भारत का इतिहास वीरता, शौर्य और बलिदान की गाथाओं से भरा हुआ है। ऐसे ही वीरों में से एक थे पेशवा बाजीराव प्रथम – जिन्हें “बाजीराव बल्लाल” के नाम से भी जाना जाता है। वे केवल मराठा साम्राज्य ही नहीं, बल्कि सम्पूर्ण भारतवर्ष के ऐसे वीर सेनानायक थे, जिनकी युद्धनीति, दूरदृष्टि और नेतृत्व क्षमता ने मुगलों और उनके सहयोगियों की नींद हराम कर दी थी। आज भी जब युद्ध कौशल और रणनीति की बात आती है तो पेशवा बाजीराव का नाम सबसे पहले लिया जाता है। उनकी जयंती भारतवासियों के लिए गर्व और प्रेरणा का प्रतीक है।
प्रारंभिक जीवन और पृष्ठभूमि
बाजीराव का जन्म 18 अगस्त 1700 को हुआ था। उनके पिता का नाम बलाजी विश्वनाथ था, जो मराठा साम्राज्य के पहले पेशवा बने। माँ का नाम राधाबाई था। बचपन से ही बाजीराव अत्यंत पराक्रमी, साहसी और युद्ध-कौशल में निपुण थे। मात्र 20 वर्ष की आयु में, पिता के निधन के बाद, उन्हें छत्रपति शाहू महाराज ने मराठा साम्राज्य का पेशवा नियुक्त किया। इतनी कम उम्र में इतनी बड़ी जिम्मेदारी मिलना ही यह सिद्ध करता है कि वे असाधारण प्रतिभा के धनी थे।
बाजीराव की युद्ध नीति
बाजीराव को भारतीय इतिहास के महानतम सेनानायकों में गिना जाता है। उनका युद्ध सूत्र वाक्य था –
“जो थल-युद्ध में तेज़ है, वही विजय प्राप्त करता है।”
उन्होंने सदैव तेज़ गति, अचानक आक्रमण और शत्रु को संभलने का अवसर न देने की रणनीति अपनाई। उनकी सेना विशेष रूप से घुड़सवार दस्तों के लिए प्रसिद्ध थी। कहा जाता है कि उनकी टुकड़ियाँ 50-60 किलोमीटर प्रतिदिन की दूरी तय करती थीं, जो उस समय किसी भी सेना के लिए असंभव सा था।
उनकी रणनीति थी – “जहाँ दुश्मन की उम्मीद न हो, वहाँ प्रहार करो।”
यही कारण था कि उनके जीवनकाल में उन्होंने एक भी युद्ध नहीं हारा।
प्रमुख युद्ध और विजयों की गाथा
बाजीराव ने मराठा साम्राज्य को केवल महाराष्ट्र तक सीमित नहीं रहने दिया, बल्कि उत्तर भारत तक इसका विस्तार किया। बुंदेलखंड के राजा छत्रसाल बुंदेला को मुगलों और बंगश नवाब से मुक्ति दिलाने में बाजीराव ने अहम भूमिका निभाई। छत्रसाल ने कृतज्ञता स्वरूप बाजीराव को भूमि और संसाधन भेंट किए।
1737 में बाजीराव ने मात्र 25,000 सैनिकों के साथ दिल्ली पर चढ़ाई की और मुगलों को दिखा दिया कि मराठा साम्राज्य अब उत्तर भारत की राजनीति में सबसे बड़ी शक्ति है। उनकी इस सफलता ने मुगलों की कमर तोड़ दी।
बाजीराव ने हैदराबाद के निज़ाम को कई बार पराजित किया। निज़ाम के साथ उनकी प्रतिद्वंद्विता प्रसिद्ध रही। एक बार जब निजाम ने मराठों को चुनौती दी, तो बाजीराव ने नासिक के पास पालखेड़ की लड़ाई (1728) में उसे करारी शिकस्त दी। यह युद्ध उनकी असाधारण रणनीति का उत्कृष्ट उदाहरण है।
बाजीराव का व्यक्तित्व
बाजीराव केवल योद्धा ही नहीं, बल्कि दूरदर्शी प्रशासक भी थे। उनका मानना था कि मराठा साम्राज्य को केवल दक्षिण तक सीमित नहीं रहना चाहिए, बल्कि सम्पूर्ण भारत में फैलाना चाहिए। इसी दृष्टिकोण से उन्होंने उत्तर भारत तक अपने अभियान चलाए।
उनका व्यक्तित्व तेजस्वी, निर्णायक और अत्यंत प्रेरणादायी था। वे सैनिकों के प्रिय नेता थे क्योंकि वे सदैव उनकी कठिनाइयों और सुख-दुख में साथ खड़े रहते थे।
मास्टर रणनीतिकार – “मराठा चील”
बाजीराव को “मराठा चील” कहा जाता है, क्योंकि वे बिजली की गति से आक्रमण करते थे और दुश्मन को सँभलने का समय ही नहीं मिलता था। उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि यह रही कि उन्होंने मराठा साम्राज्य को उस समय भारत की प्रमुख शक्ति बना दिया, जब मुगल साम्राज्य धीरे-धीरे कमजोर हो रहा था।
इतिहासकार कहते हैं –
“भारत में नादिरशाह आया, लेकिन दिल्ली को लूटने से पहले यदि कोई उसे रोक सकता था, तो वह केवल पेशवा बाजीराव थे।”
निजी जीवन और मस्तानी के साथ प्रेम
इतिहास में बाजीराव और मस्तानी का प्रेम भी बहुत चर्चित है। मस्तानी बुंदेलखंड के राजा छत्रसाल की पुत्री थीं। छत्रसाल ने बाजीराव की सहायता से प्रसन्न होकर उन्हें अपनी पुत्री मस्तानी को साथ भेजा।
मस्तानी अद्वितीय सुंदरी, साहसी और कला-निपुण थीं। बाजीराव और मस्तानी का प्रेम समाज को स्वीकार्य नहीं था, लेकिन दोनों ने एक-दूसरे के प्रति निष्ठा और समर्पण बनाए रखा। यह प्रसंग हमें बाजीराव के मानवीय और भावनात्मक पक्ष को दर्शाता है।
बाजीराव की असमय मृत्यु
इतिहास की सबसे बड़ी विडंबना यह रही कि इतना महान योद्धा, जिसने अपने जीवन में कभी कोई युद्ध नहीं हारा, उसे मौत रणभूमि में नहीं बल्कि बीमारी से मिली।
28 अप्रैल 1740 को, मात्र 39 वर्ष की आयु में, बाजीराव का निधन हुआ। उस समय वे पुणे से दूर अपने सैन्य अभियान पर थे। उनकी मृत्यु से पूरा मराठा साम्राज्य शोकाकुल हो उठा।
बाजीराव की विरासत
बाजीराव की जयंती हमें उनके पराक्रम और योगदान की याद दिलाती है। उनकी सबसे बड़ी विरासत यह रही कि उन्होंने मराठों को महाराष्ट्र से बाहर निकालकर सम्पूर्ण भारत की राजनीति में स्थापित किया।
उनकी रणनीति, युद्ध कौशल और नेतृत्व आज भी भारतीय सेनाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत है।
साहित्य और लोकप्रिय संस्कृति में बाजीराव
बाजीराव का नाम केवल इतिहास की पुस्तकों तक सीमित नहीं है, बल्कि साहित्य, नाट्य और सिनेमा में भी अमर है। मराठी कवियों ने उन्हें मराठा गौरव कहा। हाल के वर्षों में फिल्मों और धारावाहिकों के माध्यम से भी उनका जीवन व्यापक रूप से जनमानस तक पहुँचा है।
फिल्म “बाजीराव मस्तानी” ने उनके प्रेम और शौर्य को लोकप्रिय संस्कृति में और अधिक जीवंत कर दिया।
आज के युग में बाजीराव से प्रेरणा
आज जब हम बाजीराव की जयंती मनाते हैं, तो हमें केवल उनके युद्ध कौशल को ही नहीं, बल्कि उनके दृष्टिकोण को भी याद रखना चाहिए।
निष्कर्ष
पेशवा बाजीराव प्रथम केवल एक सेनानायक नहीं थे, बल्कि वे भारत की मिट्टी के सच्चे सपूत थे। उनकी जयंती केवल महाराष्ट्र या मराठा गौरव का ही नहीं, बल्कि सम्पूर्ण भारत का उत्सव है।
उनका जीवन हमें सिखाता है कि पराक्रम, निष्ठा और दूरदृष्टि से असंभव को संभव किया जा सकता है।
आज जब हम उनके स्मरण में दीप प्रज्वलित करते हैं, तो यह केवल अतीत का सम्मान नहीं है, बल्कि भविष्य के लिए प्रेरणा भी है।
✍️ लेखक का संदेश :
पेशवा बाजीराव की जयंती पर हमें यह संकल्प लेना चाहिए कि हम भी उनके जैसे साहसी, दूरदर्शी और कर्मठ बनकर राष्ट्र की सेवा करें।