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पंचक

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार चन्द्र ग्रह का धनिष्ठा नक्षत्र के तृतीय चरण और शतभिषा, पूर्वाभाद्रपद, उत्तराभाद्रपद तथा रेवती नक्षत्र के चारों चरणों में भ्रमण काल पंचक काल कहलाता है। इस तरह चन्द्र ग्रह का कुम्भ और मीन राशी में भ्रमण पंचकों को जन्म देता है। अर्थात पंचक के अंतर्गत धनिष्ठा, शतभिषा, उत्तरा भाद्रपद, पूर्वा भाद्रपद व रेवती नक्षत्र आते हैं। इन्हीं नक्षत्रों के मेल से बनने वाले विशेष योग को ‘पंचक’ कहा जाता है।

रविवार  के दिन पंचक प्रारंभ हो तो रोग पंचक कहलाते है इन पंचकों के  समय में  कोई शुभ मांगलिक कार्य करे तो शारीरिक, मानसिक परेशानी होती है।

सोमवार के दिन पंचक प्रारंभ हो तो उन्हे राज पंचक कहते है।

इन पंचक के समय में सरकारी कार्य, नौकरी,संपत्ति से जुड़े कार्य करना चाहिए सफलता मिलेगी।

मंगलवार के दिन  पंचक प्रारंभ हो तो उन्हे अग्नि पंचक कहते है।

इन पंचकों में निर्माण कार्य, मशीनरी कार्य,करने से दुर्घटना की संभावना रहती है।

कोर्ट,कचहरी,विवाद के अहम फैसले करना चाहिए।

शुक्रवार के दिन पंचक प्रारंभ हो तो उन्हे चोर पंचक कहते हैं।

इन पंचकों में यात्रा करने में धन चोरी, जेब कटना,व्यापार आरंभ करने लेनदेन में धन की भूल या चोरी का अंदेशा रहता है।

शनिवार के दिन पंचक प्रारंभ हो तो उन्हे मृत्यु पंचक कहते हैं।

इनमे निर्माण कार्य या बड़ा लंबे समय तक चलने बाला कार्य में दुर्घटनाएं या कष्ट रहने की संभावना रहती है।

बुधवार,गुरुवार को और सोमवार को  पंचक प्रारंभ हो तो शुभ कहलाते है।

पंचक के नक्षत्रों का प्रभाव:-
  1. धनिष्ठा नक्षत्र में अग्नि का भय रहता है।
  2. शतभिषा नक्षत्र में कलह होने की संभावना रहती है।
  3. पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र में रोग बढ़ने की संभावना रहती है।
  4. उतरा भाद्रपद में धन के रूप में दंड होता है।
  5. रेवती नक्षत्र में धन हानि की संभावना रहती है।

पंचकों में किन कार्यों को आरंभ करने से बचना चाहिए

1.लकड़ी एकत्र करना या खरीदना।

  1. मकान पर छत डलवाना।
  2. शव जलाना।
  3. पलंग या चारपाई बनवाना और दक्षिण दिशा की ओर यात्रा करना। ये पांच कार्य करने से बचना चाहिए अगर करना ही आवश्यक हो तो किसी विद्वान, ज्योतिष से सलाह लेकर उनके परिहार करते हुए उन्होंने संपन्न करना चाहिए।

 

 

क्या होतें हैं पंचक?

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क्या पंचक में कर सकते हैं शुभ कार्य

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हिन्दू पंचांग अनुसार प्रत्येक माह में पांच ऐसे दिन आते हैं जिनका अलग ही महत्व होता है।

 

 प्रचलित मान्यता अनुसार पंचक में कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता है लेकिन ऐसा जरूरी नहीं है। प्रत्येक माह का पंचक अलग अलग होता है तो किसी माह में शुभ कार्य नहीं किया जाता है तो किसी माह में किया जाता है।

 

पंचक क्या है?

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ज्योतिष शास्त्र के अनुसार चन्द्र ग्रह का धनिष्ठा नक्षत्र के तृतीय चरण और शतभिषा, पूर्वाभाद्रपद, उत्तराभाद्रपद तथा रेवती नक्षत्र के चारों चरणों में भ्रमण काल पंचक काल कहलाता है। इस तरह चन्द्र ग्रह का कुम्भ और मीन राशी में भ्रमण पंचकों को जन्म देता है।

 

 अर्थात पंचक के अंतर्गत धनिष्ठा, शतभिषा, उत्तरा भाद्रपद, पूर्वा भाद्रपद व रेवती नक्षत्र आते हैं। इन्हीं नक्षत्रों के मेल से बनने वाले विशेष योग को ‘पंचक’ कहा जाता है।

 

अगर आधुनिक खगोल विज्ञान की दृष्टि से देखें तो 360 अंशों वाले भचक्र में पृथ्वी जब 300 अंश से 360 अंश के मध्य भ्रमण कर रही होती है तो उस अवधि में धरती पर चन्द्रमा का प्रभाव अत्यधिक होता है। उसी अवधि को पंचक काल कहते हैं।

 

पंचक में नहीं करते हैं ये पांच कार्य :

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शास्त्रों में निम्नलिखित पांच कार्य ऐसे बताए गए है जिन्हें पंचक काल के दोरान नहीं किया जाना चाहिए। जैसे 1.लकड़ी एकत्र करना या खरीदना, 2. मकान पर छत डलवाना, 3. शव जलाना, 4. पलंग या चारपाई बनवाना और दक्षिण दिशा की ओर यात्रा करना।

 

यदि लकड़ी खरीदना अनिवार्य हो तो पंचक काल समाप्त होने पर गायत्री माता के नाम का हवन कराएं। यदि मकान पर छत डलवाना अनिवार्य हो तो मजदूरों को मिठाई खिलने के पश्चात ही छत डलवाने का कार्य करें। यदि पंचक काल में शव दाह करना अनिवार्य हो तो शव दाह करते समय पांच अलग पुतले बनाकर उन्हें भी आवश्य जलाएं।

 

इसी तरह यदि पंचक काल में पलंग या चारपाई लाना जरूरी हो तो पंचक काल की समाप्ति के पश्चात ही इस पलंग या चारपाई का प्रयोग करें। अंत में यह कि यदि पंचक काल में दक्षिण दिशा की यात्रा करना अनिवार्य हो तो हनुमान मंदिर में फल चढ़ाकर यात्रा प्रारंभ कर सकते हैं। ऐसा करने से पंचक दोष दूर हो जाता है।

 

पंचक के प्रकार जानिए:

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1.रविवार को पड़ने वाला पंचक रोग पंचक कहलाता है।

 

2.सोमवार को पड़ने वाला पंचक राज पंचक कहलाता है।

 

3.मंगलवार को पड़ने वाला पंचक अग्नि पंचक कहलाता है।

 

4.शुक्रवार को पड़ने वाला पंचक चोर पंचक कहलाता है।

 

5.शनिवार को पड़ने वाला पंचक मृत्यु पंचक कहलाता है।

 

6.इसके अलावा बुधवार और गुरुवार को पड़ने वाले पंचक में ऊपर दी गई बातों का पालन करना जरूरी नहीं माना गया है।

 

 इन दो दिनों में पड़ने वाले दिनों में पंचक के पांच कामों के अलावा किसी भी तरह के शुभ काम किए जा सकते हैं।

 

पंचक के नक्षत्रों का प्रभाव:-

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  1. धनिष्ठा नक्षत्र में अग्नि का भय रहता है।

 

  1. शतभिषा नक्षत्र में कलह होने की संभावना रहती है।

 

  1. पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र में रोग बढ़ने की संभावना रहती है।

 

  1. उतरा भाद्रपद में धन के रूप में दंड होता है।

 

  1. रेवती नक्षत्र में धन हानि की संभावना रहती है।

 

 

 

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