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सर्वविदित है कि मराठा भगवा एक समय आधे से अधिक भारत पर लहरा रहा था

अठारहवीं सदी का यह आरंभिक काल…!..छत्रपति शाहू महाराज और उनके सर्वश्रेष्ठ सेनानी श्रीमंत बाजीराव पेशवा की…!

 

और इस अवधि के दौरान मराठों ने भारत के लगभग तीन चौथाई हिस्से पर शासन किया…इसी दौरान महान सरदार घरानी का उदय हुआ…बड़ौदा के गायकवाड़, धार के पवार, इंदौर के होलकर, ग्वालियर के शिंदे, झांशी के नेवालकर…और कई अन्य…!

छत्रपति के योद्धा, धनी बाजीराव पेशवा को घोड़ों का बहुत शौक था…!.. बाजीराव का अस्तबल बेहतरीन घोड़ों से भरा हुआ था। बाजीराव दिव्य रूप से जन्मे कैवलरी मैन थे और भारतीय उपमहाद्वीप के इतिहास में अब तक के सर्वश्रेष्ठ कैवलरी जनरल थे…लॉर्ड मोंटगोमरीबाजीराव की जनता में इतनी सराहना थी…! बाजीराव पेशवा ने बड़े परिश्रम से श्रेष्ठ वीर पुरुषों को एकत्रित किया था।

क्या हुआ एक बार.. बाजीराव पेशवा छत्रपति शाहू महाराज से मिलने सातार गये…!.. प्रथा के अनुसार पेशवाओं ने अपने जूते बाहर रखे… और पेशवा नंगे पैर दरबार में छत्रपति के मुजरे में गए…!दरबार में और भी सरदार आये थे, उन सभी ने अपने जूते दरबार के बाहर रखे, तो बड़ी आसानी से बाजीराव पेशवा ने सामने खड़े एक छोटे लड़के से अपने जूतों पर नज़र रखने को कहा…!..छत्रपति से मंत्रणा थोड़ी लम्बी चली…!..अमीर पेशवा दरबार ख़त्म होने के बाद बाहर आये….और देखा तो, “वह” छोटा लड़का थका हुआ था और सो रहा था….!..लेकिन जोड़ी को सीने से कसकर चिपकाए हुए…!बाजीराव साहब को आश्चर्य हुआ… कहने को तो काम सरल और सहज था, लेकिन इस लड़के में इतना संयम….?… बाजीराव सोच में पड़ गये, उनकी जिज्ञासा बढ़ गयी…!…आखिर आप हैं कौन..?..आपका क्या नाम है…?..वो लड़का सवालों की झड़ी लेकर नींद से जाग उठा…!..ऊं…ऊं..मैं राणोजी हूं…कन्हरखेड़ होगा…प्रांत सतारा…!..लड़के ने भी अनजाने में एक सांस में अनपूछी जानकारी बता दीप्रधान सेनापति बाजीराव पेशवा, जो सीधे-सादे, साधारण लोगों, रैयतों के गुणों को ध्यान से देखते थे, उन्होंने एक पल में इस लड़के के गुणों को देखा और तुरंत उसे अपनी सेना में भर्ती कर लिया…!.. (उस समय युवाओं को लेने का रिवाज था) सेना में अनुभव के लिए बच्चे…!)..ये हैं भविष्य के सरदार राणोजी शिंदे…!..शक्तिशाली शिंदे परिवार की जानी मानी संतान….!दत्ताजी शिंदे महान नायक राणोजी शिंदे के पुत्र थे, जिन्होंने “बचेंगे तो और भी रहेंगे” के शाश्वत और समान रूप से शानदार नारे के साथ इतिहास रचा। जयप्पा शिंदे, ज्योतिबा शिंदे… जानकोजी शिंदे, मनाजी शिंदे, दौलतराव शिंदे और अनगिनत। …और वो है ग्वालियर का शिंदे परिवार…!.. मराठमोला शिंदे का नाम मध्य भारत के उच्चारण के अनुसार “सिंधिया” रखा गया…!इस दौरान मराठा सेना हमेशा एक मिशन पर रहती थी..!..मुट्ठी में तलवार और घोड़े पर मंदा थी जीवनशैली, यही था वरांगुला….!.. खाना खाने का भी समय नहीं था…!.. घोड़े पर बैठ कर भुट्टे, प्याज, खीरे खुरचते थे…भूख मिटाओ… और घोड़ों पर धावा बोलकर सुशेगढ़ दुश्मन तक पहुंचना बाजीराव की युद्ध कला थी…!..मंजिल, फर्श, रहना, आराम सब बर्बादएक बार बाजीराव पेशवा एक मिशन पर थे…फ़सल में घुसे घुड़सवार…!.. हमेशा की तरह, घोड़े से उतरे बिना, सैनिकों ने अपने दाहिने हाथ से अनाज खोदा…!..लेकिन इस बार बड़ा झटका लगा और बड़े-बड़े पत्थर निकलने लगे…!..गोफन से एक गोला और एक बड़ी बूंद उड़कर सीधे बाजीराव की पीठ पर लगी…!सेना के जवान, घुड़सवार गुस्से में हैं…गुस्से में ढूंढने लगे..!..और मिल गया…!..गुलेल से अचूक पत्थर फेंकने वाला तरणबंद पोरगा गांव…!स्वामीभक्त शिलेदारों ने “उस” लड़के को डांटा और सीधे बाजीराव पेशवा के सामने खड़ा कर दिया…! पोरगा सुलग रहा था लेकिन उसके चेहरे पर चमक थी.. उसकी आँखों में चमक थी, उसके माथे पर भंडारा था, उसकी आँखों में एक साहसी अंगारा था…!…गुना के प्रशंसक बाजीराव ने की सराहना…अमीर अपने घोड़े से उतरता है… जिज्ञासा पूछती है…! ..बिना पलक झपकाए युवा लड़के ने तीखा जवाब दिया…”मल्हार मुझे बुलाते हैं…यह खेत का बीज मेरा है…यह भेड़ का बीज मेरा है…तुम बाजीराव तो बनोगे लेकिन पाजीराव नहीं…हमें अपना खेत जोतना नहीं है”…!

…बाजीराव पेशवा उस बालक के प्रभाव, निपुणता से बहुत प्रभावित हुए…!…लेकिन यहीं नहीं रुके, उन्होंने तुरंत ही इस विलक्षण चरवाहे को अपनी सेना में भर्ती कर लिया…!यही बालक आगे चलकर मराठा राजवंश का एक बहुत बड़ा स्तम्भ बना.. “मल्हारराव होलकर”…!.. मराठा राजवंश का सुप्रसिद्ध होलकर परिवार…!..इंदौर के सरदार होल्कर…! …इसी दौर में मराठों की समशेरी की डंका अखंड हिंदुस्तान में गूंज रही थी…मराठों के अश्वमेध पर हाथ रखकर रोकने का साहस.. अहद लाहौर, तहद तंजावुर… माया के लाल का कोई नहीं बचा…!इस समय उत्तर भारत में मराठी सेना का शोर मच रहा था..!..दिन-ब-दिन शौर्य का परचम लहरा रहा था…!…जरीपटका और भगवा का था दबदबा…!….मराठों की तेज़ तलवार का आतंक हर जगह था…!…लेकिन युद्ध बहुत कठिन है..!..स्वतंत्रता के इस महान युद्ध में बलिदान हो रहे थे…!.. दुश्मन को नहलाते हुए शव को परेड में रख रहे थे मावले…!.. सूर्यास्त के बाद जलती दिखी चिता…!एक बार मराठा सेना मालवा में अभियान पर थी…!..दिन की खुदाई ख़त्म हो चुकी थी.. अंधेरा होने के बाद युद्ध में सेवा देने वाले वीरों की चिताएँ जल रही थीं…! … आधी रात को प्रधान सेनापति श्रीमंत बाजीराव पेशवा अपने प्रिय घोड़े पर सवार होकर सेना के चारों ओर घूम रहे थे…!जलती हुई चिता के सामने देखने पर एक तेजस्वी ब्राह्मण, सावले वस्त्र पहने, फौलादी शरीर और उतने ही मजबूत दिल वाला, अपने दिवंगत शिलादारों की गतिविधियों को पूरा करने के बाद उसी चिता की आग पर खाना पकाते हुए देखा गया… .!..अमीर पेशवा हैरान रह गये…!.. बाजीराव घोड़े से उतरे और इस अबूझ प्रकार का प्रश्न किया..!इस प्रकार अपनी ठुड्डी पर गांठ कसते हुए तेजस्वी व्यक्ति ने उत्तर दिया…”सर, युद्ध में मृत्यु स्वर्ग है…!..लेकिन कल की लड़ाई के लिए, आज मरने वाले वीरों का आरोहण किसी काम का नहीं है। ..!..यदि आप कल जीतना चाहते हैं, तो आपको सबसे पहले उन सैनिकों के लिए भोजन और पानी की व्यवस्था करनी चाहिए जो जीवित हैं। जरूरत है…उसका कोई इलाज नहीं है…!”..असल में मैं दोनों काम एक ही आग पर कर रहा हूं…मेरा नाम गोविंद है… गोविंद खरे…!.. मैं कोंकण से आता हूं..”गुणग्रह बाजीराव पेशवा ने तुरंत इस असाधारण व्यक्ति को उठाया…!..उसे सीधे युद्धक दल में शामिल कर लिया…!..गोविंदा के हाथ से तलवार की जगह मुट्ठी छूट गई…!…मराठा सेना में इस गोविंद खारी ने अदम्य साहस की तलवार लहराई…!.. अंततः बाजीराव पेशवा ने इस “गोविंद” को बुन्देलखंड के कालपी का प्रशासन सौंपा…!.. वर्तमान मध्य प्रदेश में “सागर” शहर का निर्माण इस शक्तिशाली नायक द्वारा किया गया था।और ये हैं पानीपत के मशहूर समशेर बहादुर “गोविंदपंत बुंदेले”… कितने सरल और आम लोग हैं…!.. लेकिन दूरदर्शी नेतृत्व से यह सिद्ध होता है कि “नर का नारायण” बन सकते हैं…!इन और कई अन्य ज्ञात और कई अज्ञात महापुरुषों, मावलाओं ने आज़ादी की अलख जगाई…!.. स्वराज्य की नींव खड़ी की…!..मराठा इतिहास के इन सभी महान लोगों के लिए तीन गुना सम्मान का मुजरा। 🙏🏼जय शिवराय

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