
लक्ष्मीपूजन करते समय क्या हम कभी यह सोचते हैं कि हम जिस लक्ष्मी (धन) की पूजा कर रहे हैं, वह हमारे पास किस मार्ग से आई है?
यदि वह लक्ष्मी किसी का मन, भावना दुखाकर, किसी को लूटकर या छल–कपट से प्राप्त की गई है, तो क्या वह हमें वास्तव में फलदायी सिद्ध होगी? इस पर शायद ही हम कभी विचार करते हों।
अब यह कलियुग है, इसलिए ऐसे विचारों को अधिक महत्व नहीं दिया जाता — यह भी सत्य है। परंतु जब हम निष्पक्ष और सारगर्भित रूप से सोचते हैं, तो यह स्वीकार करना ही पड़ता है कि ऐसा आचरण उचित नहीं है।
आज के समय में “दृश्यम” की तरह सब कुछ केवल दिखावे का हो गया है — हम वही दिखाते हैं जो दूसरों को दिखाना चाहते हैं, और उसी को सत्य साबित करने की होड़ लगी है।
हमारी आदत भी बन गई है कि जो कुछ हमें दिखाया जाता है, हम उसे ही सत्य मान लेते हैं — और अब तो हम उस पर विश्वास भी करने लगे हैं।
टीवी पर चलने वाले रियलिटी शो (Reality Shows) इसी प्रवृत्ति का एक उदाहरण हैं।
कुछ भी दिखाकर या सुना कर यह जताया जाता है कि “हम कितने सृजनशील हैं” — लेकिन असल में यह सब एक सुविचारित प्रदर्शन होता है।
इसी विषय पर समुपदेशक एवं लेखक श्री मयुरेश उमाकांत डंके जी ने अपने लेख “पांढरी शुभ्र बनवाबनवी” में जो विचार व्यक्त किए हैं, वह आज साझा कर रहा हूँ —
‘रियलिटी शो’ — नाम में वास्तविकता, पर सार में अभिनय
रियलिटी शो के नाम पर जो चल रहा है, वह जंगल में पंख फैलाकर नाचते मोर जैसा है —
कहते हैं कि मोर को केवल आगे से देखना चाहिए, क्योंकि पीछे जो होता है, वह सुंदर नहीं दिखता।
कभी “सारेगमप लिटिल चैंप्स” का पहला सीजन था।
उसमें एक बच्चा था जिसकी आर्थिक स्थिति बहुत कमजोर थी।
कार्यक्रम में उसकी गरीबी, आँसू और संघर्ष दिखाकर दर्शकों की भावनाओं को छूने की कोशिश की जाती थी।
लोग रोते थे, सहानुभूति जताते थे — और शो की TRP बढ़ती थी।
इसी तरह “कौन बनेगा करोड़पति” में भी स्क्रिप्टेड भावनाएँ दिखाई जाती हैं।
एक बार बप्पी लाहिड़ी ने प्रतियोगी को अपनी सोने की चेन दी, रेखा जी अपने घर से खाना लेकर आईं —
क्या यह सब सहज था या पहले से तय स्क्रिप्ट का हिस्सा?
कई कलाकारों ने खुलकर बताया है कि रियलिटी शो असल में रियल नहीं होते —
हर दृश्य, हर संवाद, हर हँसी–आँसू पहले से लिखे और तय किए जाते हैं।
प्रसिद्ध बाँसुरी वादक अमर ओक ने भी कहा कि इन शोज़ की वास्तविकता “बेहद खेदजनक और झूठी” होती है।
मनोरंजन या मनोविकृति?
“कॉमेडी शो”, “खतरों के खिलाड़ी”, “बिग बॉस”, “WWE” — सब में एक ही चीज़ है —
झूठा नाटक, दिखावा, और दर्शकों को बहकाने की कला।
चौबीस घंटे रिकॉर्डिंग होती है, पर दिखाया जाता है सिर्फ एक घंटा —
बाकी तेईस घंटे में क्या हुआ, यह कोई नहीं बताता।
इस तरह “रियलिटी शो” के नाम पर सच्चाई को सबसे “असली झूठ” में बदलने का व्यापार चलता है।
“कौन बनेगा करोड़पति” का उदाहरण
इशित भट्ट नाम का एक बच्चा — पाँचवीं कक्षा का छात्र।
उसे लाखों रुपये के इनाम के लिए जो प्रश्न पूछे गए, वे तीसरी कक्षा के सामान्य प्रश्न जैसे थे —
“नाश्ता किसे कहते हैं?”, “चित्र में क्या दिखाया गया है?”, “बुद्धिबल के पट्टे पर कितने राजा होते हैं?”
क्या यही “टैलेंटेड” कहलाने की योग्यता है?
या केवल एक मनोरंजक एपिसोड बनाने का साधन?
वास्तव में, ये शो ज्ञान नहीं, मनोरंजन हैं —
और “एंटरटेनमेंट, एंटरटेनमेंट, एंटरटेनमेंट” के नाम पर
दर्शकों की सोच को नियंत्रित करने का माध्यम बन चुके हैं।
असली प्रश्न: संस्कार किसके?
आज एक बच्चे के मज़ाकिया या उद्दंड उत्तरों पर पूरा देश संस्कारों की बहस छेड़ देता है।
पर जब वही समाज किसी अपराधी अमीर युवक की कार से मारे गए निर्दोष लोगों पर मौन रहता है,
तो यह दोहरापन क्यों?
जब कोई बच्ची रियलिटी शो में “ही पोरगी साजूक तुपातली” जैसा गीत गाती है,
या छोटे बच्चे मंच पर बड़ों की नकल करते हैं,
तो कोई संस्कारों की बात क्यों नहीं करता?
पर जब कोई बच्चा अमिताभ बच्चन जैसे व्यक्ति से “स्क्रिप्टेड संवाद” कह देता है,
तो पूरे देश में बवाल मच जाता है।
यह सारा तंत्र — टीवी चैनल, लेखक, निर्देशक, और प्रोड्यूसर —
सिर्फ भावनाएँ बेचते हैं।
वे कठपुतलियाँ हैं, जिन्हें कोई और नचा रहा है —
और दर्शक उस नाच को “सत्य” मानकर तालियाँ बजा रहे हैं।
मनोरंजन और ज्ञान — दोनों अलग बातें हैं।
पर आज मनोरंजन के नाम पर जो दिखाया जा रहा है, वह न केवल झूठा है, बल्कि हमारी सोच को भी दूषित कर रहा है।
“मोक्ष वही है जहाँ मोह का क्षय हो।”
राष्ट्र सर्वोपरि। जय हिंद। 🇮🇳🫡