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मंगल मेष राशि से सिंह राशि तक "सूर्य " के साथ त्रिकोण आधिपत्य साझा करता है!

मंगल मेष राशि से सिंह राशि तक “सूर्य ” के साथ त्रिकोण आधिपत्य साझा करता है!

ठीक यही त्रिकोण आधिपत्य संबंध “सूर्य” सिंह राशि से धनु राशि तक “बृहस्पति” के साथ समान रूप से साझा करता है!

 जो कि मेष राशि से सिंह राशि और धनु राशि तक 1- 5 और 9 भावों/राशियों में परस्पर त्रिकोण स्थिति है{प्रथम त्रिकोण या धर्म त्रिकोण}!

बृहस्पति भी मंगल और सूर्य के साथ ऐसा ही करता है । इसलिए यही कारण है कि मंगल , सूर्य और बृहस्पति का एक प्राकृतिक एवं अभिन्न मित्र है ।

 

लेकिन मंगल की सूर्य और बृहस्पति से पूरी तरह से अलग प्रकृति , बंधुत्व और पृथक हित हैं!

 

क्योंकि इसकी काल पुरुष कुंडली में केतु के साथ वृश्चिक राशि में अभिन्न साझेदारी है!

 

साथ ही मंगल मेष राशि में पूर्ण स्वामित्व रखने के बाद भी सूर्य को मेष राशि में कारकत्व प्रदान करता है!

 

जबकि वृश्चिक राशि में केतु के साथ सह – स्वामित्व रखने के उपरांत शनि को कारकत्व {वृश्चिक में} प्रदान करता है!

सूर्य पहले घर के लिए एक मात्र कारक हैं!

 

और

 

नौवें घर के लिए बृहस्पति के साथ ही कारकत्व रखता हैं!

 

यद्धपि बृहस्पति ना तो पहले घर का कारक है!

 

और

 

ना ही मेष राशि या प्रथम भाव में मंगल के साथ इसका आधिपत्य साझा करता है!

लेकिन बृहस्पति मेष राशि या पहले घर में दिशात्मक ताकत {दिग्बल} प्राप्त करता है!

गुरु के साथ ही बुध भी पहले घर में ऐसा ही दिग्बल  प्राप्त करता है!

 

सूर्य और मंगल दोनों का बृहस्पति के साथ प्राकृतिक मित्रता संबंध है!

मेष राशि या पहले घर में बृहस्पति अपनी सभी दिव्यता को मेष राशि में मिलाता है!

मंगल के आधिपत्य और सूर्य के कारकत्व के साथ-साथ बृहस्पति स्वयं के अतिरिक्त बुध के दिग्बल को प्राप्त करने के कारण अजेय हो जाता है!

 

बृहस्पति का सूर्य के साथ मंगल की तुलना में अधिक स्नेह  एवं बंधुत्व है!{क्योंकि सूर्य के साथ इसका प्राकृतिक आत्मकारक AK और अमात्य कारक AMK संबंध हैं, जोकि मंगल के साथ नहीं हैं, और भिन्न संबंध हैं}

 

वृश्चिक राशि में, हालांकि मंगल का मेष राशि के अतिरिक्त इस राशि पर भी आधिपत्य है, लेकिन यह आधिपत्य सम्पूर्ण आधिपत्य नहीं है, क्योंकि मेष राशि में मंगल का पूर्ण स्वामित्व एवं आधिपत्य है, इसीलिए मेष राशि अनगिनत ऊर्जा का पावर हाउस है, क्योंकि यह मंगल की मूल त्रिकोण राशि या MT राशि है, एक मूल त्रिकोण राशि को किसी भी ग्रह के लिए उसका कार्यालय या कार्यस्थल माना जाता है!

 

वृश्चिक राशि में मंगल का स्वामित्व एवं आधिपत्य केतु के साथ पृथक तथा विभाजित होता है,

और इस राशि का कारकत्व “शनि” के पास होता है! नाकि सूर्य के पास !

यह बृहस्पति के लिए उसकी मूल त्रिकोण राशि धनु राशि से 12वें घर/राशि की स्थिति भी है!

वृश्चिक राशि या आठवें घर में बृहस्पति ना तो काल पुरुष की कुंडली में पहली राशि या घर की तरह ना तो परम मित्र “सूर्य” के कारकत्व को ग्रहण कर पाता है,

और ना ही पहले घर की तरह दिशात्मक बल या दिग्बल को  प्राप्त कर पाता है!

यहां बृहस्पति अपनी अधिकतम दिव्यता को खो देता है, और केतु और शनि के सह – स्वामित्व एवं कारकत्व के अधीन वृश्चिक राशि में “नियति के हथौड़े” का सामना करता है!

लाल किताब ज्योतिष में शुद्ध लौह “शनि” है, और छड़ी या डंडा “केतु” है, चूंकि यहां “बृहस्पति” शनि और केतु के साथ मिल जाता है, और “नियति के खेल “का सामना करता है!

 

लाल किताब ज्योतिष शास्त्र में बृहस्पति को “स्वर्ण” और “क़िस्मत” दोनों ही कहा गया है, जबकि शनि को लौह और केतु को डंडा कहा गया हैं, जब तपे हुए लौह निर्मित हथौड़ीनुमा भाग में लकड़ी या लौह निर्मित डंडा डाल कर एक अंतिम आकार दिया जाता हैं, तब मंगल शनि केतु की संयुक्त शक्ति से बना मज़बूत हथौड़ा निर्मित होता हैं, जिसे “विधाता की लाठी” और “काल {शनि} का हथौड़ा” भी कहा जाता हैं!

 

तो जब ये मंगल शनि केतु की संयुक्त ऊर्जा से निर्मित काल का हथौड़ा बृहस्पति रूपी स्वर्ण और क़िस्मत पर पड़ता हैं, तो इसके लौह की चोट से स्वर्ण तो पीतल सदृश हो जाता हैं,

और क़िस्मत { बृहस्पति} फूट और पिट जाती है!

 

वृश्चिक राशि में बृहस्पति हो या कोई भी अन्य ग्रह ही क्यों नहीं हो, सबको नियति के इस खेल में काल के हथौड़े का सामना अनिवार्य रूप से करना ही पड़ता हैं!

 

सूर्य गुरु शुक्र केतु शनि के अतिरिक्त अन्य ग्रह आठवें भाव या वृश्चिक राशि में बहुत अच्छा फ़ल नहीं दे सकते है!

उपर्युक्त वर्णित ग्रह भी वृश्चिक राशि या आठवें भाव की पीड़ा के जातक द्वारा कर्मफल के भोगोपरांत ही अपना अपना पृथक फ़ल देते है।

 

यही एकमात्र कारण है!

 

कि वृश्चिक राशि में बृहस्पति मंगल ग्रह का मित्र होने के बावजूद भी मेष राशि की तुलना में लौकिक स्तर पर अच्छा फ़ल नहीं प्रदान कर पाता है…

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