
जब नवमांश मे मंगल और शुक्र की युति हो, तो स्त्री कन्या को जन्म देने वाली, स्वयं मृग नेत्री, अभिसारिक (प्रेमी से निश्चित स्थान पर मिलने वाली) काम से व्याकुल होकर दूसरे के घर जाने वाली होती है।
जब नवांश मे मंगल और शनि का राशि परिवर्तन योग हो या मंगल शनि पापग्रह से युक्त हो या दृष्ट हो, तो ऐसी स्त्री कन्या संतति प्रधान (अधिक पुत्रिया) होती है, ऐसी स्त्री विवाहेतर प्रेम सम्बन्ध रखती है और कोई-कोई स्त्री निज पति को त्याग देती है।
नवांश मे सप्तम भाव मे 1, 8 मंगल की राशि होने पर पति उग्र, दुराचारी; 2, 7 शुक्र की राशि होने पर पति निष्ठावान, भाग्यशाली; 3, 6 बुध की राशि होने पर पति बुद्धिमान, सुदक्ष, चतुर; 9, 12 गुरु की राशि होने पर पति गुणवान, पवित्र, साहसी; 10, 11 शनि की राशि होने पर पति मुर्ख, प्रौढ़ या वृद्ध, 4 चंद्र की राशि होने पर पति सौम्य, कामुक; 5 सूर्य की राशि होने पर पति परिश्रमी दयालु होता है।
यदि नवांश के सप्तम भाव से मगल व शुक्र का राशि परिवर्तन हो, तो महिला के विवाहेतर प्रणय सम्बन्ध होते है। यदि इस योग मे सप्तम मे चंद्र हो, तो अवैध सम्बन्ध पति की सहमति से होते है। यदि नवांश के सप्तम भाव मे शुभ ग्रह (चं, बु, गु, शु) की राशि हो, तो स्त्री भाग्यशाली, पति का प्यार पाने वाली, संततिवान होती है।
नवांश मे चंद्र शुक्र की युति हो, तो महिला सुखी, ईर्ष्यालु; चन्द्र बुध की युति हो, तो महिला, गुणी, सम्पन्न, सुखी, निपुण; शुक्र बुध की युति हो तो, महिला कलात्मक, पति प्रिय, आकर्षक; चंद्र, शुक्र, बुध की युति हो, तो महिला धनी, प्रतिभासम्पन्न, सुखी होती है।
यदि नवांश का अष्टम भाव पापयुक्त हो, तो वैधव्य हो सकता है, यदि ऐसा ही योग जन्मांग मे भी हो, तो सम्भावना प्रबल होती है, ऐसा अष्टमेश की दशा या भुक्ति मे हो सकता है। यदि अष्टमेश द्वितीय भाव मे हो और द्वितीयेश मे अष्टमेश की भुक्ति पहले आय तो महिला की मृत्यु पति से पहले यानि सधवा (सुहागन) ही होती है।
यदि नवांश लग्न मे वृष, सिंह, वृश्चिक राशि हो, तो संतान कम होती है। यदि नवांश का सप्तम भाव पापग्रह से युत या दृष्ट हो, तो वैधव्य होता है। किन्तु नवांश का सप्तम भाव शुभ अशुभ दोनो प्रकार के ग्रह से युक्त या दृष्ट हो, तो पुनर्विवाह होता है। यदि नवांश के सप्तम भाव मे पापग्रह शुभग्रह से दृष्ट या शुभक्षेत्री हो, तो पति से दूर या अलगाव या तलाक होता है।
यदि नवांश लग्नेश केंद्र 1, 4, 7, 10 मे हो, तो विवाह शीघ्र (16 से 18 वर्ष), त्रिकोण 5, 9 में हो, तो सामान्य (18 से 24 वर्ष) दुःस्थान 6, 8, 12 मे पापग्रह से युत या दृष्ट हो, तो विवाह विलम्ब (24 से 30 वर्ष) से होता है। यदि नवांश लग्न पाप ग्रह से युत या दृष्ट हो तथा जन्म कुंडली का सप्तमेश नवांश मे पापग्रहो से पीड़ित अथवा बलहीन हो, तो विवाह नहीं होता है।