
ताज़े फूलों की हमें हमेशा प्रसन्नता होती है। और जब वे भगवान के चरणों में चढ़ाए जाते हैं, तो और भी अधिक आनंद मिलता है।
फूल लेते समय वे ‘मेरे’ होते हैं, लेकिन जैसे ही भगवान को अर्पित किए जाते हैं, वे ‘उनके’ बन जाते हैं…
हम इसे कितनी शांति से स्वीकार लेते हैं। पूरी तरह अलिप्त होकर…
‘जिसके थे, उसे दे दिए’ — बस यही भाव मन में रहता है। उन फूलों से लगाव समाप्त हो जाता है।
कल चढ़ाए गए फूल आज मुरझा जाते हैं, निर्माल्य बन जाते हैं।
फिर निष्काम मन से हम उन्हें उठा कर गंगा में अर्पित कर देते हैं…
उनके प्रति न कोई मोह होता है, न कोई अपेक्षा।
मन में यह प्रश्न नहीं आता कि इन्हें कैसे छोड़ दूँ?
फिर उनकी याद भी नहीं आती।
ठीक इसी तरह, अपने दुख भी ‘उसके’ चरणों में अर्पित कर शान्त हो जाना चाहिए…
उन दुखों से कोई भावना बाँधकर नहीं रखनी चाहिए…
अब तक जो दुख ‘मेरे’ थे, अब वे ‘उसके’ हो गए।
फिर उनका क्या विचार करना…
और कल के दुख तो आज निर्माल्य बन चुके हैं—उनसे कोई मोह नहीं रखना चाहिए।
उन्हें पकड़े रहने का कोई लाभ नहीं।
मुरझाए फूलों की तरह वे सड़ने लगते हैं और मन को खोखला करने लगते हैं…
इसलिए जब तक वे निर्माल्य हैं, तभी गंगाजल में प्रवाहित कर मुक्त हो जाना चाहिए।
आज बोने के लिए हमें आनंद लाना होगा।
जैसे बीज बोने से पहले खेत की जुताई की जाती है…
ठीक वैसे ही हमें मन की सफाई करनी है…
और फिर उसमें आनंद के बीज बोने हैं।
वह सौ गुना बढ़कर लौटता है।
उसकी देखभाल करनी है…
उसका प्रतिफल जीवन को समृद्ध बनाता है।
इसलिए—
दुखों को छोड़ देना चाहिए, वे निर्माल्य बनकर खत्म हो जाते हैं।
आनंद बोते रहना चाहिए, वह संतोष बनकर स्थायी हो जाता है।
अगर परखने बैठें तो कोई अपना नहीं,
और अगर समझने लगें तो कोई पराया नहीं।
मनुष्य के मुख में मिठास, दिल में प्रेम, व्यवहार में नम्रता और हृदय में गरीब की वेदना हो —
तो बाकी सारी अच्छी बातें स्वयं घटित होती जाती हैं।
दूसरों के आँगन में सुख का पेड़ लगाएँ, तो आनंद के फूल अपने द्वार पर गिरते हैं।
🕉 विठ्ठल को प्रिय है प्रेमभाव।
卐 श्रीराम जय राम जय जय राम 卐”