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लेफ्टिनेंट जनरल सगत सिंह राठौड़, पुर्तगाल के मोस्ट वांटेड

सगत सिंह राठौड़ शायद भारतीय सेना के एकमात्र ऐसे अधिकारी थे जिनके पोस्टर पुर्तगाल की सड़कों में लगाए गए थे कि जो भी इनको पकड़कर लाएगा उसे इनाम दिया जाएगा, सगत सिंह राठौड़ को एक-एक नहीं तीन-तीन परमवीर चक्र मिलने चाहिए थे क्योंकि इन्होंने ना सिर्फ गोवा की विजय में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई बल्कि 1967 के चीन युद्ध में जीत के नायक भी थे और ढाका में 30,000 की पाकिस्तान आर्मी के छक्के छुड़ाने वाले भी सगत सिंह ही थे जबकि उनके पास उस वक्त सिर्फ 3000 सैनिक थे ।

1961 तक पुर्तगाल का गोवा पर कब्जा था और उसे उम्मीद थी कि भारतीय सेना के पणजी पहुंचने से पहले ही वो अपनी नेवी को उतार देगा लेकिन पूरी दुनिया उसे वक्त चौंक गई , खुद भारतीय सेना का नेतृत्व भी चौंक गया, भारत सरकार भी चौंक गई, जब तय किए गए लक्ष्य से आधे समय में ही सगत सिंह पणजी पहुंच गए और पुर्तगाल ने हिम्मत छोड़ दी.

सगत सिंह को परमवीर चक्र सिर्फ इसलिए नहीं दिया गया क्योंकि उन्होंने अपने शीर्ष अधिकारियों के आदेशों के भी ऊपर जाकर समय से पहले शत्रु के क्षेत्र को विजय कर लिया । आर्मी को शायद इस बात का डर था कि अगर सगत सिंह को परमवीर चक्र के लिए नामित किया गया तो सेना के अंदर शीर्ष अधिकारियों की आज्ञा का उल्लंघन और अनुशासनहीनता बढ़ जाएगी और एक गलत परंपरा चल पड़ेगी।

 

 

दिन 16 दिसम्बर 1971 को पाकिस्तान के 93 हजार सैनिको ने ढाका में भारतीय सेना के समक्ष आत्मसमर्पण किया था और पाकिस्तान से कटकर एक अलग देश बांग्लादेश का जन्म हुआ था। सगत सिंह को सेना के शीर्ष अधिकारी की तरफ से कहा गया था कि वो मेघना नदी को पार नहीं करेंगे । लेकिन अपने सैनिकों के साथ 4 किलोमीटर चौड़ी उफनती हुई मेघना नदी (हेलीकॉप्टर की मदद से एयरब्रिज बनाकर) पार करके सीधे ढाका पहुंच जाने का उनका दुस्साहसिक निर्णय ही इस युद्ध का टर्निंग पॉइंट सिद्ध हुआ!!

 

 

यह कदम उन्होंने बिना उच्चाधिकारियों की अनुमति के उठाया था, इसके लिए उनके उच्चाधिकारी जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा ने इन्हें फोन पर चेतावनी दी और वापस आने की हिदायत दी ।

 

लेकिन सगत सिंह ने जगजीत सिंह अरोड़ा को जवाब दिया कि “

“Jaggi, over my dead body” यानी मेरी लाश ही वापस आएगी

 

उन्होंने जगजीत सिंह अरोड़ा को यह भी कहा कि हम नदी पार करके ढाका पर हमला नही करेंगे तो क्या यहाँ बैठकर अंडे देंगे?

 

तब जगजीत सिंह अरोड़ा ने सगत सिंह की शिकायत आर्मी चीफ और प्रधानमन्त्री इंदिरा गांधी से की । प्रधानमन्त्री भी इस दुस्साहस पर चिंतित हुई,

किन्तु आर्मी चीफ सैम मानेकशा को सगत सिंह की काबिलियत पर पूरा भरोसा था।

 

जैसे ही पाकिस्तानी कमांडरों को भारतीय सेना के इतनी जल्दी ढाका पहुंचने की अविश्वसनीय खबर मिली उनके हाथ पांव फूल गए, जबकि ढाका का घेराव करने वाली भारतीय टुकड़ी से 10 गुना अधिक पाकिस्तानी सैनिक वहां मौजूद थे,लेकिन पाकिस्तानी कमांडर हिंदू सेनानायकों की बहादुरी के सामने पस्त हो गए ! उसमें ढाका में ऐसा माहौल हो गया कि ढाका के बंगाली मुसलमान सगत सिंह को अपने कंधे पर बिठाकर घूमने लगे और कॉलेज में पढ़ने वाली आधुनिक लड़कियां अपनी भावनाओं को संभाल नहीं पाई और भारतीय सैनिकों के गले लगकर स्वागत करने लगीं !

 

पाकिस्तानी सेना के 30 हजार सैनिकों को अपने मात्र 3 हजार सैनिको के साथ उफनती हुई मेघना नदी पार करके ढाका में घेरकर सरेंडर को मजबूर कर देने वाले लेफ्टिनेंट जनरल सगत सिंह राठौड़ को आज कितने भारतीय जानते हैं?

 

उस युद्ध में भाग लेने वाले लेफ्टिनेंट जनरल ओपी कौशिक ने लिखा है कि

पूर्वी मोर्चे पर भारतीय सेना के कमांडर जनरल जे. एस. अरोड़ा ने जनरल सगत सिंह से कहा कि वह अपनी टुकड़ियों को, जो ढाका की ओर बढ़ रही थीं, वापस बुला लें — लेकिन उन्होंने मना कर दिया।”
उन्होंने कहा, ‘जैगी, मेरी लाश के ऊपर से ही ऐसा होगा।'”
इसलिए मैं कहता हूं कि बांग्लादेश के असली निर्माता जनरल सगत सिंह थे।”
लेफ्टिनेंट जनरल ओ. पी. कौशिक उन अद्भुत सैनिकों को सलाम करते हैं जिन्होंने 1971 के युद्ध में बाज़ी पलट दी।

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