उसने आपद्धर्म (आपत्ति की स्थिति में धर्म) के रूप में पाँच पतियों से विवाह किया…
फिर भी उसे एकनिष्ठ पत्नी का दर्जा दिया गया।
उसके पाँचों पतियों ने अन्य स्त्रियों से भी विवाह किए…
लेकिन वे पुरुष थे, इसलिए उन्हें बहुपत्नीक होना परंपरागत रूप से स्वीकृत था।
तो कहानी है द्रौपदी की…
किसी समारोह के दौरान उसकी नज़र कर्ण पर पड़ी…
उसे यह ज्ञात नहीं था कि वह भी एक पांडव है।
फिर भी, उसकी सुंदरता देखकर वह पलभर के लिए मोहित हो गई।
आख्यानकार कहते हैं, “कर्ण को देखकर द्रौपदी का मन पिघल गया।”
वे आगे कहते हैं कि द्रौपदी को क्षणभर यह विचार आया —
“अगर यह सुंदर युवक छठा पांडव होता तो?”
तब साल के 12 महीनों को 6 में बाँटा जा सकता था, और हर पति के साथ 2-2 महीने बिताने को मिलते।
इस बात को अंतर्ज्ञानी कृष्ण ने भी भांप लिया।
द्रौपदी के मन में किसी परपुरुष का विचार आना, पांडवों के लिए एक खतरे की घंटी थी।
क्योंकि द्रौपदी ही वह सूत्र थी जो पांडवों को एकजुट रखे हुए थी।
तब कृष्ण ने वनविहार (वन भ्रमण) की योजना बनाई।
वनविहार के बाद सबको भूख लगी, तो भीम फल लाने के लिए गया।
लेकिन कृष्ण ने अपनी माया से जंगल के सारे फल अदृश्य कर दिए।
सिर्फ एक पेड़ पर एकमात्र जामुन शेष रह गया।
भीम ने वही तोड़कर ला दिया।
उसी वन में एक ऋषि तपस्या कर रहे थे।
12 वर्षों की तपस्या पूर्ण होने पर वह जामुन खाने वाले थे —
यह शुभ समाचार कृष्ण ने सबको सुनाया।
अब पांडवों में घबराहट फैल गई…
अगर ऋषि को जामुन न मिला तो उनका क्रोध सब पर पड़ सकता था।
कृष्ण ने कहा,
“तुम में से जिसने कभी परस्त्री या परपुरुष का विचार भी नहीं किया हो,
वह सच्चे मन से प्रार्थना करे —
जामुन अपने-आप पेड़ पर चिपक जाएगा।”
अब वहां द्रौपदी से अधिक उपयुक्त कोई नहीं था…
सभी की नजरें उसी पर टिक गईं।
द्रौपदी अंदर से शर्मिंदा और भयभीत थी।
अगर जामुन पेड़ पर न चिपका —
तो उसका पातिव्रत्य ही प्रश्नों के घेरे में आ जाएगा,
क्योंकि क्षणभर के लिए ही सही,
कर्ण का विचार उसके मन में आया ही था।
उसने मन ही मन कृष्ण से दया की याचना की…
पुनः ऐसी भूल न होगी — यह मौन स्वीकार किया…
और हाथ जोड़कर प्रार्थना की।
और क्या आश्चर्य!
जामुन वापस पेड़ से चिपक गया…
लेकिन उल्टी दिशा से।
यह कृष्ण की योजना थी —
ताकि द्रौपदी को अपनी गलती की स्मृति बनी रहे।
इस प्रकार, एक अर्थ में —
उल्टा जामुन पाप का प्रतीक बन गया।
इसलिए जामुन को पूजा या उपवास के फलों में स्थान नहीं मिला।
आख्यानकार आगे कहते हैं —
जामुन खाया हुआ छुपाया नहीं जा सकता,
वह जीभ को बैंगनी कर देता है…
अर्थात्, किया हुआ पाप छिपता नहीं।