में आई।
वहीं एक्सीडेंट के केस थे।
मैंने वहाँ की एक सिस्टर को सब बताया।
वो बोली—
“ताज्जुब है…
तुम घर मत जाओ,
क्योंकि शाम को वह पेशेंट मर गई…
और उसके बाद ही उसके पति का एक्सीडेंट हुआ।
वो देखो… तुम बच गई।”
उसका पति खुद कह रहा था—
“मेरी पत्नी ने ही मेरा एक्सीडेंट करवाया है।
वो सामने वाले बेड पर है…”
मैं सामने जाकर देखती हूँ,
तो वही उसका पति था।
उसके केस पेपर चेक किए—
भयंकर चोटें थीं…
मैं जैसे ही मुड़ी,
सामने वाले बेड पर वही औरत थी—
उसकी पत्नी…
सफेद, चमकती आंखें…
जो अपने पति पर गड़ी हुई थीं।
मैं हड़बड़ाकर सिस्टर के पास भाग गई।
हम दोनों सिस्टर रूम में डर के मारे बैठी बातें कर रहे थे।
अचानक एक वॉर्ड बॉय आया और बोला—
“उस औरत का पति मर गया।”
“उसने बदला ले लिया… देखो!”
मैंने सिस्टर से कहा।
सिस्टर बोली—
“तुम्हें उसके मायके वालों को खबर देनी चाहिए थी।”
लेकिन मैं काम में इतनी व्यस्त थी,
मुझे उसका नाम, पता, फोन नंबर कुछ भी नहीं पता था।
रोज ऐसे कितने ही पेशेंट आते हैं…
फिर भी…
मुझे बहुत डर लग रहा था…
जब भी मैं मुर्दाघर के पास से गुजरती,
मुझे उसकी आवाज़ सुनाई देती…
मैंने ये सब घर पर बताया।
उसके बाद मेरा रिश्ता तय हुआ,
और मैंने वो नौकरी छोड़ दी।