एक दिन आता है और उनमें से एक को ले जाता है
जो जाता है वह भाग जाता है, जो पीछे रह जाता है उसके लिए परीक्षा होती है
पहले कौन जाएगा? भगवान ही जाने बाद में कौन जायेगा
जो लोग पीछे रह जाते हैं उनके लिए यादें और आंसू आना बहुत स्वाभाविक है!
अब सवाल यह है कि इस रोने को कौन रोकेगा?
पीछे छूट गए माँ या पिता को कौन ले जाना चाहता है?
पीछे से कौन हाथ फेरेगा?
निश्चित रूप से यह बेटे, बेटियों, बहुओं की जिम्मेदारी है…
संक्षेप में, क्या होगा यदि
दोनों में से एक के चले जाने के बाद
बच्चों को अपने माता-पिता का माता-पिता बनना चाहिए!
याद रखें कि बचपन में आपके माता-पिता हमेशा आपके आँसू पोंछते थे
बीमारी के दौरान कई रातें जागते हुए कटती हैं
खुद को भूखा रखकर हम कुछ न कुछ खिलाकर , संतुष्ट होते थे |
अप्राप्य खिलौने और पसंदीदा कपड़े ले लिए जाते हैं
तो अब हमारी जिम्मेदारी है कि हम भी उनकी तरह निस्वार्थ भाव से प्यार करें
तभी वे जीवित रह सकते हैं
यदि नहीं, तो “वह पुरुष पिता है” या “वह स्त्री माँ है” टूट सकता है, ढह सकता है!
और यह जिम्मेदारी सिर्फ बेटे, बेटियों और बहुओं तक ही सीमित नहीं है
तो यह हर रिश्तेदार, परिचित, मित्र……. हर किसी की जिम्मेदारी है!
यह जिम्मेदारी सिर्फ आश्रय, भोजन और सुविधाएं मुहैया कराने से ही खत्म नहीं हो जाती, बल्कि हमें ऐसे लोगों को समय और प्यार भी देना होगा, तभी ये लोग जीवित रह सकते हैं!
जीवन साथी को खोने का असली मतलब क्या है? ये दर्द शब्दों और आंसुओं से परे है…तो समझो ऐसे लोग!
माया के सिर्फ दो मीठे बोल, प्यार और स्नेह, उनकी उम्मीदें पूरी कर देते हैं
कल्पना कीजिए कि आप उनकी जगह पर हैं और उन्हें समय दें!
कल को यह घटना किसी के साथ भी घट सकती है
इसलिए हमेशा सभी के साथ प्यार, देखभाल और स्नेह से पेश आएं!