स्थिति चाहे कितनी भी अच्छी क्यों न हो, यह ज़रूरी नहीं कि घर का माहौल भी अच्छा हो। ऐसे समृद्ध घरों में अक्सर बुजुर्गों को यह भ्रम होता है कि उन्हें कोई न कोई बीमारी है, और इसी भ्रम को पालना उन्हें सुखद लगता है। बिना आवश्यकता के मेडिकल टेस्ट करवाना, बार-बार अस्पताल जाना, डॉक्टरों की फीस भरना — इसमें उन्हें एक अलग ही संतोष मिलता है। ‘आनंद’ फिल्म में एक संवाद है जिसमें डॉक्टर की भूमिका निभा रहे रमेश देव, दूसरे डॉक्टर अमिताभ से कहते हैं, “अमीरों को बीमार होने का शक होता है, और हम उसी शक का इलाज करते हैं।”
ऐसे समृद्ध परिवारों की महिलाएं अक्सर अपने अधिकार जताने में आनंद लेती हैं और इसी वजह से उनका स्वभाव ज़िद्दी और हठी होता चला जाता है। “हम करें सो कायदा” – यह सोच बाकी सभी के लिए पीड़ा बन जाती है, पर घरवाले सहते रहते हैं और वो लोग (जो पीड़ा दे रहे होते हैं) और ज़्यादा बेलगाम हो जाते हैं। इसलिए ऐसे लोगों को कोई “आईना” दिखाने वाला ज़रूरी होता है — ठीक आज की इस कहानी की तरह।
शाम के छह बजने वाले थे। ‘क्रिमसन टावर्स’ की 11वीं मंज़िल पर रहने वाली कावेरीबाई तैयारियों में लगी हुई थीं। उन्होंने अटेंडेंट से पुष्टि करवाई कि उनका बेटा प्रसन्नजीत स्टडी में ही है। उनके पति विद्याधर, जो पहले जज रह चुके थे, पत्नी की हलचल को देख रहे थे। उन्होंने वर्षों के अनुभव से जान लिया था कि उनकी पत्नी के मन में क्या चल रहा है।
वे शांत स्वभाव के थे और जानबूझकर पत्नी से बहस नहीं करते थे, बल्कि उन्हें बोलने देते थे। कावेरीबाई रोज की तरह साड़ी और बाल ठीक कर आईने में खुद को देखती हुई बाहर निकलीं। लेकिन वह आईना भी उन्हें पसंद नहीं था। उन्होंने “हं” कहकर गर्दन झटक दी — यह अंदाज़ उनकी अटेंडेंट शालू ने भी नोट किया।
कावेरीबाई ने धीरे से पूछा,
“प्रसन्न बेटा, लैब की मेल आई क्या? मेरे रिपोर्ट्स क्या कह रहे हैं? आजकल तबीयत ठीक नहीं रहती।”
प्रसन्नजीत ने उत्तर दिया,
“माँ, एक मीटिंग चल रही है, तीन मिनट में बात करता हूं, आप यहीं बैठिए।”
यह सुनकर कावेरीबाई को बुरा लगा। उन्हें लगा बेटे को उनकी सेहत की कोई परवाह नहीं। प्रसन्नजीत ने माँ का चेहरा देखकर उनकी प्रतिक्रिया पढ़ ली। वह मुस्कराया, क्योंकि बचपन से वह माँ को ऐसे ही नाटक करते देखता आया था।
कावेरीबाई धनी परिवार से थीं — मायका और ससुराल दोनों सम्पन्न। चार भाइयों की इकलौती बहन, सामान्य बुद्धि लेकिन अपार सौंदर्य, जिसने उन्हें थोड़ा घमंडी बना दिया था। वे अपनी बात मनवाने में माहिर थीं और उम्र के साथ यह स्वभाव और तीखा होता गया था।
प्रसन्नजीत ने तीन मिनट बाद रिपोर्ट्स देखे — सब सामान्य थे।
“गुड न्यूज़ माँ, सारे रिपोर्ट्स अच्छे हैं। आठ बजे डॉक्टर जयकर घर आएंगे, वो विस्तार से बताएंगे।”
रिपोर्ट्स अंग्रेजी में थे, जो उन्हें समझ नहीं आते थे। इस बार भी कुछ निकला नहीं — यह सोचकर वे थोड़ी निराश हुईं। प्रसन्नजीत ने डॉक्टर को रिपोर्ट ईमेल कर दिए।
रात लगभग पौने नौ बजे डॉक्टर जयकर रिपोर्ट देखने आए।
“आठ बजे का वादा था,” कावेरीबाई ने तल्ख़ स्वर में कहा।
“एक अर्जेंट केस आ गया था। आपको मैसेज भेजा था। वैसे भी आपकी रिपोर्ट ही देखने थे।” डॉक्टर ने शांत स्वर में कहा।
विद्याधर पंत बोले,
“शालू, डॉक्टर को चाय दो और बिस्किट भी।”
यह पहली बार था जब उन्होंने बात में हस्तक्षेप किया।
डॉक्टर जयकर ने रिपोर्ट देखी और सुझाव दिया:
“मुझे लगता है फिजियोथेरेपी शुरू करनी चाहिए। कोई चिंता की बात नहीं। मैं डॉक्टर सुमेधा को कह दूंगा, वो बहुत अच्छी हैं। या आपके किसी जान-पहचान वाले को भी कह सकते हैं।”
“फिजियोथेरेपी” शब्द सुनकर कावेरीबाई हैरान रह गईं। उन्होंने कभी सोचा ही नहीं था कि ऐसा भी करना पड़ेगा।
विद्याधर पंत बोले,
“मेरे घुटनों में भी दर्द है, क्या मैं भी कर सकता हूं?”
“बिलकुल! एक घर में दो पेशेंट्स तो डॉक्टर सुमेधा के लिए भी आसान रहेगा,” डॉक्टर ने मुस्कराकर कहा।
अगले दिन 4 बजे डॉक्टर सुमेधा आईं — 20–21 साल की हँसमुख लड़की। कावेरीबाई को बुरा लगा कि इतनी “छोटी” लड़की को उनके लिए भेजा गया है। लेकिन बाकी सभी को — विद्याधरपंत, शालू, प्रसन्नजीत को — वह बहुत पसंद आई। सुमेधा ने दोनों के लिए बेसिक एक्सरसाइज़ प्लान तैयार किया।
15 दिन बीत गए।
विद्याधर पंत अब बेहतर महसूस कर रहे थे, रात को नींद भी आने लगी थी। कावेरीबाई को कोई खास अंतर महसूस नहीं हो रहा था।
एक दिन सुमेधा ने उनसे पूछा,
“आजी, किस बात की चिंता करती हैं?”
कावेरीबाई बोलीं,
“किस बात की न करूं? कुछ भी मनमाफिक नहीं होता। टेस्ट कराया और डॉक्टर ने व्यायाम शुरू करवा दिया। मेरी हड्डियाँ कमज़ोर हैं, कुछ हुआ तो मैं बिस्तर पर पड़ जाऊंगी। किसी को मेरी परवाह नहीं है। और ये (पति) तो ऐसे कसरत कर रहे हैं जैसे कोई नौजवान हो!”
सुमेधा ने गंभीरता से सुना और बोली:
“आजी, एक बात कहूं? आपको बेवजह चिंता करने की आदत हो गई है। आपकी उम्र में ऐसा होना स्वाभाविक है। लेकिन सोचिए, हर तीन महीने टेस्ट, डॉक्टर की विज़िट — देश में कितने बुजुर्गों को यह सुविधा मिलती है? आप अपने घर में अपनों के साथ रहती हैं, रोज़ आपकी पसंद–नापसंद का ध्यान रखा जाता है। आप भारत के 2% नसीब वाले बुजुर्गों में से एक हैं, फिर भी आप हर बात की शिकायत करती हैं — यह सही है क्या?”
कावेरीबाई एकदम चौंक गईं। किसी ने आज तक उनसे इस तरह नहीं बात की थी। सुमेधा ने जैसे उन्हें आईना दिखा दिया था।
अगले दिन जब सुमेधा आईं, तो प्रसन्नजीत ने एक बड़ा सा 6 फीट ऊंचा, 3 फीट चौड़ा आईना कमरे में लगवा दिया था।
सुमेधा मुस्कराई:
“कितना सुंदर आईना है! कल मैंने सर से कहा था कि अगर आईना हो तो अच्छा रहेगा, और उससे पहले ही लग गया — देखिए कितने नसीब वाले हैं आप!”
विद्याधर पंत ने पूछा,
“पर इसका फायदा क्या?”
“जब आप व्यायाम करेंगे तो आईने में देख सकेंगे कि आप सही कर रहे हैं या नहीं — किसी की मदद की ज़रूरत ही नहीं!”
कावेरीबाई से रहा नहीं गया, उन्होंने पूछा:
“और मैं?”
सुमेधा मुस्कराई:
“जब भी आपको किसी की शिकायत करने का मन करे, पहले आईने के सामने खड़े होकर खुद से कहिए। आपको खुद समझ आएगा कि शिकायत करते वक्त हम कैसे लगते हैं। और जब आप वाकई दुखी होंगी, तब आईने के सामने खड़े होकर बोलने का ख्याल भी नहीं आएगा। जब शिकायतें बंद होंगी, तो आप खुद को अच्छा महसूस करने लगेंगी।”
विद्याधर पंत सुमेधा की समझदारी से बेहद प्रभावित हुए।
देर से ही सही, किसी ने कावेरीबाई को सचमुच “आईना” दिखाया था।