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मोढेरा सूर्य मंदिर, गुजरात

इस मंदिर में प्रवेश करने पर आपकी उदासियाँ अतीत के महान सनातनी पूर्वजों के अदम्य भक्ति से उत्पन्न वैभव के सामने घुटने टेक देती हैं । आज यह मंदिर अपने यौवन के दिनों की तरह पूर्ण स्थिति में ना होते हुए भी प्राचीन सनातन सभ्यता की समृद्धियों की चमक बिखेरने में कामयाब रहा है ।

इतिहास के कालखंड में गजनी और खिलजी सहित कई आक्रांताओं ने इसे नेस्तनाबूद करने के स्वप्न देखे लेकिन इस मंदिर की वास्तुकला और पत्थरों की मजबूती ने उनके सपनों को नेस्तनाबूद कर दिया। आक्रमणों के क्रम में आक्रमणकारियों द्वारा इस मंदिर के सम्पूर्ण विध्वंस में कामयाब होने से पहले ही राजा भीमदेव प्रथम के शक्तिशाली प्रतिकार के बाद कुछ हिस्सा बचाया जा सका ।

इस मंदिर परिसर में एक कुंड है जिसके बारे में अलबरूनी लिखता है कि ” हमारे लोगों ने जब उसे देखा तो वो चकित रह गए उनके पास इसकी प्रशंसा के लिए शब्द नहीं थे और धरती पर इसके बराबर ख़ूबसूरती वाली इमारतों का निर्माण सम्भव नहीं है” । इस कुंड के चारो ओर 108 छोटे-छोटे मंदिर हैं, इस मंदिर की संरचना ऐसी है कि, 21 मार्च और 21 सितम्बर के दिन सूर्य की प्रथम किरणें गर्भगृह के भीतर स्थित मूर्ति के ऊपर पड़ती हैं ।

इतना ही नहीं, इस मंदिर का निर्माण इस तरीके से हुआ था कि सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक सूर्य कहीं भी हो, गर्भगृह के पास स्थित दो स्तम्भ हमेशा उसके प्रकाश से के दायरे में रहते हैं, मंदिर के एक मंडप में 52 स्तम्भ हैं, जो साल के 52 सप्ताह की ओर इशारा करते हैं।

सोचिये जिस मंदिर को हमारे इतिहास की किताबों में पहले पन्ने पर उतरकर हमारे पूर्वजों की महानता का प्रतिनिधित्व करना चाहिए था पर उसे हमारे इतिहासकारों ने आखिरी पन्ने पर भी जगह देना उचित नहीं समझा ।

सनातन विरोधी सड्यंत्रो और उपेक्षाओं के बावजूद विज्ञान के साथ उन्नत वास्तुकला के मिलन के संयोग से बना हमारा यह वैभवशाली मंदिर हमारी समृध्द संस्कृति का गवाह बनकर खड़ा है ।

वर्तमान समय में यह भारतीय पुरातत्व विभाग के संरक्षण में है।

 

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