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संतान योग में कारक या बाधक ग्रह

  1. जन्म कुंडली में संतान कारक ग्रह

ज्योतिष शास्त्र में संतान सुख का विश्लेषण मुख्य रूप से पंचम भाव, पंचमेश, और संबंधित ग्रहों के आधार पर किया जाता है। सूर्य सिद्धांत और पराशर ज्योतिष के अनुसार, निम्नलिखित ग्रह संतान कारक माने जाते हैं:

 

     गुरु (बृहस्पति): गुरु को संतान का प्रमुख कारक ग्रह माना जाता है। पराशर होरा शास्त्र में कहा गया है:

“गुरु: पुत्रकारक: स्याद् बलवान् पंचमे स्थिता”

   अर्थ: गुरु संतान का कारक है और पंचम भाव में बलवान होने पर संतान सुख देता है।

गुरु का शुभ प्रभाव बुद्धि, प्रजनन शक्ति, और संतान की गुणवत्ता को बढ़ाता है।

सूर्य: सूर्य आत्मा और जीवन शक्ति का प्रतीक है। यह पंचम भाव में शुभ स्थिति में होने पर संतान सुख देता है। सूर्य सिद्धांत में सूर्य को जीवन का मूल आधार माना गया है, जो प्रजनन ऊर्जा को नियंत्रित करता है।

सूर्य सिद्धांत श्लोक: “आदित्य: सर्वजीवानां जीवनं च प्रभु: स्मृत:”

अर्थ: सूर्य सभी जीवों का जीवन और प्रभु है।

चंद्रमा: चंद्रमा मन और मातृत्व का कारक है। यह संतान के पोषण और भावनात्मक संबंध को दर्शाता है।

जातक पारिजात श्लोक: “चंद्र: मातृसुखं पुत्रं च ददाति शुभे स्थिता”

अर्थ: शुभ स्थिति में चंद्रमा मातृसुख और संतान देता है।

शुक्र: शुक्र प्रजनन शक्ति और वीर्य का कारक है। यह पुरुष और स्त्री दोनों के प्रजनन स्वास्थ्य को प्रभावित करता है।

बृहत् पराशर होरा शास्त्र: “शुक्र: संतानसौख्यं च बीजं च नियति बलात्”

अर्थ: शुक्र संतान सुख और बीज (वीर्य) को नियंत्रित करता है।

  1. संतान बाधक ग्रह

कुछ ग्रह अपनी अशुभ स्थिति या दृष्टि से संतान प्राप्ति में बाधा उत्पन्न करते हैं। ये हैं:

 

शनि: शनि विलंब और बाधा का कारक है। यदि शनि पंचम भाव, पंचमेश, या गुरु पर अशुभ दृष्टि डालता है, तो संतान प्राप्ति में देरी या कठिनाई हो सकती है।

सर्वार्थ चिंतामणि श्लोक: “शनि: पंचमे दृष्टे वा संतानविलंबक:”

अर्थ: शनि पंचम भाव में या उस पर दृष्टि डालने से संतान में विलंब करता है।

राहु: राहु अचानक बाधा, गर्भपात, या असामान्य परिस्थितियों का कारण बनता है।

फलदीपिका श्लोक: “राहु: पंचमे गर्भनाशं करोति च”

अर्थ: राहु पंचम भाव में गर्भनाश का कारण बनता है।

मंगल: मंगल तीव्र ऊर्जा और रक्त दोष का कारक है। अशुभ स्थिति में यह गर्भपात या प्रजनन समस्याएँ पैदा करता है।

जातक तत्वं: “मंगल: पंचमे रक्तदोषं करोति”

अर्थ: मंगल पंचम भाव में रक्त दोष उत्पन्न करता है।

केतु: केतु आध्यात्मिकता का कारक है, लेकिन पंचम भाव में यह संतान से वैराग्य या गर्भपात का कारण बन सकता है।

मुहूर्त चिंतामणि: “केतु: पंचमे संन्यासं वा संताननाशं करोति”

अर्थ: केतु पंचम भाव में संन्यास या संतान नाश करता है।

  1. संतान में बाधा या विलंब की ग्रह स्थिति

संतान प्राप्ति में बाधा या विलंब निम्नलिखित ग्रह स्थितियों के कारण हो सकता है:

 

     पंचम भाव का कमजोर होना: यदि पंचम भाव में शत्रु राशि के ग्रह, नीच ग्रह, या पाप ग्रह (शनि, राहु, मंगल) हों, तो संतान सुख में कमी आती है।

फ्रीउदाहरण: यदि पंचम भाव में शनि और राहु की युति हो, तो गर्भपात या संतान प्राप्ति में देरी हो सकती है।

पंचमेश का अशुभ होना: पंचमेश का नीच राशि में होना, पाप ग्रहों की युति या दृष्टि में होना, या छठे, आठवें, बारहवें भाव में होना संतान में बाधा डालता है।

उदाहरण: यदि पंचमेश मंगल स्कॉर्पियो में हो, लेकिन शनि की दृष्टि में हो, तो संतान प्राप्ति में विलंब होता है।

गुरु का पीड़ित होना: गुरु का नीच राशि (मकर) में होना, पाप ग्रहों की युति में होना, या छठे/आठवें भाव में होना संतान सुख को कम करता है।

बृहत् पराशर होरा शास्त्र: “गुरु: नीचे वा पापदृष्टे संतानसुखं न ददाति”

अर्थ: नीच या पाप दृष्ट गुरु संतान सुख नहीं देता।

क्वांटम सिद्धांत के आधार पर विश्लेषण:

क्वांटम सिद्धांत के अनुसार, ग्रहों की ऊर्जा तरंगें मानव शरीर के चक्रों (विशेष रूप से मूलाधार और स्वाधिष्ठान चक्र) को प्रभावित करती हैं। शनि और राहु की नकारात्मक तरंगें प्रजनन ऊर्जा को बाधित करती हैं, जिससे प्रजनन प्रक्रिया में असंतुलन आता है। सूर्य सिद्धांत में सूर्य और गुरु की सकारात्मक ऊर्जा प्रजनन चक्र को संतुलित करती है।

प्रमाण: सूर्य सिद्धांत में सूर्य की किरणों को प्राणशक्ति माना गया है, जो गर्भाधान में सहायक है।

नवमांश कुंडली (D-9): संतान सुख के लिए नवमांश कुंडली का विश्लेषण आवश्यक है। यदि नवमांश में पंचमेश कमजोर हो या पाप ग्रहों से पीड़ित हो, तो संतान प्राप्ति में बाधा आती है।

  1. सूर्य सिद्धांत और ज्योतिषीय गणित

सूर्य सिद्धांत में ग्रहों की गति और उनकी ऊर्जा का मानव जीवन पर प्रभाव गणितीय रूप से विश्लेषित किया जाता है। उदाहरण के लिए:

 

सूर्य की गति: सूर्य की 1 डिग्री प्रति दिन की गति प्रजनन चक्र को प्रभावित करती है। यदि सूर्य पंचम भाव में शुभ स्थिति में है, तो यह गर्भाधान के लिए अनुकूल समय दर्शाता है।

गुरु की गति: गुरु की 13-महीने की राशि परिवर्तन गति संतान प्राप्ति के लिए शुभ काल का निर्धारण करती है।

गणितीय विश्लेषण: गोचर में गुरु और सूर्य की पंचम भाव या पंचमेश पर दृष्टि संतान प्राप्ति के लिए शुभ समय दर्शाती है।

सूर्य सिद्धांत सूत्र:

S = E × cos(θ)

जहाँ S = सूर्य की प्रभावी ऊर्जा, E = ग्रह की मूल ऊर्जा, और θ = ग्रह और पंचम भाव का कोण। यह सूत्र संतान सुख के लिए ग्रहों की स्थिति का गणितीय विश्लेषण करता है।

  1. ज्योतिषीय और तांत्रिक उपाय

नीचे कुछ सामान्य और अनूठे उपाय दिए जा रहे हैं, जो संतान प्राप्ति में सहायक हो सकते हैं। ये उपाय ग्रंथों और तांत्रिक सिद्धांतों पर आधारित हैं, और कुछ नवीन उपाय भी शामिल हैं जो कम प्रचलित हैं।

 

ज्योतिषीय उपाय:

गुरु पूजा और मंत्र जाप:

गुरु संतान का प्रमुख कारक है। निम्नलिखित मंत्र का 108 बार प्रतिदिन जाप करें:

मंत्र: “ॐ बृं बृहस्पतये नमः”

प्रमाण: बृहद् पराशर होरा शास्त्र में गुरु मंत्र को संतान सुख के लिए प्रभावी बताया गया है।

विधि: गुरुवार को पीले वस्त्र पहनकर, पीले चंदन से तिलक लगाकर, केले के पेड़ के नीचे बैठकर जाप करें।

संतान गोपाल मंत्र:

मंत्र: “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय”

विधि: इस मंत्र का 1 लाख जाप 40 दिनों में पूरा करें। प्रत्येक दिन जाप के बाद दूध और केसर का दान करें।

प्रमाण: श्रीमद्भागवत पुराण में इस मंत्र को संतान प्राप्ति के लिए प्रभावी बताया गया है।

पंचम भाव शुद्धि:

पंचम भाव में पाप ग्रहों की दृष्टि को शांत करने के लिए पंचमेश के रत्न (जैसे, कर्क लग्न के लिए चंद्रमा का मोती) धारण करें।

उदाहरण: यदि पंचमेश गुरु है, तो पुखराज धारण करें, लेकिन केवल ज्योतिषी की सलाह के बाद।

तांत्रिक उपाय (अनूठे और कम प्रचलित):

सूर्य-गुरु यंत्र साधना:

एक तांबे के यंत्र पर सूर्य और गुरु के बीज मंत्र (“ॐ ह्रां ह्रीं सूर्याय नमः” और “ॐ बृं बृहस्पतये नमः”) अंकित करें।

इस यंत्र को सूर्योदय के समय गंगाजल से शुद्ध करें और 21 दिन तक सूर्य सिद्धांत के अनुसार सूर्य की किरणों में रखें।

प्रतिदिन यंत्र के सामने धूप-दीप जलाकर ऊपर दिए मंत्रों का 108 बार जाप करें।

विशेषता: यह यंत्र सूर्य और गुरु की सकारात्मक ऊर्जा को प्रजनन चक्र में संतुलित करता है, जो क्वांटम सिद्धांत के अनुसार ऊर्जा तरंगों को संरेखित करता है।

कामदा एकादशी व्रत:

कामदा एकादशी (चैत्र मাস की शुक्ल एकादशी) पर व्रत करें और रात में भगवान विष्णु की मूर्ति के सामने तुलसी माला से निम्नलिखित मंत्र का जाप करें:

मंत्र: “ॐ नमो नारायणाय पुत्रदाय नमः”

विधि: व्रत के दिन केवल फलाहार करें और तुलसी के पौधे को जल अर्पित करें।

प्रमाण: यह उपाय विष्णु पुराण में संतान प्राप्ति के लिए बताया गया है।

पंचम भाव शक्ति साधना:

पंचम भाव की ऊर्जा को जागृत करने के लिए एक तांत्रिक साधना करें।

विधि:

एक छोटे से मिट्टी के घड़े में गंगाजल, केसर, और पांच तुलसी के पत्ते डालें।

इस घड़े को पंचम भाव के स्वामी ग्रह के नक्षत्र (उदाहरण: गुरु के लिए पुनर्वसु, विशाखा, या पूर्वाभाद्रपद) में सूर्योदय के समय घर के पूजा स्थल में रखें।

प्रतिदिन सुबह इस घड़े के सामने 11 बार गायत्री मंत्र का जाप करें और जल को गर्भवती स्त्री या संतान की कामना करने वाले व्यक्ति के ऊपर छिड़कें।

विशेषता: यह उपाय पंचम भाव की नकारात्मक ऊर्जा को शुद्ध करता है और प्रजनन चक्र को क्वांटम स्तर पर सक्रिय करता है।

राहु-केतु शांति तंत्र:

यदि राहु या केतु पंचम भाव में हैं, तो निम्नलिखित तांत्रिक उपाय करें:

एक काले कपड़े में 8 गोमेद रत्न और 8 काले तिल के दाने बांधें।

इस पोटली को शनिवार की रात को किसी नदी में प्रवाहित करें, साथ ही राहु मंत्र (“ॐ रां राहवे नमः”) का 108 बार जाप करें।

प्रमाण: यह उपाय तंत्र शास्त्र में राहु-केतु की अशुभ ऊर्जा को शांत करने के लिए बताया गया है।

  1. सूर्य सिद्धांत और क्वांटम सिद्धांत का एकीकरण

सूर्य सिद्धांत: सूर्य की किरणें प्राणशक्ति को बढ़ाती हैं, जो गर्भाधान के लिए आवश्यक है। सूर्य सिद्धांत में सूर्य की स्थिति और उसकी ऊर्जा को प्रजनन चक्र से जोड़ा गया है।

क्वांटम सिद्धांत: ग्रहों की तरंगें  मानव शरीर के चक्रों को प्रभावित करती हैं। उदाहरण के लिए, गुरु की उच्च तरंगें स्वाधिष्ठान चक्र को सक्रिय करती हैं, जो प्रजनन से संबंधित है।

एकीकरण: सूर्य और गुरु के मंत्रों का जाप और यंत्र साधना क्वांटम स्तर पर ऊर्जा संतुलन बनाकर संतान प्राप्ति की संभावना बढ़ाते हैं।

  1. सावधानियाँ और अतिरिक्त सलाह

चिकित्सीय परामर्श: ज्योतिषीय उपायों के साथ-साथ चिकित्सीय सलाह अवश्य लें, क्योंकि प्रजनन समस्याएँ शारीरिक भी हो सकती हैं।

विश्वास और धैर्य: तांत्रिक और ज्योतिषीय उपायों का प्रभाव तभी होता है जब इन्हें पूर्ण विश्वास और नियमितता से किया जाए।

लग्न विश्लेषण: कुंडली के लग्न और पंचम भाव का विश्लेषण किसी योग्य ज्योतिषी से करवाएँ, क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति की कुंडली अद्वितीय होती है।

 

संतान सुख के लिए गुरु, सूर्य, चंद्रमा, और शुक्र प्रमुख कारक ग्रह हैं, जबकि शनि, राहु, मंगल, और केतु अशुभ स्थिति में बाधक बन सकते हैं। सूर्य सिद्धांत और क्वांटम सिद्धांत के आधार पर ग्रहों की ऊर्जा प्रजनन चक्र को प्रभावित करती है। उपरोक्त ज्योतिषीय और तांत्रिक उपाय, विशेष रूप से सूर्य-गुरु यंत्र साधना और पंचम भाव शक्ति साधना, संतान प्राप्ति में सहायक हो सकते हैं। ये उपाय ग्रंथों पर आधारित हैं और कुछ अनूठे हैं, जो सामान्य रूप से प्रचलित नहीं हैं।

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