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जानें विवाह के योग कब होगा विवाह

मानव जीवन में विवाह बहुत बड़ी विशेषता मानी गई है. विवाह का वास्तविक अर्थ है- दो आत्माओं का आत्मिक मिलन. एक हृदय चाहता है कि वह दूसरे हृदय से सम्पर्क स्थापित करे, आपस में दोनों का आत्मिक प्रेम हो और हृदय मधुर कल्पना से ओतप्रोत हो।जब दोनों एक सूत्र में बँध जाते हैं, तब उसे समाज ‘विवाह’ का नाम देता है. विवाह एक पवित्र रिश्ता है। जिस वर्ष शनि और गुरु दोनों सप्तम भाव या लग्न को देखते हों, तब विवाह के योग बनते हैं। सप्तमेश की महादशा-अंतर्दशा या शुक्र-गुरु की महादशा-अंतर्दशा में विवाह का प्रबल योग बनता है। सप्तम भाव में स्थित ग्रह या सप्तमेश के साथ बैठे ग्रह की महादशा-अंतर्दशा में विवाह संभव है।

विवाह योग कब बनता है।

 

(1) लग्नेश, जब गोचर में सप्तम भाव की राशि में आए।

(2) जब शुक्र और सप्तमेश एक साथ हो, तो सप्तमेश की दशा-अंतर्दशा में।

(3) लग्न, चंद्र लग्न एवं शुक्र लग्न की कुंडली में सप्तमेश की दशा-अंतर्दशा में।

(4) शुक्र एवं चंद्र में जो भी बली हो, चंद्र राशि की संख्या, अष्टमेश की संख्या जोड़ने पर जो राशि आए, उसमें गोचर गुरु आने पर।

(5) लग्नेश-सप्तमेश की स्पष्ट राशि आदि के योग के तुल्य राशि में जब गोचर गुरु आए।

(6) दशमेश की महादशा और अष्टमेश के अंतर में।

(7) सप्तमेश-शुक्र ग्रह में जब गोचर में चंद्र गुरु आए।

(8) द्वितीयेश जिस राशि में हो, उस ग्रह की दशा-अंतर्दशा में।

 

ज्योतिषीय दृष्टि से जब विवाह योग बनते हैं, तब विवाह टलने से विवाह में बहुत देरी हो जाती है. वे विवाह को लेकर अत्यंत चिंतित हो जाते हैं. वैसे विवाह में देरी होने का एक कारण बच्चों का मांगलिक होना भी होता है. इनके विवाह के योग 27, 29, 31, 33, 35 व 37वें वर्ष में बनते हैं. जिन युवक-युवतियों के विवाह में विलंब हो जाता है, तो उनके ग्रहों की दशा ज्ञात कर, विवाह के योग कब बनते हैं, जान सकते हैं.

विवाह योग के लिये जो कारक ग्रह ।

 

सप्तम भाव का स्वामी खराब है या सही है वह अपने भाव में बैठ कर या किसी अन्य स्थान पर बैठ कर अपने भाव को देख रहा है. सप्तम भाव पर किसी अन्य पाप ग्रह की द्रिष्टि नही है. कोई पाप ग्रह सप्तम में बैठा नही है. यदि सप्तम भाव में सम राशि है. सप्तमेश और शुक्र सम राशि में है. सप्तमेश बली है. सप्तम में कोई ग्रह नही है. किसी पाप ग्रह की द्रिष्टि सप्तम भाव और सप्तमेश पर नही है. दूसरे सातवें बारहवें भाव के स्वामी केन्द्र या त्रिकोण में हैं,और गुरु से द्रिष्ट है. सप्तमेश की स्थिति के आगे के भाव में या सातवें भाव में कोई क्रूर ग्रह नही है.

 

विवाह नही होगा अगर

 

सप्तमेश शुभ स्थान पर नही है. सप्तमेश छ: आठ या बारहवें स्थान पर अस्त होकर बैठा है. सप्तमेश नीच राशि में है. सप्तमेश बारहवें भाव में है,और लगनेश या राशिपति सप्तम में बैठा है. चन्द्र शुक्र साथ हों,उनसे सप्तम में मंगल और शनि विराजमान हों. शुक्र और मंगल दोनों सप्तम में हों. शुक्र मंगल दोनो पंचम या नवें भाव में हों. शुक्र किसी पाप ग्रह के साथ हो और पंचम या नवें भाव में हो. शुक्र बुध शनि तीनो ही नीच हों. पंचम में चन्द्र हो,सातवें या बारहवें भाव में दो या दो से अधिक पापग्रह हों. सूर्य स्पष्ट और सप्तम स्पष्ट बराबर का हो.

 

विवाह में देरी

 

सप्तम में बुध और शुक्र दोनो के होने पर विवाह वादे चलते रहते है,विवाह आधी उम्र में होता है. चौथा या लगन भाव मंगल (बाल्यावस्था) से युक्त हो,सप्तम में शनि हो तो कन्या की रुचि शादी में नही होती है. सप्तम में शनि और गुरु शादी देर से करवाते हैं. चन्द्रमा से सप्तम में गुरु शादी देर से करवाता है,यही बात चन्द्रमा की राशि कर्क से भी माना जाता है. सप्तम में त्रिक भाव का स्वामी हो,कोई शुभ ग्रह योगकारक नही हो,तो पुरुष विवाह में देरी होती है. सूर्य मंगल बुध लगन या राशिपति को देखता हो,और गुरु बारहवें भाव में बैठा हो तो आध्यात्मिकता अधिक होने से विवाह में देरी होती है. लगन में सप्तम में और बारहवें भाव में गुरु या शुभ ग्रह योग कारक नही हों,परिवार भाव में चन्द्रमा कमजोर हो तो विवाह नही होता है,अगर हो भी जावे तो संतान नही होती है. महिला की कुन्डली में सप्तमेश या सप्तम शनि से पीडित हो तो विवाह देर से होता है. राहु की दशा में शादी हो,या राहु सप्तम को पीडित कर रहा हो,तो शादी होकर टूट जाती है,यह सब दिमागी भ्रम के कारण होता है.

 

विवाह का समय गोचर

 

सप्तम या सप्तम से सम्बन्ध रखने वाले ग्रह की महादशा या अन्तर्दशा में विवाह होता है. कन्या की कुन्डली में शुक्र से सप्तम और पुरुष की कुन्डली में गुरु से सप्तम की दशा में या अन्तर्दशा में विवाह होता है. सप्तमेश की महादशा में पुरुष के प्रति शुक्र या चन्द्र की अन्तर्दशा में और स्त्री के प्रति गुरु या मंगल की अन्तर्दशा में विवाह होता है. सप्तमेश जिस राशि में हो,उस राशि के स्वामी के त्रिकोण में गुरु के आने पर विवाह होता है. गुरु गोचर से सप्तम में या लगन में या चन्द्र राशि में या चन्द्र राशि के सप्तम में आये तो विवाह होता है. गुरु का गोचर जब सप्तमेश और लगनेश की स्पष्ट राशि के जोड में आये तो विवाह होता है. सप्तमेश जब गोचर से शुक्र की राशि में आये और गुरु से सम्बन्ध बना ले तो विवाह या शारीरिक सम्बन्ध बनता है. सप्तमेश और गुरु का त्रिकोणात्मक सम्पर्क गोचर से शादी करवा देता है,या प्यार प्रेम चालू हो जाता है. चन्द्रमा मन का कारक है,और वह जब बलवान होकर सप्तम भाव या सप्तमेश से सम्बन्ध रखता हो तो चौबीसवें साल तक विवाह करवा ही देता है.

 

उपाय

 

मान्यता है कि निम्नलिखित उपाय करने पर विवाह योग बनते हैं एवं विवाह शीघ्र होता है- माँ पार्वती की विधिवत पूजा करके प्रतिदिन निम्नांकित मंत्र की पाँच माला का जाप करने पर मनोरथ शीघ्र पूर्ण होता है-

 

हे गौरि शंकरार्धांगि यथा त्व शंकर प्रिया.

तथा मां कुरु कल्याणि, कान्तकांता सुदुर्लुभाम्‌॥

 

माह की प्रत्येक प्रदोष तिथि को माँ पार्वती का श्रृंगार कर विधिवत पूजन करें. तीन रत्ती से अधिक का जरकन, हीरे या पुखराज की अँगूठी अनामिका में शुभ मुहूर्त में विधिवत धारण करें.

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