
ज्योतिष में फलादेश को जानने के लिए एक बड़ा सरल और सत्य आंकड़ा ये है की जन्म कुण्डली के अंदर बारह भावो के अधिपति सात ग्रहो का ये प्राकृतिक स्वाभाव होता है की किसी भी स्थान का स्वामी कोई भी ग्रह जिस किसी भी स्थान पर बैठेगा, तो उस स्थान में अपने स्थान की शक्ति के योग से सफलता या असफलता प्राप्त करेगा अर्थात भाग्य का स्वामी ग्रह यदि भाग्य स्थान पर ही बैठा है तो भाग्य स्वयं कुदरती रूप से जाग्रत रहेगाओर भाग्य का स्वामी कोई ग्रह यदि राज्य स्थान पर बैठा है तो पिता ,राज्य व्यापार आदि के योग से भाग्य की जागृति होगी और भाग्य का स्वामी यदि लाभ स्थान पर बैठा है तो आमदनी के उत्तम मार्ग से भाग्य की जागृति होगी। और यदि भाग्य का स्वामी यदि बारहवे भाव में बैठा है तो पहले भाग्य स्थान में कमजोरी रहेगी फिर बाहरी स्थानों के सम्बन्ध से भाग्य की जागृति होगी।
यदि भाग्य का स्वामी प्रथम यानि तन भाव में बैठा है तो देह के योग से भाग्य की उन्नति होगी।और भाग्य का स्वामी यदि धन भाव में बैठा है तो भाग्य की शक्ति व् उन्नति धन जान के योग से बनेगी।
यदि भाग्य का स्वामी पराक्रम स्थान में बैठा है तो स्वयं के पराक्रम और भाई के सहयोग से भाग्य की उन्नति होगी।
भाग्य का स्वामी यदि चौथे स्थान पर बैठा है माता और भूमि के योग से भाग्योन्नति होगी।
यदि भाग्य का स्वामी पंचम स्थान में बैठा है, तो विद्या और संतान के योग से भाग्य की जागृति होगी।
भाग्येश यदि छठे स्थान पर बैठा है तो परतंत्रता या परेशानियो से भाग्य की जागृति होगी।
भाग्येश यदि सातवें स्थान पर बैठा है तो दैनिक रोजगार और स्त्री की सहयोग से भाग्य की जागृति होगी।
भाग्य का स्वामी यदि आठवे मृत्यु स्थान पर बैठा है तो काफी मुसीबतो और पुरातत्त्व के प्रभाव से भाग्योन्नति होगी।
इसी प्रकार किसी भी स्थान का स्वामी कोई भी ग्रह जिस स्थान पर भी बैठा होगा उसी स्थान के द्वारा उसी स्थान के द्वारा अपने स्थान की शक्ति प्राप्त करता है।
इसलिए उपरोक्त बारह घरो के स्वामी समस्त ग्रहो का वर्णन हर एक स्थान और हर एक राशियों में भिन्न-भिन्न रूप से फलादेश में किया जाता है
इसके अतिरिक्त जन्म कुंडली के अंदर लग्न से छठे ,आठवे ,बारहवे तीनो स्थानों का सम्बन्ध या इनके स्थान पतियो का सम्बन्ध हर जगह कष्टप्रद सिद्ध होता है। एवं अच्छे स्थानों का एवं स्थान पतियों का सम्बन्ध हमेशा उन्नति व् सुख दायक सिद्ध होता है।