मैं कर्ता नहीं हूँ, कर्ता तो हरि हैं। जैसा प्राप्त हुआ वैसा ही प्रेषितआंध्र प्रदेश के पूर्व IAS अधिकारीपी. वी. आर. के. प्रसाद द्वारा लिखितवर्ष 1982 में“नाहं कर्ता, हरिः कर्ता”(मैं कर्ता नहीं हूँ, कर्ता तो हरि हैं)तिरुमला पहाड़ी पर स्थित भगवान वेंकटेश्वर के मंदिर में ध्वजस्तंभ (ध्वजदंड) के भीतर का लकड़ी का मूल ढांचा पूरी तरह सड़ चुका था।भगवान के मंदिर के शिखर पर स्थित आनंद निलय विमानम् की पॉलिशिंग के साथ-साथ कई मरम्मत कार्य चल रहे थे।एक दिन अचानक एक इंजीनियर घबराया हुआ दौड़ता आया और बोला—“ध्वजस्तंभ सड़ चुका है।”जब हमने सावधानी से उस पर चढ़ी स्वर्ण परत को हटाया, तो अंदर की लकड़ी पूरी तरह गल चुकी थी।तो फिर वह खड़ा कैसे था?केवल उस पर चढ़ी सोने की प्लेटों के सहारे!सड़े हुए ध्वजस्तंभ से भगवान की सेवा?यह तो महापाप था।मैं चिंता, बेचैनी, घबराहट और भय से भर गया।रिकॉर्ड देखने पर पता चला कि यह लकड़ी कब स्थापित की गई थी—इसका कोई उल्लेख नहीं था।पिछले 180–190 वर्षों के अभिलेखों में भी ध्वजस्तंभ का कोई जिक्र नहीं था।तो यह कितना पुराना था?अब क्या किया जाए?हमें 50–75 फीट ऊँचा सागौन (टीक) का वृक्ष चाहिए था, जिसमें—कोई खोखलापन न होकोई शाखा न होकोई दरार न होकोई मोड़ न हो — पूरी तरह सीधा होनिराशा छा गई।क्या ऐसा संभव भी है?फिर भी आशा मरी नहीं।मैंने तुरंत राज्य वन विभाग के अधिकारियों से संपर्क किया।उन्होंने साफ कहा—“हमारे राज्य में ऐसा सागौन का पेड़ मिलना असंभव है।संभवतः कर्नाटक या केरल के पश्चिमी घाट के जंगलों में ही मिल सकता है।”यह सुनकर मेरी शक्ति ही मानो समाप्त हो गई।इसी बीच मीडिया में अफवाह फैलने लगी कि ध्वजस्तंभ के नीचे कोई गुप्त खजाना है!मैं पूर्णतः असहाय हो गया।उसी भ्रम और व्याकुलता की स्थिति में मैंने स्वयं को केवल भगवान श्रीनिवास को समर्पित कर दिया।उसी रात लगभग 10:30 बजे, जब मैं मंदिर से निकलने ही वाला था,बेंगलुरु से एच. एस. आर. अयंगर नामक एक भक्त का फोन आया।थका होने के बावजूद मैंने फोन उठाया।वे तेजी से बोले—“सर, रेडियो पर सुना कि आप ध्वजस्तंभ बदलने वाले हैं।ऐसे ध्वजस्तंभ के लिए कम से कम 280–300 वर्ष पुराना सागौन का पेड़ चाहिए।ऐसा पेड़ केवल कर्नाटक के डांडेली जंगलों में ही मिल सकता है।वहाँ के मुख्य वन संरक्षक मेरे घनिष्ठ मित्र हैं।यदि आप अनुमति दें, तो मैं उनकी सहायता से जंगल में खोज कर उपयुक्त वृक्ष चुन लूँगा।आप केवल एक औपचारिक पत्र लिख दीजिए, बाकी समन्वय मैं संभाल लूँगा।”तुरंत, उसी समय मंदिर में बैठे-बैठे मैंने कर्नाटक के मुख्य सचिव और मुख्य वन संरक्षक से फोन पर बात की और उनकी सहमति प्राप्त की।तब तक रात के 11 बज चुके थे।अयंगर जी की पहल से जंगलों में खोज शुरू हुई।लगभग 100 पेड़ों की जाँच के बाद, डांडेली पहाड़ियों में 16 सागौन के पेड़ उपयुक्त पाए गए।संयोग से उसी सप्ताह कर्नाटक के मुख्यमंत्री श्री गुंडू राव अपने परिवार के साथ तिरुमला आए।मैंने जब उन्हें पूरी बात बताई, तो उन्होंने तुरंत कहा—“कर्नाटक, TTD को नया ध्वजस्तंभ लकड़ी के रूप में दान करेगा।”उस सप्ताहांत हम—हमारे इंजीनियर, अयंगर जी और मुख्य वन संरक्षक—उन 16 पेड़ों को देखने गए।उनमें से केवल 6 पेड़ मानकों पर खरे उतरे।उनमें से 2 हमारी आवश्यकता से भी अधिक ऊँचे थे।TTD की भविष्य की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए मैंने सभी 6 पेड़ माँग लिए।अद्भुत!बेंगलुरु में मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव ने घोषणा की—“सभी 6 पेड़ दान किए जाएँगे।”पेड़ काटे गए, लेकिन फिर एक नई समस्या सामने आई।जंगल की ज़मीन इतनी ऊबड़-खाबड़ थी कि मुख्य सड़क कई किलोमीटर दूर थी।इतने विशाल लकड़ी के लट्ठों को कैसे लाया जाए?तभी वहाँ सोमानी पेपर मिल के लकड़ी काटने वाले श्रमिकों को हमारी स्थिति का पता चला।मिल प्रबंधन और कर्मचारी आगे आए और बोले—“सर, यह काम हमें करने दीजिए।इसे भगवान श्रीनिवास की सेवा मानिए।”एक ही सप्ताह में रस्सियों, चरखियों और जंजीरों की सहायता से पेड़ों को सड़क तक लाया गया।अयंगर जी ने फिर पहल करते हुए 16-व्हीलर लंबा ट्रक भी व्यवस्था कर दिया।दो दिनों में सभी छह लट्ठों से भरा ट्रक बेंगलुरु पहुँच गया।विधान सौधा के पास एक छोटी पूजा के बाद मुख्यमंत्री ने औपचारिक रूप से उन्हें TTD को सौंपा।हजारों लोगों के बीच जब मैंने उन लट्ठों को स्पर्श किया, तो मेरे शरीर में अद्भुत रोमांच दौड़ गया।अगले ही दिन शाम 4 बजे ट्रक तिरुपति पहुँचा।शहर के बाहर डेयरी फार्म के पास हजारों स्त्री-पुरुष दीप जलाकर“गोविंदा… गोविंदा…” के जयघोष से स्वागत करने लगे। Playlist 3 Videos Sshree Astro Vastu | Review - Visa Approved | Nitya Joshi | In Gujarati 2:39 Sshree Astro Vastu | Review - Pregnancy and Childbirth | In Hindi 1:56 Sshree Astro Vastu | Courses Review - Panchang, Numerology, AM | By - Astro Kirti Surve | In Marathi 4:42 एक घंटे बाद ट्रक अलिपिरी पहुँचा—जहाँ से पहाड़ी मार्ग शुरू होता है।अब तक सब आनंद ही आनंद था।ड्राइवर नीचे उतरा, पहाड़ी सड़क को देखा—18–19 किलोमीटर लंबी, 7–8 खतरनाक हेयरपिन मोड़ों वाली—और बोला—“सर, यह मेरे जीवन की सबसे बड़ी चुनौती है।मुझे बिना रुके लगातार ऊपर चढ़ना होगा।दीवारें टूट सकती हैं, पत्थर गिर सकते हैं।कितना समय लगेगा—कह नहीं सकता, पर यह करना होगा।”मैंने उसे आश्वासन दिया—“चट्टानें गिरें या दीवारें टूटें, तुम जिम्मेदार नहीं हो।सब हम संभाल लेंगे।”ऊपर जाने वाला यातायात पुराने घाट मार्ग पर मोड़ दिया गया।सूर्यास्त की लालिमा में,वे सागौन के लट्ठे—जो भगवान के ध्वजस्तंभ बनने वाले थे—पहाड़ी चढ़ने लगे।जैसा भय था, वैसा ही हुआ—कहीं चट्टानें गिरींकहीं सुरक्षा दीवारें टूटींकहीं ट्रेलर के पहिए खाई के किनारे फिसल गएहम पीछे से देखते हुए भय से काँप रहे थे।कुछ मोड़ों पर तो ट्रेलर आधा खाई में लटकता सा लग रहा था।मिनट घंटे जैसे लग रहे थे—“गोविंदा… गोविंदा…”और फिर—सभी बाधाओं को मात देते हुएसिर्फ 55 मिनट मेंट्रक तिरुमला पहुँच गया।सैकड़ों भक्त और TTD कर्मचारी“गोविंदा–गोविंदा” के जयघोष से गूँज उठे।तिरुमला की पहाड़ियाँ प्रतिध्वनित हो उठीं।मैं अपनी आँखों पर विश्वास नहीं कर पा रहा था।आनंद की लहरें मन को आकाश तक ले जा रही थीं।आँखों से भक्ति के आँसू बह निकले।मैं आनंद में स्तब्ध खड़ा था।और भी आश्चर्यजनक—ट्रक मालिक, जो कार से पीछे-पीछे आया था,हाथ जोड़कर बोला—“यह मेरा सौभाग्य है कि मुझे भगवान की ऐसी सेवा का अवसर मिला।मैं एक पैसा भी नहीं लूँगा।”अयंगर जी, ट्रक मालिक और चालक कोवैदिक आशीर्वाद, विशेष दर्शन और भगवान के वस्त्र प्रदान किए गए।अब अगला प्रश्न था—ध्वजस्तंभ स्थापित कैसे किया जाए?आधी रात तक चर्चा चली, पर थकान के कारण निर्णय टाल दिया गया।नींद नहीं आई।तब विचार आया—“जिस शक्ति ने यह सब कराया,क्या वह आगे का कार्य पूरा नहीं करेगी?यदि यह मेरे माध्यम से होना लिखा है, तो होगा;नहीं लिखा है, तो नहीं होगा।”मन शांत हो गया।मैं गहरी नींद सोया।अगली सुबह सुझाव आया—“क्यों न लट्ठे को मुख्य द्वार से इस तरह लाया जाएकि नीचे का सिरा ज़मीन पर रहेऔर ऊपर का सिरा लीवर की तरह उठाकरसीधे मंडप के छिद्र से अंदर खड़ा कर दिया जाए?पापविनाशनम बाँध के इंजीनियरों और कुशल कारीगरों की सहायता लें।”यह विचार अद्भुत था!माप लिए गए।इंजीनियरों ने पुष्टि की—भक्तों की कतार में कोई बाधा नहीं होगी।शुभ मुहूर्त मेंसागौन का लट्ठामंदिर की गलियों,गोल्ला मंडपम् औरमुख्य द्वार से लाया गया।धीरे-धीरे कारीगरों ने धक्का दिया—लट्ठा सीधा उठाऔर सही स्थान पर स्थापित हो गया।शाम तक, बिना किसी क्षति के,डांडेली के जंगल का वह सागौनतिरुमलेश का ध्वजस्तंभ बनकर खड़ा था।कितना अद्भुत!भगवान श्रीनिवास की कितनी करुणा!अंतिम क्षण—शास्त्रों के अनुसारनौ रत्न और नौ अन्न ध्वजस्तंभ के नीचे रखे गए।अचानक मेरे मन में भाव आया—मैंने अपने गले सेभगवान श्रीनिवास की स्वर्ण माला उतारकरवहाँ रख दी।तुरंत पुजारी, दानदाता, VIP और भक्तों नेअपने आभूषण अर्पित कर दिए।सब सील करकंक्रीट डाली गईऔर ध्वजस्तंभ ठीक 90 डिग्री पर स्थापित हुआ।(पुराने ध्वजस्तंभ को पापविनाशनम बाँध पर विधिपूर्वक विसर्जित किया गया।)एक माह मेंमंच, स्वर्ण मढ़ाई, ध्वज और यज्ञ वेदी पूर्ण हो गई।10 जून 1982 कोवैदिक मंत्रोच्चार के साथध्वजस्तंभ का प्रतिष्ठापन हुआ।छह दिन बाद, 16 जून कोमैंने कार्यभार सौंपा और मेरा स्थानांतरण हो गया।जाते समयमैंने उस सागौन को देखाजो दंडकारण्य से आकरभगवान का ध्वजस्तंभ बना था।ध्वज के पास की घंटियाँमानो मुझे विदा कह रही थीं।पास खड़े एक वृद्ध विद्वान ने मुस्कराकर कहा—“मैं कर्ता नहीं हूँ—कर्ता तो हरि हैं।सभी कर्म और पूजा उन्हीं की है।यदि मेरे माध्यम से कुछ शुभ हुआ है,तो वह केवल उनकी कृपा से।”ॐ नमो वेंकटेशाय!इसे साझा करें—सबका मंगल हो। मैं कर्ता नहीं हूँ, कर्ता तो हरि हैं। मैं कर्ता नहीं हूँ, कर्ता तो हरि हैं। 🔊 Listen to this जैसा प्राप्त हुआ वैसा ही प्रेषित आंध्र प्रदेश के पूर्व IAS अधिकारीपी. वी. आर. के. प्रसाद द्वारा लिखितवर्ष 1982 में “नाहं कर्ता, हरिः कर्ता”(मैं कर्ता नहीं हूँ, कर्ता तो हरि हैं) तिरुमला पहाड़ी पर स्थित भगवान वेंकटेश्वर के मंदिर में ध्वजस्तंभ (ध्वजदंड) के भीतर का लकड़ी का मूल ढांचा पूरी तरह सड़ चुका था।भगवान के मंदिर के शिखर पर स्थित आनंद निलय विमानम् की पॉलिशिंग के साथ-साथ कई मरम्मत कार्य चल रहे थे। एक दिन अचानक एक इंजीनियर घबराया हुआ दौड़ता आया और बोला—“ध्वजस्तंभ सड़ चुका है।” जब चन्द्र ग्रह: एक विस्तृत शास्त्रीय विवेचन चन्द्र ग्रह: एक विस्तृत शास्त्रीय विवेचन 🔊 Listen to this ज्योतिष शास्त्र में चन्द्रमा को ‘मन’ और ‘माता’ का कारक माना गया है। “चन्द्रमा मनसो जातः” (पुरुष सूक्त) – अर्थात चन्द्रमा विराट पुरुष के मन से उत्पन्न हुआ है। जहाँ सूर्य आत्मा है, वहाँ चन्द्रमा मन है। सूर्य राजा है, तो चन्द्रमा रानी (राजमाता) है। पृथ्वी के सबसे निकट होने के कारण, मानव जीवन, वनस्पति और ज्वारभाटा पर इसका सर्वाधिक प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है। इसे सोम, शशाङ्क, निशाकर और ओषधीश आदि नामों से भी जाना जाता है। १. पौराणिक एवं शास्त्रीय स्वरूप पौराणिक कथा: पुराणों के अनुसार, चन्द्रमा महर्षि अत्रि अथ मोक्षकारक केतु विमर्शः अथ मोक्षकारक केतु विमर्शः 🔊 Listen to this भारतीय ज्योतिष शास्त्र में केतु को एक अत्यन्त रहस्यमयी, आध्यात्मिक और मोक्ष प्रदाता ग्रह माना गया है। जिस प्रकार राहु ‘भोग’ और ‘माया’ का विस्तार है, ठीक उसके विपरीत केतु त्याग, वैराग्य और मोक्ष का कारक है। केतु को ‘शिखी’ (चोटी) और ‘ध्वजा’ (पताका) भी कहा जाता है, जो यह दर्शाता है कि यह ग्रह जातक को सांसारिक बन्धनों से मुक्त कर परम पद ऊंचाई तक ले जाने की क्षमता रखता है। महर्षि पराशर, वराहमिहिर, मन्त्रेश्वर, और वैद्यनाथ आदि आचार्यों द्वारा रचित ग्रन्थों के आधार पर मैं केतु ग्रह का विस्तृत, आप सभी लोगों से निवेदन है कि हमारी पोस्ट अधिक से अधिक शेयर करें जिससे अधिक से अधिक लोगों को पोस्ट पढ़कर फायदा मिले | Join Our Whatsapp Group