वैदिक ज्योतिष के अनुसार चंद्र ग्रह मन का प्रतिनिधि है। यह मनुष्य के विचारों को नियंत्रित करता है।बुध ग्रह मनुष्य की निर्णय लेने की क्षमता को नियंत्रित करता है। कौन व्यक्ति किस मुद्दे पर क्या निर्णय लेगा यह बुध से तय होता है। बुध यदि किसी पापी ग्रह से पीड़ित है तो यह व्यक्ति को भ्रमित करता है और इससे निर्णय लेने की क्षमता पर असर पड़ता है | इसलिए ज्यादातर मामलों में यह व्यक्ति की आत्महत्या करने के लिए उकसाता है। परन्तु यदि सूर्य का प्रभाव बुध पर पड़ रहा है तो आत्महत्या जैसी स्थिति पैदा नहीं होती है
आठवें भाव में बुध की विभिन्न् ग्रहों से युति के कारण आत्महत्या:
यदि कुंडली में चन्द्रमा कमजोर है और बुध पापी ग्रहों से घिरा हुआ है तो व्यक्ति आत्महत्या जैसा कदम उठा सकता है। बुध की निम्नलिखित दूषित ग्रहों से युति होने से ऐसी स्थिति पैदा हो सकती है , परन्तु यदि चन्द्रमा अच्छी स्थिति में है और व्यक्ति का विवेक सही काम कर रहा है तो ऐसी स्थिति से बचा जा सकता है
बुध के साथ राहु : बुध के साथ राहु की युति होने पर व्यक्ति जहर खाकर या ऊंचाई से गिर कर अपनी जान दे देता है। जिस व्यक्ति की कुंडली में बुध और राहु की युति हो रही हो वह जहरीला पदार्थ पी सकता है। कीटनाशकों का सेवन कर अपनी जान दे देता है या फिर किसी ऊंची बिल्डिंग से छलांग लगा देता है।
बुध के साथ केतु : किसी व्यक्ति की जन्मकुंडली में बुध के साथ केतु की युति या दृष्टि संबंध बन रहा हो तो ऐसा व्यक्ति किसी तीर्थ स्थल पर आत्महत्या करता है। ऐसा व्यक्ति नींद की अधिक गोलियां खाकर या कोई केमिकल पीकर आत्महत्या कर बैठता है या कभी कभी फंदे से लटक कर जान दे सकता है
बुध के साथ शनि: शनि का संबंध वाहनों से है, इसलिए कुंडली में शनि और बुध की युति हो तो व्यक्ति तेज गति से वाहन चलाकर खुद की मौत का जिम्मेदार बनता है। ऐसा व्यक्ति रेलवे पटरी पर लेटकर जान दे देता है, खुद पर चाकू से वार कर लेता है या शनि के प्रभाव से भी व्यक्ति फांसी लगा लेता है।
बुध के साथ दूषित शुक्र : इन दोनों ग्रहों की युति के कारण व्यक्ति मौत का ऐसा रास्ता चुनता है जिसमें उसे अधिक तकलीफ न हो। जैसे जहर पीकर या नींद की गोलियां खाकर सो जाता है।
बुध के साथ दूषित गुरु : इन दोनों ग्रहों की युति जिन लोगों की कुंडली में होती है ऐसे व्यक्ति की मौत योगाभ्यास के दौरान होती है। ऐसा व्यक्ति योग के दौरान जीव समाधि या प्राणायाम प्रक्रिया करके मौत को गले लगा लेता है।
बुध के साथ मंगल : मंगल का संबंध हथियारों से है। जिस व्यक्ति की कुंडली में मंगल के साथ बुध की युति हो या दृष्टि संबंध हो तो वह तेज धारदार हथियार से खुद की गर्दन, कलाई काट लेता है या पिस्टल से गोली मार लेता है। ऐसा व्यक्ति आत्मदाह कर लेता है या बिजली का करंट लगा लेता है।
बुध के साथ दूषित चंद्र : चंद्र का संबंध जल से है, इसलिए जिस व्यक्ति की कुंडली में बुध और चंद्र की युति हो रही हो वह तालाब, नदी, कुएं या समुद्र में डूबकर जान दे देता है।
बीमारी से मुक्ति कब तक मिल सकती।
जब कोई रोग या बीमारी आकर किसी जातक को घेर लेते है तो वह हमें शारीरिक, मानसिक और आर्थिक रूप से मुख्य रूप से दिक्कत देते है कोई भी व्यक्ति हो वह बीमारी/रोग से ग्रसित नही रहना चाहता है क्योंकि स्वास्थ्य ही जीवन का पहला सुख है।आज इसी विषय पर बात करेंगे यदि कोई भी किसी भी तरह की बीमारी/रोग है तो क्या उनसे मुक्ति मिल पाएगी, बीमारी/रोग ठीक हो पायेगा, और ठीक हो पायेगा तो कब तक आदि।
किसी भी रोग/बीमारी बिल्कुल ठीक होने के लिए, रोग/बीमारी से मुक्ति के लिए जिससे रोग/बीमारी हमेशा के लिए ठीक हो जाये और जातक/जातिका हमेशा स्वास्थ्य रहे इसके लिए लग्न/लग्नेश और छठा भाव/छठे घर का स्वामी अच्छी अवस्था मे होना चाहिए, कारण क्योंकि लग्न और लग्नेश जातक/जातिका का शरीर है, और रोगों से लड़ने की शक्ति देता है शरीर को ही रोग/बीमारी होती है, साथ ही छठा भाव रोगों मुक्ति का है कि कितनी जल्दी रोग से मुक्ति मिलेगी या लंबा समय लगेगा, किसी भी रोग को ठीक होने में कितना समय लगेगा यह छठा घर औऱ इसका स्वामी की स्थिति बताएगी, एक तरह से छठा भाव जातक/जातिका के रोग प्रतिरोधक क्षमता को बताता है।.
जो भी जातक/जातिका अस्वास्थ्य रहते है ,किसी न किसी बीमारी न ग्रसित कर रखा हो, या कोई बड़ी बीमारी है उनका इलाज चल रहा और वह कब ठीक होगी यह सब लग्न/लग्नेश और छठे भाव छठे भाव के स्वामी की बलवान स्थिति तय करेगी, यह दोनों भाव और भावेश बलवान/शुभ होंगे तब कितनी भी बड़ी बीमारी/रोग किसी भी तरह का क्यों न हो ठीक हो जाएगा इलाज से, इसके विपरीत जब छठा भाव और लग्न लग्नेश अशुभ कमजोर हुआ तब वर्षो तक दवाइयां खाते रहने पर भी बीमारी पूरी तरह ठीक नही होती, ऐसी स्थिति में लग्न लग्नेश को बलवान करना चाहिए और छठे भाव और भावेश को शुभ और परिस्थिति अनुसार बलवान करने के उपाय।।
अब कुछ उदाहरणों से समझते है कैसे बीमारी ठीक हो सकती है या नही, और होगी तो कब तक आदि।
उदाहरण_अनुसार1:
जैसे कि वृष लग्न की कुंडली किसी बीमार या रोग/बीमारी से ग्रसित जातक-जातिका की बने,तब यहाँ लग्न का स्वामी भी शुक्र बनेगा और छठे घर का स्वामी भी शुक्र बनेगा, अब यहाँ मुख्य रूप से रोग/बीमारी को ठीक करना, या रोग देना यह सब शुक्र पर निर्भर करेगा यदि शुक्र अशुभ भावगत होकर पीड़ित हुआ तब ऐसे जातक को रोग और बीमारी जल्दी पकड़ेगी, क्योंकि यहां लग्नेश और छठे घर का स्वामी शुक्र हो, अब यहाँ रोग से मुक्ति तब ही संभव होगी जब शुक्र बलवान हो और केंद्र या त्रिकोण में अपने मित्र ग्रहों के साथ हो, जैसे कुंडली के छठे भाव मे ही हो लेकिन अपने मित्र बुध शनि आदि के साथ होगा तब जातक को बीमारी/रोग होने पर इलाज कराने पर जल्दी फायदा मिलेगा।।
उदाहरण_अनुसार2:- ,
जैसे कि कर्क लग्न का स्वामी चन्द्र होता है साथ ही छठे घर का स्वामी गुरु ग्रह होगा, अब यहाँ लग्नेश चन्द्र कमजोर होकर छठे घर मे ही चला जाये और गुरु जो कि रोग भाव, छठे भाव का स्वामी सातवे घर मे बैठकर लग्न को देखेगा तब ऐसा जातक/जातिका बीमारी रोग से ग्रसित ज्यादा रहेंगे क्योंकि लग्नेश चन्द्र खुद छठे घर /रोग के घर मे, हर रोग भाव का स्वामी गुरु सातवे घर मे नीच होकर लग्न को देखकर बीमारी को बड़ा रहा गई, ऐसी स्थिति में जातक/जातिका को बीमारियां ग्रसित रखती है, यहां चंद्रमा को बलवान करने और गुरु की शांति के उपाय करने से ही रोग बीमारियों से मुक्ति मिलेगी, वरना कमजोर गुरु चन्द्र ऐसी स्थिति में रोग बीमारी बनाये रखेगे।।
नोट:- जैसा कि ऊपर अभी बताया, लग्न लग्नेश, अशुभ स्थिति में भी हो, और छठा घर और इसका स्वामी भी अशुभ स्थिति में होगा तो रोग बीमारी तो रहेगी लेकिन, लग्न-लग्नेश बलवान होगा सुर महादशा-दशा शुभ होगी तब बीमारी ठीक भी हो जाएगी, छठा घर इसका स्वामी पीड़ित हो तब बीमारी देर से ठीक होती है और छठा घर और इसका स्वामी अच्छी अवस्था मे होगा तब बीमारी रोग जल्दी ठीक हो जाता है।।
अब बात करते है, क्या रोग बीमारी पर ज्यादा रुपया-पैसा खर्च कब होता है और देर से रोग क्यों ठीक होता है जब कुंडली के रोग भाव/छठे भाव या लग्न/लग्नेश ला संबंध दूसरे भाव या दूसरे भाव के स्वामी से बन जाता है और रोग/बीमारी की स्थिति ग्रहों की है तब रुपया-पैसा ज्यादा मात्रा में खर्च होता है क्योंकि रोग/बीमारी का संबंध धन भाव(दूसरे भाव) से जुड़ गया है कैसे इस बात को उदाहरण से समझते है।
उदाहरण_अनुसार3:- ,
तुला लग्न में जैसा कि लग्नेश शुक्र होता है और छठे घर का स्वामी गुरु और दूसरे घर(धन भाव स्वामी) मंगल बनेगा अब यहाँ जैसे कि गुरु के साथ शुक्र संबंध बनाकर जैसे युति करके छठे घर मे बैठा हो या दोनों का किसी भी घर मे संबंध हो शुक्र गुरु का और लग्न पर या लग्नेश शुक्र पर पाप ग्रह की दृष्टि हो जैसे शनि राहु या केतु की तब ऐसा जातक/जातिका बीमारी ग्रसित रहेंगे क्योंकि रोग की उत्पत्ति हो रही लग्न लग्नेश शुक्र के पीड़ित होने और छठे घर स्वामी गुरु से संबंध होने से अब यहाँ दूसरे घर या दूसरे घर के स्वामी मंगल का संबंध शुक्र गुरु के सबंध से बन जाये, या शुक्र गुरु का एक साथ सबंध दूसरे से बनेगा जैसे कि शुक्र गुरु दूसरे ही घर मे पीड़ित होकर बैठेंगे तब यहाँ रोग बीमारी पर पैसा ज्यादा खर्च होगा क्योंकि यहाँ रोग/बीमारी का संबंध लग्नेश+छठे घर के स्वामी का सबंध धन भाव या धन भाव के स्वामी मंगल से हो गया है।।
कम शब्दों में कहूं तो जब रोग बीमारी होने पर छठे घर या छठे घर के स्वामी, लग्न या लग्न के स्वामी का संबंध दूसरे भाव या दूसरे भाव से भी हो जाता है तब रोग/बीमारी रुपया पैसा ज्यादा खर्च होता है ऐसी स्थिति में रोग/बीमारी से मुक्ति के उपाय करना ही ज्यादा अच्छा रहता है जिससे रोग/बीमारी न बढ़े और रुपया पैसा बीमारी पर ज्यादा खर्च न हो।। जब भी लग्न और लग्नेश बलवान होगा और छठ भाव, छठे भाव का स्वामी बलवान और शुभ स्थिति में होगा तब ऐसे जातक/जातिका को किसी भी तरह की बीमारी/रोग होने पर बहुत जल्दी ठीक हो जाता है।।
लग्न/लग्नेश और छठे भाव/भावेश की शुभ स्थिति हमेशा निरोगी बनाकर रखेगी, जिन जातक/जातिको का लग्न/लग्नेश, छठा भाव/छठे भाव का स्वामी बलवान होंगे उन जातक/जातिको का बड़े से बड़ा रोग/बीमारी ठीक हो जायेगे, इनके कमजोर होने पर रोग/बीमारी से लंबे समय तक लड़ना पड़ता है ऐसे में इन दोनों भाव/भावेश को बलवान करना ही उपाय बीमारी को नष्ट कर देता है।बीमारी क्या होगी ,यह लग्न लग्नेश और छठे घर पर पड़ने वाले ग्रहों के अशुभ प्रभाव, और लगन लग्नेश का संबंध किस भाव से है,छठे भाव छठे घर के स्वामी पर जिन ग्रहों का प्रभाव होगा उन्ही ग्रहों से सबंधित बीमारी रहेगी, छठे घटनाओ का दर्द हो, पेठ की दिक्कत, आंखों की बीमारी आदि।।