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पाकिस्तानी मानसिकता

मैच से एक पाकस्तनी जोलाहे की ये तस्वीर खूब चर्चा में है। एक और जोलाहे खिलाड़ी ने लड़ाकू जहाज़ गिरने की मुद्रा आदि बना कर अपनी ख़ुशी जाहिर की। हालांकि जोलाहे मैच फिर से हार गए किंतु वे फिर भी ख़ुश है। क़ायदे से हौंसले पस्त होने चाहिए किंतु अब भी जोश हिलौरे मार रहा है। इसकी वजह क्या है!

भारत को यह समझना होगा कि एक आम पाकिस्तानी क्यों सोचता है कि उसने युद्ध जीत लिया। यह कोई सामान्य माइंडसेट नहीं है जो महत्त्वपूर्ण लक्ष्यों, भूरणनीतिक स्थिति या यहां तक कि अपने एयरबेस की परवाह करती हो।

 

पाकिस्तानी (या उनके जिहादी) किसी भी टकराव को केवल दो पैरामीटर से नापते हैं। क्या हमने हिंदुओं को मारा? क्या हमने ज़मीन पाई या खोई?

 

कश्मीर में हिंदुओं का टार्गेटेड कत्ल यह दर्शाता है कि उनका एक युद्ध-उद्देश्य भारत के जवाब देने से पहले ही पूरा हो गया — और इस बीच, इस्लामी दुनिया ने काफिरों से कोई ज़मीन नहीं खोई, इसलिए उनके नज़रिए से यह पूरा युद्ध एक पूर्ण विजय बन गया।

 

सीधी बात: अगर पाकिस्तान पे भारत कल हमला कर दे और उनके एक मिलियन लोग मारे जाएँ, सौ एयरक्राफ्ट नष्ट हो जाएँ और उनके शहर टुकड़े-टुकड़े हो जाएँ — मगर उन्होंने एक भी हिंदू मार दिया और सीमा वैसी की वैसी ही रही — तो भी वह पाकिस्तानी जीत है। उन मरे मुसलमानों का माने तो जन्नत जाना तय है, इसलिए यह उनके हिसाब से जीत है। एक मरा हिंदू भी उनके लिए जीत का अतिरिक्त अंक है, और उम्मत का आकार नहीं घटना तो अंतिम जीत है।

 

इतना कहने का मतलब यह भी है कि और आगे के आतंकवाद को रोकना चाहते हैं, तो आपको कश्मीर की सीमा से कम-से-कम 1 किमी ज़मीन पाकिस्तान से लेनी होगी और उसे बफर ज़ोन बनाना होगा ! जब तक इस माइंडसेट वे आगे नहीं जाओगे- सामने वाला हमेशा यही सोचेगा कि वो जीत चुका है। यही ७१ की लड़ाई में हुआ और बाक़ी लड़ाइयों में भी यही हुआ है!

 

ज़मीन ही जीत है।

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