आप लोगों को विचार करना चाहिए क्या ज्योतिष वेदों का अंग है और अगर है तो वेदों में ज्योतिष सूत्र का प्रतिपादन क्यों नहीं किया गया है।
हमें सिर्फ इतना ही विवरण मिलता है की काल गणना किस प्रकार होती है इसमें नक्षत्र का क्या महत्व है सूर्य चंद्र आदि ग्रहों का क्या महत्व है इनकी पोजीशन को किस प्रकार से देखें।
ज्योतिष के माध्यम से फलित की बातें कब से शुरू हुई इसका कोई स्पष्ट उदाहरण नहीं मिलता।
भारतीय संस्कृति में पंचांग भी इसीलिए जरूरी होता था। हिंदू संस्कृति से संबंधित संस्कार कब किए जाएं त्योहारों को किस रूप में और कब मनाया जाए उसकी तिथि सही रूप से ज्ञात हो जाए।
जब हम ऋषि पद्धति जो कि आजकल प्रसिद्ध है अलग-अलग अध्ययन करते हैं। सभी के थॉट प्रोसेस में अंतर दिखता है।
किस भाव से क्या देखा जाना चाहिए तथा ग्रहों के कारकों के संबंध में भी अंतर है।
पाराशर हरा शास्त्र के अगर सभी अध्याय की विषय सूची देखें।
उसमें कुंडली मैचिंग या प्रश्न कुंडली का सिद्धांत का भी वर्णन नहीं मिलता है।
तो क्या यह फलित की पद्धतियां बाद में विकसित हुई है।
क्या यह पुलिस सिद्धांत ऋषियों के अपने-अपने अनुसंधान का नतीजा है इसीलिए काफी सिद्धांतों में अंतर भी दिखाई देता है।
देशकाल स्थिति और समाज की संरचना बदलती रहती है लोगों का व्यवहार भी बदलता रहता है इसी कारणज्योतिष में क्या निरंतर अनुसंधान की आवश्यकता है खास तौर पर फलित के क्षेत्र में
जो चीज बदलती रहे वह ऋषि परंपरा नहीं हो सकती वेदों का ज्ञान नहीं हो सकता जो वेद से आया है वह ज्ञान स्थिर और स्पष्ट होना चाहिए।
क्या हमें भी इन बातों पर विचार नहीं करना चाहिए।