प्रस्तावना
सनातन धर्म में एकादशी व्रत का विशेष महत्व बताया गया है। वर्ष भर में 24 एकादशियाँ आती हैं, जिनमें से प्रत्येक एकादशी का अपना विशिष्ट नाम, महत्व और व्रत-विधि होती है। इन्हीं में से एक है इंदिरा एकादशी, जो आश्विन मास के कृष्ण पक्ष में आती है। इस एकादशी का संबंध पितरों की मुक्ति और मोक्ष से है। यही कारण है कि इसे पितृमोक्षदा एकादशी भी कहा जाता है।
इंदिरा एकादशी विशेष रूप से उन लोगों के लिए महत्वपूर्ण मानी गई है जो पितरों की आत्मा की शांति और मोक्ष के लिए श्रद्धा रखते हैं। पुराणों में वर्णित है कि इस व्रत को करने से पितरों को स्वर्गलोक की प्राप्ति होती है तथा व्रती को भी पापों से मुक्ति और पुण्य की प्राप्ति होती है।
इंदिरा एकादशी का महत्व
इंदिरा एकादशी व्रत की कथा
पुराणों के अनुसार, सतयुग में महिष्मति नगरी के राजा इंद्रसेन बहुत पराक्रमी और धर्मनिष्ठ शासक थे। वे अपने प्रजा का पालन धर्मानुसार करते थे और भगवान विष्णु के अनन्य भक्त थे।
एक दिन राजा इंद्रसेन अपने दरबार में बैठे हुए थे कि अचानक आकाश से एक दिव्य रथ उतरा। उसमें यमराज के दूत और ऋषि नारद मुनि प्रकट हुए। नारद जी ने राजा से कहा –
“राजन! तुम्हारे पिता वर्तमान में यमलोक में हैं और वहाँ उन्हें अपने कुछ कर्मों के कारण दुख भोगना पड़ रहा है। वे चाहते हैं कि तुम उनके उद्धार के लिए कोई विशेष उपाय करो।”
राजा ने विनम्र होकर पूछा – “गुरुदेव! मैं अपने पिता को किस प्रकार स्वर्गलोक की प्राप्ति करवा सकता हूँ?”
नारद मुनि ने उत्तर दिया –
“हे राजन! आश्विन मास के कृष्ण पक्ष में आने वाली इंदिरा एकादशी का व्रत करो। इस व्रत का फल तुम्हारे पिता को प्राप्त होगा और वे पुनः स्वर्गलोक चले जाएंगे।”
राजा ने विधिपूर्वक व्रत किया और उसका फल अपने पिताजी को समर्पित किया। परिणामस्वरूप उनके पिता यमलोक से मुक्त होकर दिव्य स्वरूप धारण करके स्वर्गलोक में चले गए।
इस कथा से यह सिद्ध होता है कि इंदिरा एकादशी व्रत केवल व्रती ही नहीं, बल्कि उनके पूर्वजों के लिए भी कल्याणकारी है।
व्रत विधि
इंदिरा एकादशी का व्रत एक दिन पूर्व, यानी दशमी तिथि से ही आरंभ हो जाता है। इसकी विधि इस प्रकार है –
एकादशी का दिन –
इंदिरा एकादशी और पितृपक्ष
इंदिरा एकादशी का सबसे बड़ा महत्व इसलिए है क्योंकि यह प्रायः पितृपक्ष के दौरान आती है। पितृपक्ष में पितरों की आत्मा को तर्पण और श्राद्ध के माध्यम से तृप्त किया जाता है। इस समय किया गया इंदिरा एकादशी व्रत पितरों को विशेष रूप से संतुष्ट करता है और उन्हें उच्च लोकों की प्राप्ति कराता है।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण
यदि वैज्ञानिक दृष्टि से देखें तो एकादशी व्रत का पालन करना शरीर और मन दोनों के लिए लाभकारी है।
सामाजिक और सांस्कृतिक पहलू
भारत में हर एकादशी को सामाजिक रूप से भी महत्व दिया गया है। लोग एकत्र होकर मंदिरों में भजन-कीर्तन करते हैं। इंदिरा एकादशी के दिन ब्राह्मणों को भोजन कराने और गरीबों को अन्नदान करने की परंपरा है। इससे समाज में सहयोग और दया का भाव विकसित होता है।
आधुनिक जीवन में प्रासंगिकता
आज के भाग-दौड़ वाले जीवन में भी इंदिरा एकादशी का महत्व कम नहीं हुआ है।
निष्कर्ष
इंदिरा एकादशी केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह श्रद्धा, भक्ति और कृतज्ञता का प्रतीक है। यह दिन हमें यह याद दिलाता है कि हमारे पितरों ने जो मार्ग प्रशस्त किया है, उसका सम्मान करना हमारा कर्तव्य है।
इस व्रत से व्यक्ति अपने पापों से मुक्त होकर पवित्र जीवन जी सकता है और साथ ही अपने पितरों को भी मोक्ष की ओर अग्रसर कर सकता है। इसीलिए कहा गया है –
“इंदिरा एकादशी का व्रत करने से पितृ प्रसन्न होते हैं, भगवान विष्णु कृपा करते हैं और जीवन में सुख-शांति एवं समृद्धि का आगमन होता है।”