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मामा

शुक्रवार…. मैं मस्जिद के बाहर मरीजों की जांच करने जा रहा था, तभी एक दादी आईं… गोलियाँ लीं और कहा… एक अनुरोध , मेरी बेटी फुटपाथ के दूसरी तरफ रहती है, उसे कुचल दिया गया था, उसके कंधे का अधिकांश भाग टूटा हुआ है, क्या आप उसे देखते हैं?

 

चलो… उसके साथ चलते हुए यह कहते हुए… रास्ते में वह कह रही थी |

 

मेरी सगाई दिनकर नाम के एक आदमी से हुई… जिससे उनके 3 बेटे हुए अक्षय, सनी सारिका… दिनकर किसी कारण से चले गए… फिर गफूर खान नाम के एक आदमी ने उनसे शादी की… जिनसे उनके 3 बच्चे भी हैं ….सलीम, सुलेमान और आयशा…

रास्ते में उसकी बातों से मैंने बहुत कुछ सीखा….मुझे ये सब सुनकर बहुत मजा आ रहा था….एक ही माँ के छह बच्चे…पहले तीन अलग-अलग धर्म का पालन करते हैं…दूसरे तीन अलग-अलग धर्म का पालन करते हैं.. ..फिर भी वे एक-दूसरे के भाई-बहन हैं, ऐसे रहते हैं….एक-दूसरे के बीच कोई ईर्ष्या नहीं है….कोई दूसरे सौतेले पिता की भावना नहीं है….कुछ बच्चे मेघा को माँ कहते हैं.. .दूसरे बच्चे अम्मी कह कर बुलाते हैं….!

 

यदि यही बात समाज में भी होती तो कितना अच्छा होता…? फिर भी….!

 

मैं फुटपाथ पर बैठे परिवार के पास पहुंचा…

 

मेघा.. पैंतालीस साल की ये औरत.. बाघ-मुरली बनकर नाचती थी. पूरी दुनिया छह बच्चों के साथ फुटपाथ पर व्यवस्थित थी… फटी और मुड़ी हुई चादरें और चादरें… बर्तन और तवे अजीब तरह से फैले हुए थे… इधर-उधर बिखरे हुए कपड़े… गिरा हुआ पानी और किसी का दिया हुआ खाना… वह इसी में बैठी थी.. .आज इस खुले परिवार में प्रवेश किया….सीधे बैठ गई…वो भीग गई…मेरी सीट साफ करने की कोशिश करने लगी…

 

गंदगी में मत बैठो वो डॉक्टर…कहते हुए दादी ने मेरे बैठने के लिए एक फटा हुआ कपड़ा बिछा दिया…

 

अदाबी ने जिस तरह से इसे बिछाया, मुझे ऐसा लगा मानो वह मेरे लिए एक कीमती रेशमी लबादा फेंक रही हो…

 

 मेघा और उसकी माँ ने मेरे साथ जिस स्नेह से व्यवहार किया उसे देखकर मुझे ऐसा लगा जैसे मैं किसी राजमहल में मेहमान हूँ…

 

क्या ये सच में था…? जिस घर में अक्षय, सनी, सारिका, सलीम, सुलेमान और आयशा…. उनकी मां, अम्मी, दादी और आजी रिश्ते निभा रही हैं…. क्या वो खुला घर किसी महल से बेहतर नहीं है?

 

जाँच करने और दवा देने के बाद, मैंने हमेशा की तरह मेघा और आजी के साथ बातचीत शुरू कर दी… दोनों की कर्म कहानियाँ अलग-अलग हैं… मैं उनके जीवन, व्यवहार और अनुभवों को सुनते-सुनते उनसे जुड़ गया…

 

कोई भी ‘नहीं’ कहने में झिझक रहा था, बच्ची आयशा बहुत छोटी थी… अपनी माँ की गोद में… लेकिन उसे छोड़कर, बाकी पाँच बच्चे वहाँ अजीब तरह से फैले हुए थे… लुढ़क रहे थे… कुछ की आँखें आधी खुली थीं… .कोई उठने के लिए संघर्ष कर रहा है…कोई उठ रहा है और गिर रहा है….

 

मुझे नहीं पता…. मैंने कहा मेघा क्या है?

 

 

बहू बोली लड़के नशे में हैं… मैंने कहा शराब?

 

उसने कहा नहीं, व्हाइटनर और विक्सन का नशा…. मुझे इन तीनों से भरा एक डिब्बा दिखाया, यह एक चिपकने वाला पदार्थ था जिसमें फेवीकल जैसी बहुत तेज गंध थी…, चमड़ा चिपकाने के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला कांच…. इसे लगाते हुए कपड़े और इसकी खुशबू बहुत ही मादक है….

 

मैं उत्सुकतावश एक-एक करके तस्वीरें लेने लगा….मैं उन लड़कों की तस्वीरें लेने लगा जो अजीब तरह से लेटे हुए थे…और तभी उनमें से एक लड़का उठा और बहुत गुस्से वाले मुँह से मेरी ओर आया।

 

उसने अपनी दादी की ओर देखते हुए कहा….ऐ दादी…ये किसको तू घर पे लायेली है…? ये हमारी पुलिस की खबरी है.

 

मुझे एहसास हुआ कि यह प्रामाणिक मुंबइया हिंदी है…

 

वह मुझसे बहुत नाराज था…. करीब 15-16 साल का एक दुबला-पतला लड़का…. काली बनियान, घुटनों तक चढ़ी जींस, कानों पर राजेश खन्ना स्टाइल के बाल, आंखों में सुरमा…। और उन आँखों से मेरे प्रति एक भयानक गुस्सा बह रहा है।

 

मेरी ओर बढ़ते हुए उसने कहा… ऐ xxx k…. इधर से अब्बी के अब्बी काटनेका…. तेरी मां का xxxxx तू इधर कायकु अया…. मालूम है मरकु…. डॉक्टर बनके नाटक कर रयेला है ….xxxxx

 

मैं अपनी मां को डांटते हुए सुनकर सुन्न हो गया था… एक 15 साल का लड़का मुझे डांट रहा था, मेरे ऊपर दौड़ रहा था… मैं सोचने लगा…

 

उसने मुझे गलत समझा था…

 

मेघा और वो आजी उसे बचा रही थीं…. विनम्रतापूर्वक अपना घूंघट फैलाकर माफ़ी मांग रही थीं…. वहीं बैठी थी…. पागलों की तरह अपना सिर नहीं हिला पा रही थी….

 

मुझे बैठा देख कर वह अब भी असमंजस में था… बोला…अब्बिबे बैठेलाच है कुत्ते? आरे हद बोलेंगे तो कुत्ता भागता है…. तू xxx की उलाद …मार खाके ही जाएगा क्या….?

 

क्या मेरे बेटे की उम्र का मुझे सड़क पर इतना जलील करे? मैं वास्तव में शून्य था…

 

लेकिन सच कहूं तो मुझे उस पर गुस्सा नहीं आया, उसका अपमान करना मुझे बुरा नहीं लगा, मुझे डर नहीं लगा, मुझे अजीब नहीं लगा…

क्योंकि, अपनी जगह पर, वह सही थे… ये वो मंडलियां हैं जिन्हें प्यार का दिखावा करके धोखा दिया गया है…. मैं उनमें से एक क्यों न बनूं? उसका ऐसा सोचना स्वाभाविक है.

 

अपनी माँ, “सौतेली बहन” और दादी को ऐसे लोगों से बचाते हुए, उन्होंने मुझे एक चूके हुए लेकिन “सक्षम” बेटे, पोते और भाई के रूप में महसूस किया…! दरअसल, उसे उस पर गर्व था…. वह कमाने वाला बनकर इस परिवार की जिम्मेदारी अपने तरीके से उठा रहा था….

 

मैंने ऐसे बच्चे देखे हैं जो करोड़पति होते हैं और अपने माता-पिता को घर से निकाल देते हैं…. लेकिन उससे भी अधिक, यह सलीम जिसके पास कुछ भी नहीं है लेकिन वह अपने परिवार की देखभाल अपने तरीके से करता है, मुझे बहुत अच्छा लगा…. पसंद आया.. ..

 

मैं अब उठ गया… उसका मेरे प्रति अविश्वास बिल्कुल भी कम नहीं हुआ था…. उसने सोचा होगा कि मैं अब उसके ऊपर से निकल जाऊंगा….

 

उन्होंने अपनी ही छाती पर हाथ मारते हुए कहा….आ xxxx आ….मरेगा मरकु? xxxx मैं यहां तुम्हारे हाथ काट दूंगा… आपके नेटवर्क पर आने वाले लोग हम xxxxxx नहीं हैं

 

उस स्थिति में भी उनमें वह बेटा और भाई देखकर मेरी आंखें डबडबा गईं…. मैं उनके पास चला गया….

 

मागुन मेघा ने कहा.

 

मैंने मन में कहा कि मैं नशे में हूँ…. उसका अलग है और मेरा अलग है…

 

मेरे लड़के की उम्र का एक लड़का प्रतिरोध के लिए सतर्क खड़ा था… मैं पास आया, हाथ जोड़े, कहा, बेटा सलीम.. तेरी माँ मुझे भैया बोलती है…. तेरी दादी मुझे बेटा बोलती है…. मैं तेरा मामा हो गया…. अब तू मामा को भी गाली देगा? हाथ कटेगा बेटा?

 

मैं देख रहा हूं, तुम अपने तरीके से अपनी सारिका और अपनी दादी की चिंता करते हो…. मैं एक सच्चा डॉक्टर हूं…. मैं सड़कों पर भी ऐसे रिश्ते बनाता हूं… और अपने तरीके से काम भी करता हूं।…

 

मैं और बोलता रहा, वो सुनता रहा…

 

मुझे लगा कि वह मेरी बातों से पिघल गया…

 

मैंने उसे अपने पास रखा….उसे बताया कि मैं क्या कर रहा था….उसने पूरी तरह से मेरे सामने आत्मसमर्पण कर दिया….एक इंसान के रूप में….बिना हथियारों के मैंने लड़ाई जीत ली थी….

फिर हम बैठे और चाय और क्रीम रोल का ऑर्डर दिया…

 

चाय मांगते हुए उन्होंने टपरीवाले से कहा….भाई, क्रीमवाला को क्रीमरोल और देना….

 

आपने क्रीम रोल्स तो हजारों बार खाए होंगे, लेकिन उस वक्त इसका रंग सिर्फ चाय और क्रीम रोल्स का था….

 

मैंने कहा- सलीम, क्या कर रहे हो? तुम मुझसे इतने नाराज़ क्यों हो?

 

 “माई बम्बई में रहता है….अक्खी बम्बई में मेरे जितना उमर में छोटा ट्रेनर नहीं…पैसा मुलता है…कम होता है तो…। कभी दादर… यहां भीड़ ज्यादा है…. फिर थोड़ी सी गलत संगत लग गई और ये व्हाइटनर का नशा लग गया….

 

हम रोड पर रहते हैं…. मेरी मनको देख लोगे खाते हैं कुछ भी पूछते हैं…. ये मेरी भैन है सारिका…. मुझसे पूछते हैं… मेरे को लगा तू भी उन्हीं में से है। ….

 

मैं सब कुछ सुनकर हैरान रह गया….अगर मेरा अनुमान सही था कि वह मुझसे नाराज़ क्यों था….

 

कोई मुझसे कह रहा है कि मैं जेबकतरा हूं….मुझे यकीन नहीं हो रहा….

 

उन्होंने आगे कहा, मैं पॉकेट मारता हूँ और आदमी को पता भी नहीं चलता पॉकेट मारा हैं

मैंने मज़ाक करते हुए कहा….चलो मुझे मेरा बटुआ दिखाओ….देखो मैं समझ पाता हूँ या नहीं….

 

हंसते हुए बोले….मां बाप जानम मैं टेरकू पता नहीं चलेगा….कब तेरा पैकेट मैंने मारा….लेकिन नहीं मारूंगा…. पैंट फटेगी तेरी…. और हमारा असली है…. मारा हुआ पाकिट हम कभी नहीं करते.

 

वास्तव में मेरे बटुए में ज्यादा से ज्यादा वड़ा पाव या मिसल खाने लायक पैसे हैं… बाकी बटुए में कागज के टुकड़े हैं… कौन क्या काम करेगा…

 

मैंने ये बात उसे बताई और मुस्कुराते हुए कहा…. सलीम तेरा मामा है तो डॉक्टर पर गरीब है…. ये चिट्ठी छोड़के कुछ नहीं मिलेगा मेरे पाकिटमेन….

 

बहुत सोचने के बाद कहा.

 

मैं इस लड़के से क्या कह सकता हूँ?

मैं इस लड़के में बहुत कुछ देख रहा था.

 

एक सच्चा बेटा और भाई जो मघाशी परिवार से प्यार करता था….

 

मैंने एक ऐसे व्यक्ति को देखा जो अपने काम के प्रति वफादार था और नियमों का पालन करता था…

 

 

मैंने इस आदमी को देखा जो सोचता है कि जब वह डॉक्टर के बटुए पर हाथ मारेगा, तो दूसरों को नुकसान होगा…

 

 

बारिश होती है….यह पानी कभी गंगा पात्र में गिरता है…तो कभी नाले में….गंगा में गिरने वाला पानी तीर्थ बन जाता है….लेकिन नाले में गिरने वाले पानी का क्या… .?

 

सीवर में पानी गिरने से क्या खराबी है?

 

पानी वही है… फूल वही हैं…. लेकिन हमें कहाँ जाना है यह उनके हाथ में नहीं है…. और बच्चों को यह सलीम पसंद है….

 

भाग्य का आनंद? समाज का अवसाद? या शासकों की विफलता?

 

सलीम जैसे लाखों बच्चे हैं, जिन्हें अगर बदल दिया जाए तो भारत सचमुच समृद्ध हो जाएगा…

 

परिवार से प्यार है….जाति और धर्म में विश्वास नहीं है, काम में विश्वास है, पीड़ितों से प्यार है….क्या हमें ऐसा भारतीय चाहिए?

 

मैं मुद्दे पर आया, बोला क्या तुम काम करोगे?

 

उन्होंने कहा…करेगा ना…पैन ये मेरी नशे की लत छुड़ा दी…

 

यह कैसा आदमी है? अन्य लोगों के विचार भी यहाँ….!

 

लत से छुटकारा पाने के लिए दवाएँ तो हैं लेकिन लत से छुटकारा पाने के लिए यदि आदी व्यक्ति का कोई प्रियजन उसे ठीक से समझा दे तो वह लत टूट जाती है…सिर्फ दवा से नहीं….त्रिकाला रोग में भी यही बात लागू होती है…

 

सलीम के घर में बहुत सारे प्यार करने वाले लोग हैं लेकिन वे उसे नशा छोड़ने के बारे में कितना बताएंगे, इसमें संदेह है.

 

मैंने अपना मन बना लिया है… मैंने कर लिया है, अब मामा इसे बीच में नहीं छोड़ना चाहता….

 

एक माँ के रूप में, मैं अब इससे निपटूंगी, और अपने तरीके से, मैं इस लत से छुटकारा पाऊंगी….मैं इसे काम में लाऊंगी….

 

मुझे यकीन है कि वह मेरे अंदर के डॉक्टर से ज्यादा मेरे अंदर की माँ का सम्मान करेंगे….!

 

काफी समय हो गया, मैं जाने के लिए उठा

 

पास आया….उसके हाथ में एक डिब्बा रख दिया….बोला….माँ….ये नशेका डब्बा है लेके जाव….फेक दो…

 

मैं अविश्वास से देखता रहा…. मेघा की आँखों में पानी भर आया….

 

जाते समय सलीम उनके पैरों में झुककर बोला, मामा….नशे मे गली दे दी मैंने माफ कर देना….आज जुम्मे को तू मिला….शायद अल्लाह ने तेरकु भजा….आज की नमाज सच में कबूल हो गई ….बस एक बार बोलो….सॉरी सलीम…!

 

मैंने झुके हुए सलीम को अपने सीने से लगा लिया…उसके कान में धीरे से कहा….सॉरी बेटा…

 

सत्य? कहते हुए उसने मुझे कस कर गले लगा लिया….और अपना हाथ मेरी पीठ पर फिराता रहा…

 

मेरी पूरी शर्ट उसके आंसुओं से भीग गई थी… और मेघा दूर से अपने कपड़े से अपनी आंखें पोंछ रही थी…

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