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विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन में अंतरराष्ट्रीय ज्योतिष वास्तु महाधिवेशन द्वारा “प्रवीण बद्रीविशालवाले जी” को मानव जाति की सेवा और प्राचीन भारतीय विज्ञान के लिए ज्योतिषी और वास्तु आचार्य सम्मान 2024 से सम्मानित किया गया।

महाधिवेशन का आयोजन  21 और 22 दिसंबर, 2024 को विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के भव्य सभागार में संपन्न हुआ। इस महाधिवेशन का संयोजन और संचालन महाराजा विक्रमादित्य शोध पीठ, आचार्य वराह मिहिर न्यास, सम्राट विक्रमादित्य विद्वत परिषद, अश्विनी शोध संस्थान, पूर्ण श्री फाउंडेशन, शंखोनाद शोध संस्थान, और साउथ एशियन एस्ट्रो फेडरेशन, नेपाल के संयुक्त तत्वावधान में किया गया। आयोजन का उद्देश्य प्राचीन भारतीय ज्ञान परंपराओं को आधुनिक संदर्भ में स्थापित करना और ज्योतिष, तंत्र तथा वास्तु के क्षेत्र में नई दिशाओं की खोज करना था।

प्रवीण जी एक अनुभवी ज्योतिषी और पेशे से सिविल इंजीनियर हैं, जिन्होंने ज्योतिष के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान दिया है। प्रवीण जी ने अनेक कोर्सेस और कार्यशालाओं के माध्यम से कई सफल ज्योतिषियों को प्रशिक्षित किया है। उनके प्रसिद्ध कोर्सेस में पंचांग रहस्यम्, नक्षत्र रहस्यम्, अर्घ मार्तण्ड रहस्यम् और न्यूमेरोलॉजी कंप्लीट कोर्स शामिल हैं। उनकी गहरी ज्योतिषीय समझ और शिक्षण शैली ने उन्हें इस क्षेत्र में एक प्रतिष्ठित व्यक्तित्व बना दिया है। वे समय-समय पर ज्योतिषीय कार्यशालाओं का आयोजन कर अपनी विद्या को लोगों तक पहुँचाते हैं।

इस अंतरराष्ट्रीय महाधिवेशन में भारत और विदेशों से अनेक ख्यातिप्राप्त विद्वानों और विशेषज्ञों ने भाग लिया। प्रमुख अतिथियों और विद्वानों में शामिल थे:

 

भारतीय ज्ञान परंपरा का संवर्धन। वास्तु और तंत्र शास्त्र के आधुनिक अनुप्रयोग। ज्योतिष शास्त्र का वैज्ञानिक दृष्टिकोण।

लाल किताब और इसके व्यावहारिक समाधान।

 

कार्यक्रम के दौरान कई सांस्कृतिक और शैक्षणिक गतिविधियां आयोजित की गईं। इनमें प्रमुख रूप से:

 

विशेष सत्र:   

 

ज्योतिष, वास्तु और तंत्र पर आधारित प्रश्नोत्तरी और चर्चा सत्र।

 

सांस्कृतिक कार्यक्रम: 

 

भारतीय शास्त्रीय नृत्य और संगीत का प्रदर्शन।

 

स्मृति चिन्ह वितरण:

 

प्रतिभागियों और विद्वानों को विशेष सम्मान।

प्राचीन परंपराओं का आधुनिक संदर्भ में महत्व

 

 

महाधिवेशन में यह बात स्पष्ट रूप से उभरकर आई कि ज्योतिष और वास्तु जैसी प्राचीन विधाएं न केवल आध्यात्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि उनके वैज्ञानिक और सामाजिक पहलुओं का भी आज के युग में गहरा प्रभाव है। विद्वानों ने इस बात पर जोर दिया कि इन विधाओं को आधुनिक संदर्भ में कैसे उपयोगी बनाया जा सकता है। उज्जैन, जो प्राचीन काल से ही भारतीय ज्योतिष और खगोल विज्ञान का केंद्र रहा है, इस आयोजन के लिए उपयुक्त स्थल था। महाराजा विक्रमादित्य की नगरी के रूप में प्रसिद्ध उज्जैन की ऐतिहासिक और आध्यात्मिक महत्ता ने महाधिवेशन में एक विशेष ऊर्जा का संचार किया।

महाधिवेशन के दौरान विद्वानों ने ज्योतिष और वास्तु के क्षेत्र में नवाचार और शोध की दिशा में कार्य करने की प्रतिबद्धता व्यक्त की।

यह आयोजन आने वाले समय में ज्योतिष, तंत्र और वास्तु शास्त्र के क्षेत्र में नए आयाम स्थापित करेगा और प्राचीन भारतीय ज्ञान परंपरा को वैश्विक स्तर पर पहचान दिलाने में सहायक होगा।

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