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महाराजा हरिश्चंद्र

एक राजा जो डोम का नौकर बन गया, एक राजा जिसके पत्नी और बच्चे काशी में बिक गए, एक राजा जिसने चंडाल के अन्न पर अपना पालन किया, एक राजा जिसने अपने पुत्र के अंतिम संस्कार के लिए भी अपनी पत्नी से कर मांगा।

 

जानते हैं वह राजा कहां का था? वह अयोध्या का राजा था। अयोध्या का राजा जिसका वंश स्वयं सूर्य का था, इतना प्रतापी राजा कि समस्त संसार उसके बाहुबल से थरथराता था, उसने मात्र स्वप्न में दिए गए वचन के पालन के लिए अगली सुबह राज पाट त्याग दिया और मरघट पर जाकर चाकरी करने लगा। सत्य के लिए परिवार त्याग दिया, स्त्री पुत्र सब त्याग दिए।

आप कल्पना करिए कि कोई इतना सत्यवादी हो सकता है कि अपना समस्त धन वैभव को तृण मात्र समझ कर दिए गए वचन का निर्वाह करने हेतु संसार के सारे कष्ट स्वीकार कर ले।

 

सूर्य अपना ताप छोड़ सकता है, चंद्रमा टूट सकता है, धरती अपनी गति बदल  सकती है पर हरिश्चंद्र अपने  सत्य से नही डिग सकते। सूर्यवंश के इसी  सिद्धांत भगवान राम ने आगे बढ़ाया।

आज जब राममंदिर बन रहा है तो हमारा धर्म बनता है कि सत्य को धर्म बनाकर उसे उसी तरह धारण करें जैसे महाराजा हरिश्चंद्र ने धारण किया, जैसे भगवान राम ने धारण किया, तभी मंदिर का निर्माण सुफल होगा।

 

सभी प्राणियों के प्रति मन में सद्भावना हो, इस अवसर पर यही कामना है।

 

सत्य ही धर्म है, धर्म ही सत्य है।

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