स्वाति नक्षत्र में स्थित शश योग सर्वश्रेष्ठ फलकारक होता है। ऐसे योग में उत्पन्न जातक को इस योग के सभी शास्त्रोक्त शुभ फलों की प्राप्ति होती है। ऐसा जातक राजनेता, उच्च अधिकारी, निर्जन स्थान पर रहने वाले, कुशाग्र बुद्धि वाले तथा प्रत्येक कार्य को सोच-विचार कर करने वाले होते हैं।
मंगल आदि पंचतारा ग्रहों की केन्द्र भावों में स्व-उच्च या मूलत्रिकोण राशि में स्थिति होने पर क्रमशः रुचक, भद्र, हंस, मालव्य, एवं शश नामक पंचमहापुरुष योगों का निर्माण होता है, परन्तु कई बार उनके अपेक्षानुरूप फल प्राप्त नहीं होते। ऐसा उनकी नक्षत्रीय स्थिति के आधार पर होता है। इसलिए नक्षत्रीय स्थिति के कारण भी इनका फल जानना आवश्यक है, क्योंकि नक्षत्रीय आधार पर फलादेश कथन ही भारतीय ज्योतिष का मूल सिद्धान्त रहा है, अत: सर्वप्रथम पंचमहापुरुष योग निर्मित करने वाले पंचतारा ग्रहों की उन नक्षत्रीय स्थिति को जानते हैं, जिनमें होने पर वे रुचकादि योगों का निर्माण करते हैं। यह नक्षत्रीय स्थिति केन्द्रभावों में होने पर ही पंचमहापुरुष योग निर्मित होते हैं।
जब मंगल अश्विनी, भरणी, कृत्तिका-प्रथम चरण (मेष राशि), विशाखा-चतुर्थ चरण, अनुराधा, ज्येष्ठा (वृश्चिक), उत्तराषाढ़ा द्वितीय, तृतीय, चतुर्थ चरण, श्रवण एवं धनिष्ठा-प्रथम, द्वितीय चरण (मकर) नक्षत्रों में होकर केन्द्र भावों में स्थित हो, तो रुचक योग का निर्माण होता है।
जब बुध मृगशिरा-प्रथम, द्वितीय चरण, आर्द्रा, पुनर्वसुप्रथम से तृतीय चरण (मिथुन राशि), उत्तराफाल्गुनी-द्वितीय, तृतीय, चतुर्थ चरण, हस्त, चित्रा-प्रथम, द्वितीय, चरण (कन्या राशि) में होकर केन्द्र भावों में हो, तो योग तो भद्र होता है।
जब गुरु पुनर्वसु-4 चरण, पुष्य, अश्लेषा (कर्क राशि), मूल, पूर्वाषाढ़ा, उत्तराषाढ़ा-प्रथम चरण (धनु राशि), पूर्वाभाद्रपद-चतुर्थ चरण, उत्तराभाद्रपद, रेवती (मीन) नक्षत्रों में होकर केन्द्र भावों में स्थित हो जाए, तो हंस नामक पंचमहापुरुष योग होगा।
जब शुक्र कृत्तिका-द्वितीय, तृतीय, चतुर्थ चरण, रोहिणी, मृगशिरा-प्रथम, द्वितीय चरण (वृषभ), चित्रा-तृतीय, चतुर्थ चरण, स्वाती, विशाखा-प्रथम, द्वितीय, चतुर्थ चरण (तुला राशि) नक्षत्रों में होकर केन्द्र भावों में स्थित हो जाए, तो मालव्य नामक योग होगा।
शनि यदि चित्रा-तृतीय, चतुर्थ चरण, स्वाती, विशाखा प्रथम, द्वितीय, तृतीय चरण (तुला राशि), उत्तराषाढ़ा-द्वितीय, तृतीय, चतुर्थ चरण, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वाभाद्रपद-प्रथम, द्वितीय, तृतीय चरण (मकर एवं कुंभ राशि) नक्षत्रों में से किसी भी नक्षत्र में स्थित होकर केन्द्र भावों में हो, तो शश नामक पंचमहापुरुष योग होता है।
एस्ट्रो अनन्या
1.रुचक योग का फल
अश्विनी नक्षत्र में मंगल होने पर रुचक योग का शुभ फल प्राप्त होता है। मुख्य रूप से मंगल के नैसर्गिक फल ही अधिक रूप से प्राप्त होते हैं, जैसे बलिष्ठ शरीर, पराक्रमी, रक्तवर्ण, साहस के कार्यों में सफलता, सफल प्रबन्धक, मंगल से संबंधित कार्यक्षेत्र आदि।
भरणी नक्षत्र में मंगल होने पर रुचक योग अधिक शुभ फलप्रद नहीं होता है। ऐसे योग में जातक अपनी शक्ति का उपयोग सही कार्यों में नहीं लगा पाता।
कृत्तिका नक्षत्र में मंगल होने पर कार्यसिद्धि की सम्भावनाएँ अधिक बनती हैं, जातक अपने जीवन में उच्चता को प्राप्त भी करता है, परन्तु उस सफलता को हमेशा कायम नहीं रख पाता है। विशाखा नक्षत्र में यदि मंगल हो, तो रुचक योग के श्रेष्ठ फल प्राप्त नहीं होते। रुचक योग का होना न होना बराबर है।
अनुराधा नक्षत्र में मंगल होने पर जातक की रुचि तकनीकी कार्यों में अधिक होती है। स्वभाव से वह गुस्से वाला होता है। विद्या श्रेष्ठ होती है। कार्यक्षेत्र में सफलता के लिए थोड़ा परिश्रम करना पड़ता है।
ज्येष्ठा नक्षत्र में मंगल के होने पर जातक की वाणी बहुत ही श्रेष्ठ होती है। वाणी से संबंधित कार्यों में उसे अपार सफलताएँ प्राप्त होती हैं। तकनीकी कार्यों में भी वह दक्ष होता है।
उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में मंगल होने पर जातक की विद्या श्रेष्ठ होती है, लेकिन सफलता के लिए बहुत अधिक प्रयास करने होते हैं। जातक कूटनीतिज्ञ होता है। उसका मस्तिष्क हमेशा रचनात्मक कार्यों में अधिक लगता है।
श्रवण नक्षत्र में मंगल होने पर जातक की कल्पनाशक्ति श्रेष्ठ होती है, अत: ऐसे जातक लेखक, सम्पादक, स्क्रिप्ट राइटर, निर्देशक अथवा इसी प्रकार के अन्य कार्यों को करने वाले होते हैं।
यदि मंगल धनिष्ठा नक्षत्र में स्थित हो, तो यह रुचक योग की सबसे श्रेष्ठ स्थिति है। उपर्युक्त वर्णित सभी शुभ फल इसी स्थिति में प्राप्त हो सकते हैं। जातक अपने पराक्रम से श्रेष्ठ उन्नति प्राप्त करता है।
बुध यदि मृगशिरा नक्षत्र में हो, तो जातक अपनी वाणी से धनार्जन करने वाला तथा बलिष्ठ शरीर वाला होता है। आर्द्रा नक्षत्र में बुध होने पर जातक की वाणी उसके कार्यक्षेत्र में सहायक होती है। वह अपनी वाणी से सभी का दिल जीत लेता है। स्वास्थ्य संबंधी परेशानियाँ अधिक होती हैं।
पुनर्वसु नक्षत्र में स्थित बुध जातक को कामुकता देता है। ऐसे जातक की शिक्षा श्रेष्ठ होती है, लेकिन कार्यक्षेत्र की सफलता के लिए उसे संघर्ष करना पड़ता है। बुध यदि उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में स्थित हो, तो जातक लेखक एवं विद्वान् होता है। उसके लेखन को जगप्रसिद्धि प्राप्त होती है। धनार्जन के लिए संघर्ष करना पड़ता है।
हस्त नक्षत्र में बुध होने पर शास्त्र कथित भद्र योग के शुभफल प्राप्त होते हैं। ऐसा जातक सुन्दर एवं बलिष्ठ शरीर वाला एवं विद्वान् होता है। कलात्मक कार्यों में उसकी रुचि अधिक होती है।
बुध यदि चित्रा नक्षत्र में स्थित हो, तो भद्र योग का शुभफल प्राप्त नहीं होता है। इस स्थिति में भद्र योग के सामान्य फल ही प्राप्त होते हैं।
यदि गुरु पुनर्वसु नक्षत्र में स्थित हो, तो शुभ फल प्राप्त होते हैं। ऐसे जातक की विद्या श्रेष्ठ होती है एवं वह स्वभाव से धीर-गम्भीर होता है।
गुरु पुष्य नक्षत्र में स्थित हो, तो हंस योग का सर्वश्रेष्ठ फल प्राप्त होता है। ऐसे जातक का शरीर बलिष्ठ एवं सुन्दर होता है। वह जिस भी कार्य को करे, उसमें सफलता शीघ्र ही प्राप्त हो जाती है। ऐसे जातक की विद्या भी श्रेष्ठ होती है।
गुरु यदि अश्लेषा नक्षत्र में स्थित हो, तो जातक श्रेष्ठ उपदेशक, अध्यापक, अधिवक्ता, ज्योतिषी, सलाहकार आदि हो सकता है। यह स्थिति राजयोग को भी इंगित करती है।
मूल नक्षत्र में गुरु होने पर जातक की रुचि अध्यात्म एवं ईश्वर में पूर्ण रूप से होती है। जातक संघर्षमय जीवन जीता है। आयु का पूर्वार्द्ध अधिक सुखमय नहीं होता है। जातक की रुचि अन्य कार्यों में भी होती है तथा विद्या मध्यम श्रेणी की होती है। उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में स्थित गुरु न के बराबर हंस योग के फल प्रदान करता है, परन्तु ऐसे जातक में आत्मविश्वास अच्छा होता है।
पूर्वाभाद्रपद में गुरु होने पर जातक की विद्या एवं कार्यक्षेत्र श्रेष्ठ होते हैं। ऐसा जातक कर्मशील होता है। वह अपनी मेहनत से ही श्रेष्ठ मुकाम को प्राप्त करता है। पठन-पाठन में पर जातक उसकी रुचि अधिक होती है।
उत्तराभाद्रपद में यदि गुरु स्थित हो, तो जातक एकांत में रहने वाले, दार्शनिक, अध्यात्म में रुचि रखने वाले, विद्वान्, श्रेष्ठ विद्या प्राप्त करने वाले होते हैं। इनकी धैर्य क्षमता भी अच्छी होती है। कार्यक्षेत्र में सफलता भी अवश्य प्राप्त होती है।
गुरु यदि रेवती नक्षत्र में स्थित हो, तो श्रेष्ठ फलकारक होता है। जातक की रुचि धनार्जन में अधिक होती है। वह गुरु से संबंधित कार्यों में अधिक रुचि लेता है। दिखने में सुन्दर होता है। पारिवारिक सुख मध्यम होता है।
शुक्र यदि कृत्तिका नक्षत्र में स्थित हो, तो जातक स्वभाव से कामुक प्रवृत्ति वाला एवं क्रोधी होता है। दिखने में सुन्दर, आस्तिक, अपने कार्य क्षेत्र में सफल होता है।
रोहिणी नक्षत्र में शुक्र होने की कल्पनाशक्ति श्रेष्ठ होती है। ऐसा जातक कलात्मक कार्यों में रुचि रखने वाला, कलाकार, मनोरंजन जैसे कार्यक्षेत्रों से आय प्राप्त करने वाला एवं स्क्रिप्ट राइटर हो सकता है।
मृगशिरा नक्षत्र में होने पर जातक की कामुक प्रवृत्ति होती है। ऐसे योग में शिक्षा अल्प ही रहती है, लेकिन ऐसे किसी व्यावसायिक विषय में विद्या ग्रहण कर सकते हैं। होटल मैनेजमेंट या इसी तरह के अन्य कार्यों में इन्हें शीघ्र सफलता प्राप्त होती है। ऐसा शुक्र इन्हें कूटनीतिज्ञ भी बनाता है।
शुक्र के चित्रा नक्षत्र में होने पर भी लगभग यही फल प्राप्त होते हैं, लेकिन यह स्थिति पहले वाले योग से अधिक सुदृढ़ है। ऐसे जातक अपने कार्यक्षेत्र में शीघ्र ही सफलता प्राप्त कर लेते हैं।
शुक्र के स्वाती नक्षत्र में स्थित होने पर जातक अपने कार्यक्षेत्र में उच्चता को प्राप्त करता है। स्वास्थ्य की दृष्टि से यह योग अधिक शुभफलप्रद नहीं है। ऐसे जातकों में शुक्र जातक कामुक प्रवृत्ति अधिक होती है। विवाह पश्चात् जीवन श्रेष्ठ होता है। जीवन की मध्य एवं उत्तर अवस्था अधिक रूप से सुखी होती है।
शुक्र के विशाखा नक्षत्र में स्थित होने पर जातक की रुचि विद्या ग्रहण करने में अधिक होती है। अगर वे अधिक पढ़े लिखे भी न हों, तो भी स्वभाव से विद्वता ही झलकती है। ज्यूलरी एवं गारमेन्ट्स से संबंधित व्यवसाय में अधिक सफलता प्राप्त होती है।
पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र में शुक्र होने पर इन्हीं फलों की प्राप्ति होती है, लेकिन इन फलों में न्यूनता आ जाती है। फिर भी जातक अपने कार्यक्षेत्र में सफल ही होता है।
शुक्र यदि उत्तराभाद्रपद नक्षत्र में स्थित हो, तो जातक की प्रवृत्ति अनेक कार्यों में होती है। ऐसे जातक अध्यात्म के साथ सांसारिकता में भी पूर्ण रुचि रखते हैं। दिखने में सुन्दर होते हैं। वे स्वभाव से संकोची नहीं होते हैं, व्यावहारिक होते हैं। सभी से उनका व्यवहार बहुत ही श्रेष्ठ होता है।
रेवती नक्षत्र में यदि शुक्र स्थित हो, तो मालव्य योग की यह सबसे श्रेष्ठ स्थिति होती है। ऐसा जातक कलात्मक कार्यों में रुचि रखने वाला, कलाकार, बलिष्ठ एवं सुन्दर शरीर से युक्त, कामी, अपने कार्यक्षेत्र में सफल होता है। ऐसे जातकों में शुक्र कारक फलों का पूर्ण रूप से प्रभाव होता है।
शनि यदि चित्रा नक्षत्र में स्थित हो, तो जातक तकनीकी कार्यों में रुचि लेने वाला, कूटनीतिज्ञ, राजनीति में उच्च पद को प्राप्त करने वाला, क्रोधी तथा शारीरिक रूप से पीड़ित होता है।
स्वाती नक्षत्र में स्थित शश योग सर्वश्रेष्ठ फलकारक होता है। ऐसे योग में उत्पन्न जातक को इस योग के सभी शास्त्रोक्त शुभ फलों की प्राप्ति होती है। ऐसा जातक राजनेता, उच्च अधिकारी, निर्जन स्थान पर रहने वाले, कुशाग्र बुद्धि वाले तथा प्रत्येक कार्य को सोचविचार कर करने वाले होते हैं।
विशाखा नक्षत्र में शनि होने पर जातक एकांत में रहने वाला, विद्वान्, परम्परागत शास्त्रों का ज्ञाता, दार्शनिक, स्वभाव वाला होता है। इनकी रुचि अध्ययन-अध्यापन में अधिक होती है।
उत्तराषाढ़ा में शनि होने पर शश योग का शुभ फल प्राप्त नहीं होता पाता है। ऐसे जातक को शश योग के नकारात्मक फल ही अधिक रूप से प्राप्त होते हैं। ऐसे जातक स्वभाव से आलसी एवं क्रूर होते हैं।
शनि यदि श्रवण नक्षत्र में स्थित हो, तो जातक की कल्पना शक्ति एवं आध्यात्मिक शक्ति श्रेष्ठ होती है। वह प्रत्येक विषय को गम्भीरता के साथ सोचता है। स्वभाव से ऐसा जातक एकान्त में रहने वाला एवं पर्वतीय स्थानों को चाहने वाला होता है।
धनिष्ठा नक्षत्र में स्थित होने पर शनि कार्यक्षेत्र में शुभ फलदायक होता है। जातक को शारीरिक कष्ट हो सकते हैं। ऐसे जातक जिस भी कार्य में हाथ डालेंगे, सफलता उन्हें कड़ी मेहनत के पश्चात् ही प्राप्त होगी। तकनीक क्षेत्र में इनकी रुचि अधिक होती है।
शनि यदि शतभिषा नक्षत्र में स्थित हो, तो श्रेष्ठ फल प्राप्त होता है। ऐसे जातक अपने कार्यक्षेत्र में नई ऊँचाइयों को छूते हैं। स्वभाव से क्रोधी होने के कारण इनका सामाजिक व्यवहार सीमित होता है। इनमें अहंकार की भावना भी हो सकती है।
पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र में शनि होने पर जातक की विद्या श्रेष्ठ होती है। कानून, इतिहास एवं परम्परावादी विषयों में उसकी रुचि अधिक होती है। परिवार का पूरा सुख प्राप्त नहीं होता है। ऐसे जातक कार्यक्षेत्र के लिए अपने निवास स्थान से भी जा सकते हैं। यह योग उच्च सफलता को दर्शाता है, लेकिन सफलता 30 वर्ष के पश्चात् ही प्राप्त हो पाती है।