इसके अलावा, अपनी और अपने परिवार की ज़िंदगी दांव पर लगाकर, प्रतिस्पर्धी के सामने खड़ा होना पड़ता है।
प्रतिस्पर्धी अगले छह महीने तक उसे हजार किलोमीटर दूर, उसकी अपनी लोकेशन से अलग रखता है और उस युवा को खत्म करने की योजना बनाता है।
कितना बड़ा झटका! कितना फ्रस्ट्रेशन!! कितना बड़ा सेटबैक!!!
लेकिन वह 36 वर्षीय युवा आत्महत्या नहीं करता, बल्कि उस कठिन परिस्थिति में भी अपना मनोबल ऊँचा रखते हुए पहले अपनी टीम को बचाता है और फिर खुद को भी प्रतिस्पर्धी के जाल से मुक्त कर लेता है।
धैर्य रखते हुए और निरंतर प्रयास करते हुए वह अपनी लोकेशन पर वापस पहुँचता है और 20 वर्षों की मेहनत से जो खो चुका था, उसे सिर्फ 1 साल में फिर से हासिल करता है। इतना ही नहीं, बल्कि अपने प्रतिस्पर्धी को भी करारा जवाब देता है।
फ्रस्ट्रेशन का समाधान आत्महत्या में नहीं, बल्कि “Quantum Leap” (अभूतपूर्व उन्नति) में है।
वह 36 वर्षीय युवा और कोई नहीं, “छत्रपति शिवाजी महाराज” हैं।
और वह भारी सेटबैक था पुरंदर की संधि, जिसमें छत्रपति शिवाजी महाराज ने 90% किले औरंगजेब को सौंप दिए थे।
यह सिर्फ चार-पाँच कदम पीछे हटना नहीं था, बल्कि पूरे 20 वर्षों की मेहनत को गंवाना था।
लेकिन अगले 8 वर्षों में उन्होंने 360 किलों पर पुनः विजय प्राप्त कर ली।
यही होता है “Quantum Leap” या “गरुड़ भरारी”।
इसलिए, निराश होकर कोई खतरनाक कदम उठाने से पहले शिवस्मरण करें, छत्रपति शिवाजी महाराज को अपना आदर्श बनाएं।
यही आज के समय और परिस्थितियों की सबसे बड़ी ज़रूरत है।