मालेगांव के पास “गिल पंजाब होटल” के मालिक लकी आबा गिल को आज सड़क किनारे एक बुजुर्ग दंपति पैदल चलते हुए दिखाई दिया। भिखारी जैसे दिखने वाले इस दंपति से, चूंकि दोपहर का समय था, उन्होंने सहजता से पूछा कि क्या वे भोजन करना चाहेंगे। जब उन्होंने मना कर दिया, तो लकी ने उन्हें 100 रुपये देने की पेशकश की, लेकिन उन्होंने वह भी अस्वीकार कर दिया। फिर उन्होंने पूछा, “आप इस तरह क्यों चल रहे हैं?” इसके बाद उनकी जीवनगाथा शुरू हुई।
उन्होंने बताया कि वे 2200 किलोमीटर की यात्रा कर द्वारका अपने घर लौट रहे हैं। उन्होंने कहा, “मेरी दोनों आंखें एक साल पहले चली गई थीं, और डॉक्टरों ने कहा था कि ऑपरेशन से कोई फायदा नहीं होगा। फिर मेरी मां ने डॉक्टरों से मिलकर उन्हें ऑपरेशन के लिए तैयार किया और श्रीकृष्ण मंदिर में जाकर देवता से मन्नत मांगी कि यदि मेरे बेटे की आंखें ठीक हो जाएं, तो वह पैदल यात्रा कर बालाजी और पंढरपुर होते हुए द्वारका वापस जाएगा। इसी वजह से मैं अपनी मां की मन्नत पूरी करने के लिए पदयात्रा कर रहा हूं।”
फिर मैंने उनकी पत्नी के बारे में पूछा। उन्होंने कहा, “वह भी मुझे अकेले छोड़ने को तैयार नहीं थी। उसने कहा कि मैं तुम्हारे साथ चलूंगी और रास्ते में तुम्हारे लिए भोजन तैयार करूंगी।”
वे 25% हिंदी और 75% अंग्रेजी बोल रहे थे। जब उनकी शिक्षा के बारे में पूछा गया, तो सुनकर मैं स्तब्ध रह गया। उन्होंने लंदन की ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में खगोलशास्त्र में 7 साल तक पीएचडी की थी, और उनकी पत्नी ने मनोविज्ञान में लंदन से ही पीएचडी की थी। (इतनी उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बावजूद उनके चेहरे पर घमंड का कोई निशान नहीं था। जबकि हमारे यहां 10वीं फेल भी गर्व से चलता है।)
इतना ही नहीं, उन्होंने सी. रंगराजन (पूर्व गवर्नर) और कल्पना चावला के साथ काम किया था और उनके साथ दोस्ताना संबंध थे।
अपनी मासिक पेंशन वे एक नेत्रहीनों के लिए काम करने वाली ट्रस्ट को दान कर देते हैं। वर्तमान में, वे सोशल मीडिया से दूर रहते हैं। सड़क किनारे चलते हर जोड़े को भिखारी समझना सही नहीं है। कोई जोड़ा अपनी मां की मन्नत पूरी करने के लिए राम और सीता जैसा बनने के लिए तैयार हो सकता है।
मैं आज जिनसे मिला, उन्हें मैं कलीयुग के राम-सीता मानता हूं।
हमने लगभग 1 घंटे तक खड़े होकर बातें कीं। उनके गहरे विचार सुनकर मन अवाक रह गया। अहंकार खत्म हो गया और लगा कि हम झूठे गर्व के सहारे जी रहे हैं। उनकी सहजता देखकर लगा कि इस दुनिया में हम शून्य हैं। उनकी पदयात्रा देखकर मैं दंग रह गया। वे इस यात्रा पर निकले हुए 3 महीने हो चुके थे, और अपने घर पहुंचने में उन्हें अभी एक और महीना लगेगा।
उनका नाम डॉ. देव उपाध्याय और डॉ. सरोज उपाध्याय है।