सरकारी पैसे से कश्मीर की एक दरगाह को भव्य रूप देने में लगभग 40 करोड़ रुपये खर्च हुए। जिन नोटों से यह खर्च हुआ, उन सब पर हमारे राष्ट्रीय चिन्ह अशोक स्तंभ अंकित है। सवाल ये है कि जब पैसा और चिन्ह दोनों राष्ट्रीय हैं, तो फिर राष्ट्रीय प्रतीक का सम्मान क्यों नहीं किया गया?
राम मंदिर जैसे राष्ट्रीय आस्था स्थल में सरकार का एक रुपया भी खर्च नहीं हुआ, लेकिन लोग वहाँ अशोक स्तंभ और राष्ट्रीय प्रतीक को गर्व से देखते और सम्मान देते हैं। यही फर्क है समझदार और नासमझ में, सच्चे इंसान और शैतान में।
भारत में सभी धर्मों को मान-सम्मान दिया गया है। एक हिंदू चाहे दरगाह पर मत्था टेके या मंदिर जाए, यह उसकी आस्था है और सबको स्वीकार है। लेकिन जब बात राष्ट्रीय प्रतीक और सम्मान की हो, तो उसमें किसी तरह की राजनीति या तुच्छता नहीं होनी चाहिए।
अपने ही देश में, अपने ही प्रतीक और मान-सम्मान का अपमान करना सबसे बड़ी बेवकूफी है
बांग्लादेश में मिली अपार सफलता के बाद अमेरिकन डीप स्टेट की टूल किट नेपाल में भी लागू कर दी गई है… तथाकथित युवाओं की भीड़ संसद में घुस गई है…
अब देखना दिलचस्प होगा कि उधर की सरकार कैसे निपटती है इस से.. नेपाल की सरकार अब तक पूरी तरह से चीन के रहमो करम पर ही चल रही थी…..अब बदली परिस्थितियों में अमरीका हावी होने लगा है…..हम बस दर्शक मात्र हैं….😎
यहीं टूल किट थोड़े बहुत मोडिफिकेशन के साथ भारत के लिए भी तैयार है…लागू करने की कई कोशिशें की जा रही हैं….लेकिन भारत के लोगों की अपने नेता में अटूट श्रद्धा होने के कारण अब तक बचे हुए हैं…राहुल गांधी मलेशिया में डीप स्टेट एजेंट्स के साथ खरनाक षड्यंत्र कर रहा है…
उसे बिहार चुनावों से कोई लेना देना नहीं है….वो लॉन्ग टर्म प्लान पर काम कर रहा है जिससे एक बार सत्ता आने के बाद कभी वापिस जाए ही नहीं…
भारत की स्थिति काफी नाजुक है….लेकिन फिर भी लोगों की आस्था ने इसको बचाकर रखा है..
अब सामान्य आदमी के मन में ये सवाल आता है कि जब इतनी बड़ी बड़ी ताकतें ऐसे षडयंत्र कर रही हैं…तब इससे कैसे बचा जा सकता है…आखिर हम कर ही क्या सकते हैं…
तो हमें कुछ नहीं करना है..बस अपने नेतृत्व में मोदी जी में बीजेपी में आस्था बनाए रखना है….हर हालात में विश्वास बनाए रखना है..आरक्षण के नाम पर जातिवाद के नाम पर, धर्म के नाम पर, रोजगार के नाम पर, और भी हजारों तरीकों से … तुम्हें तोड़ने की कोशिश की जाएगी …. बहकावे में मत आ जाना ….
ये सब मुद्दे कोई मतलब के नहीं हैं… अगर अपनी आजादी को, अपनी संस्कृति को और खुद अपने को बचाए रखना चाहते हो तो मोदीजी को बिना किसी सवाल के समर्थन बनाए रखो….
वरना जो नेपाल, बांग्लादेश, म्यांमार में हो रहा है वो कभी भी भारत में भी हो सकता है….शिकारी जीभ लपलपा रहा है…बच सको तो बच लो……
उधर के लोगों से पूछ लो …जिस चीज लिए आंदोलन किया क्या वो मिली..? घंटा कुछ भी नहीं मिला बल्कि सबकी स्थिति बद से बदतर हो गई है….
इसीलिए अपना दिमाग लगाएं ..
गदारो के बहकावे में बिल्कुल नहीं आएं…
क्योंकि आज ये पूरी तरह बिक चुके है….
नेपाल (अस्थिर), फ़िलिस्तीन (संघर्षग्रस्त), पाकिस्तान (आर्थिक संकटग्रस्त), यूक्रेन (युद्धग्रस्त), रूस (प्रतिबंधित), तुर्की (तेज़ी से गिरती मुद्रा), और बांग्लादेश (गृहयुद्ध से प्रभावित) — इन सबकी स्थिति भारत से ज़्यादा ख़राब है। फिर भी ये देश Global Happiness Index में भारत से ऊपर रैंक करते हैं।
इसका मतलब यह है कि इन इंडेक्स की विश्वसनीयता और मापने का तरीका संदिग्ध है।
मौके पे चौका
चंद्र ग्रहण में विश्वास न करने वालों के लिए…
पिछले 2 दिनों में चंद्र ग्रहण का प्रभाव
1) जापान के प्रधानमंत्री का निधन
2) फ्रांस के प्रधानमंत्री का निधन
3) नेपाल के प्रधानमंत्री का निधन
4) हमास का पूरा नेतृत्व का निधन