
एक दिन छोड़कर उपवास करने वालों के लिए अग्नि-संतुलन की कला,
एक दिन उपवास, एक दिन आहार।
जो व्यक्ति—चाहे वे धार्मिक साधक हों या स्वास्थ्य के प्रति सजग—इस अनुशासन को साधते हैं, वे जल्द ही समझ जाते हैं कि असली चुनौती ‘उपवास’ नहीं, बल्कि ‘पारण’ (पुनःभोजन) का संतुलन है।
यह संतुलन साधना ही हमारा सबसे सूक्ष्म विषय है।
🔹 1. उपवास का अर्थ — केवल न खाना नहीं
आयुर्वेद में उपवास का अर्थ है “अन्नविरति द्वारा अग्नि की विशुद्धि।”
इससे पाचन अग्नि को विश्राम मिलता है, शरीर के दोषों का क्षय होता है, और मन की इंद्रिय-तृप्ति नियंत्रित होती है।
लेकिन ध्यान रहे — यह विश्राम अग्नि को बुझाने के लिए नहीं, उसे सँभालने के लिए है।
इसलिए उपवास का अर्थ भूखे रहना नहीं, बल्कि संयमित, लघु, अग्नि-समर्थ आहार लेना है (जैसे फल, तक्र, सूप आदि)।
🔹 2. समस्या कहाँ से शुरू होती है
जो लोग एक दिन के अंतराल से उपवास करते हैं, उनमें दो प्रकार की भूलें आम होती हैं:
* भोजन के दिन अति-भोजन — “कल कुछ नहीं खाया था” इस सोच से अचानक अधिक और भारी भोजन कर लेना।
* उपवास के दिन अत्यधिक कठोरता — केवल जल या कुछ भी न लेकर पूरे दिन रहना।
इन दोनों से शरीर की अग्नि क्रमशः “विषम” (अनियमित) बनती है — कभी तीव्र, कभी मंद।
ऐसी अग्नि शरीर में ‘आम’ (अपक्व रस) और ‘वात’ (सूक्ष्म विकार) दोनों उत्पन्न करती है।
🔹 3. सही मार्ग — अग्नि-संरक्षण की साधना
Alternate-day fasting में लक्ष्य “व्रत” नहीं, बल्कि “संतुलित अग्नि” बनाए रखना होना चाहिए।
इसका अर्थ है —
उपवास के दिन अग्नि को मंद न पड़ने देना, और भोजन के दिन उसे अधिभार से दबाना नहीं।
🔹 4. व्यवहारिक नियम
(A) उपवास वाले दिन
* पूर्ण उपवास नहीं, “लघु-उपवास” करें।
दिनभर केवल गुनगुना पानी, हल्का फलों का रस, छाछ या पतला सूप लें।
* थोड़ी-थोड़ी मात्रा में जल लें।
दिनभर में 7–8 बार कुछ घूंट गुनगुना पानी लें, ताकि वात न बढ़े और अग्नि शांत बनी रहे।
*रात में थोड़ा हल्का पेय।
बहुत क्षीणता लगे तो चावल का पतला मांड (पेया) या मूंग का सूप ले सकते हैं।
इससे शरीर की पाचन शक्ति थकी नहीं, बल्कि व्यवस्थित रहती है।
(B) भोजन वाले दिन (पारण दिवस)
* भोजन आरंभ हल्के से करें:
दिन के पहले भोजन में सीधे रोटी, तली चीजें या मिठाई न लें।
पहले पेया (चावल का मांड) या यूष (मूंग सूप) लें, फिर 15–20 मिनट बाद थोड़ा ठोस अन्न।
* धीरे खाएँ, कम खाएँ:
भूख तीव्र लगे तब भी जल्दबाजी न करें। छोटे ग्रास, शांत मन, गुनगुना पानी।
* गुरु भोजन रात में न लें:
उपवास के अगले दिन रात का भोजन बहुत हल्का रखें—पाचन के लिए रात वह सबसे कमजोर समय होता है।
* वात शांत रखें:
यदि गैस, शूल या पेट फूले तो गर्म पानी या हल्की हर्बल चाय लें; ठंडा या बासी भोजन न करें।
🔹 5. विशेष ध्यान: स्थिति, कारण और सावधानी
यहाँ कुछ विशेष स्थितियों पर ध्यान देना आवश्यक है, जिनमें सामान्य नियमों से हटकर सावधानी बरतनी चाहिए:
* अत्यधिक गैस या पेट दर्द
* संभावित कारण: यह वात की वृद्धि (Vata aggravation) का संकेत है।
* सावधानी: ऐसी स्थिति में केवल जल से उपवास न करें। गुनगुने जल के साथ हल्के पेय (जैसे सूप) पर रहें।
* कमजोरी / चक्कर आना
* संभावित कारण: यह शरीर में क्षीणता (Depletion) को दर्शाता है।
* सावधानी: उपवास के दिन पतला छाछ या सूप अनिवार्य रूप से लें। पूर्ण लंघन (बिल्कुल कुछ न खाना) न करें।
* अम्लपित्त की प्रवृत्ति (Acidity)
* संभावित कारण: यह अग्नि की तीक्ष्णता (Sharp Pitta) के कारण हो सकता है।
* सावधानी: पेट बिल्कुल खाली न रखें। खाली पेट अग्नि को और भड़काता है। हर घंटे-दो घंटे पर थोड़ा-थोड़ा गर्म जल पीते रहें।
* मधुमेह (Diabetes)
* संभावित कारण: यह रक्त शर्करा असंतुलन से संबंधित गंभीर स्थिति है।
* सावधानी: लंबे अंतराल वाले उपवास से बचें। यदि करना ही हो, तो केवल चिकित्सकीय निगरानी में ही करें।
* वृद्ध या कमजोर व्यक्ति
* संभावित कारण: इनमें धारण क्षमता की कमी होती है।
* सावधानी: इनके लिए पूर्ण उपवास वर्जित है। फलाहार (Fruit diet) या तरलाहार (Liquid diet) ही उपयुक्त है।
🔹 6. मानसिक दृष्टिकोण — व्रत का उद्देश्य
उपवास केवल शरीर को वंचित करना नहीं है।
यह “इंद्रिय संयम + अग्नि संरक्षण” की संयुक्त साधना है।
अतः भोजन वाले दिन “भोग” नहीं, बल्कि “ध्यानपूर्वक सेवन” ही वास्तविक पारण है।
अति-भूख या अति-भोजन दोनों अग्नि को असंतुलित करते हैं — और वही रोग का द्वार खोलते हैं।
🔹 7. छोटा नियम-सूत्र (याद रखने योग्य)
🌼 “उपवास में अग्नि को बुझाओ मत,
पारण में अग्नि को जलाओ मत।” 🌼
उसे बस सम रखो — यही साधना, यही स्वास्थ्य।
🔹 8. निष्कर्ष
अंततः, एक दिन छोड़कर उपवास करने वाले साधक के लिए सबसे बड़ी साधना ‘नियमितता में संतुलन’ ही है। जब भोजन की मात्रा, समय और स्वभाव में सौम्यता सध जाती है, तब यह अनुशासन शरीर को हल्का, मन को शांत और बुद्धि को प्रखर बनाता है।
स्मरण रहे, अति-उपवास हो या अति-भोजन—ये दोनों ही उस ‘संयम’ के मर्म को खंडित कर देते हैं, जिस एक डोर को थामने के लिए यह पूरी साधना की जाती है। pcod की समस्या -लक्षण-पेटदर्द होना, अनियमित मासिक चक्र, थकान, मोटापा बढ़ना आदि। कारण -फास्ट फूड,जंक फूड, चीनी और मैदे की बनी चीजें नियमित खाने से। उपचार -कांचनार छाल, गोक्षुर, ककड़ी बीज, पुनर्नवा -सभी को बराबर मात्रा में लेकर 2-3 दिन धूप में रखने के बाद कूटकर पीस लें, किसी पात्र में सुरक्षित करें 1-1 चम्मच 2 बार गुनगुने पानी से।कांचनार गुग्गुल, गोक्षुरादि गुग्गुल 2-2 गोली 2 बार पानी से। पुनर्नवारिष्ट 4-4 चम्मच 2 बार समभाग पानी मिलाकर ले लें। 🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉
🕉 लंघनम् परम् औषधीयम्🕉