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इंदिरा एकादशी : महत्व, कथा और व्रत विधि

प्रस्तावना

सनातन धर्म में एकादशी व्रत का विशेष महत्व बताया गया है। वर्ष भर में 24 एकादशियाँ आती हैं, जिनमें से प्रत्येक एकादशी का अपना विशिष्ट नाम, महत्व और व्रत-विधि होती है। इन्हीं में से एक है इंदिरा एकादशी, जो आश्विन मास के कृष्ण पक्ष में आती है। इस एकादशी का संबंध पितरों की मुक्ति और मोक्ष से है। यही कारण है कि इसे पितृमोक्षदा एकादशी भी कहा जाता है।

इंदिरा एकादशी विशेष रूप से उन लोगों के लिए महत्वपूर्ण मानी गई है जो पितरों की आत्मा की शांति और मोक्ष के लिए श्रद्धा रखते हैं। पुराणों में वर्णित है कि इस व्रत को करने से पितरों को स्वर्गलोक की प्राप्ति होती है तथा व्रती को भी पापों से मुक्ति और पुण्य की प्राप्ति होती है।

इंदिरा एकादशी का महत्व

  1. पितृ तर्पण का साधन – यह एकादशी पितृपक्ष में आती है। इस समय पितरों का पृथ्वी पर आगमन होता है और वे अपने वंशजों से तर्पण, पिंडदान और श्राद्ध की अपेक्षा रखते हैं। इंदिरा एकादशी का व्रत करने से उन्हें तृप्ति मिलती है।
  2. मोक्षदायिनी एकादशी – इसे मोक्षदायिनी एकादशी भी कहा गया है क्योंकि इसका पालन करने से पितरों और व्रती दोनों की आत्मा को मुक्ति मिलती है।
  3. पापों का नाश – यह व्रत व्यक्ति के जीवन में संचित पापों को नष्ट करता है और सात पीढ़ियों तक कल्याणकारी माना जाता है।
  4. शास्त्रीय मान्यतापद्मपुराण और स्कंदपुराण में इंदिरा एकादशी का विस्तृत वर्णन है। श्रीकृष्ण ने अर्जुन और युधिष्ठिर को इस व्रत का महत्व समझाया था।

इंदिरा एकादशी व्रत की कथा

पुराणों के अनुसार, सतयुग में महिष्मति नगरी के राजा इंद्रसेन बहुत पराक्रमी और धर्मनिष्ठ शासक थे। वे अपने प्रजा का पालन धर्मानुसार करते थे और भगवान विष्णु के अनन्य भक्त थे।

एक दिन राजा इंद्रसेन अपने दरबार में बैठे हुए थे कि अचानक आकाश से एक दिव्य रथ उतरा। उसमें यमराज के दूत और ऋषि नारद मुनि प्रकट हुए। नारद जी ने राजा से कहा –
“राजन! तुम्हारे पिता वर्तमान में यमलोक में हैं और वहाँ उन्हें अपने कुछ कर्मों के कारण दुख भोगना पड़ रहा है। वे चाहते हैं कि तुम उनके उद्धार के लिए कोई विशेष उपाय करो।”

राजा ने विनम्र होकर पूछा – “गुरुदेव! मैं अपने पिता को किस प्रकार स्वर्गलोक की प्राप्ति करवा सकता हूँ?”

नारद मुनि ने उत्तर दिया –
“हे राजन! आश्विन मास के कृष्ण पक्ष में आने वाली इंदिरा एकादशी का व्रत करो। इस व्रत का फल तुम्हारे पिता को प्राप्त होगा और वे पुनः स्वर्गलोक चले जाएंगे।”

राजा ने विधिपूर्वक व्रत किया और उसका फल अपने पिताजी को समर्पित किया। परिणामस्वरूप उनके पिता यमलोक से मुक्त होकर दिव्य स्वरूप धारण करके स्वर्गलोक में चले गए।

इस कथा से यह सिद्ध होता है कि इंदिरा एकादशी व्रत केवल व्रती ही नहीं, बल्कि उनके पूर्वजों के लिए भी कल्याणकारी है।

व्रत विधि

इंदिरा एकादशी का व्रत एक दिन पूर्व, यानी दशमी तिथि से ही आरंभ हो जाता है। इसकी विधि इस प्रकार है –

  1. दशमी तिथि का नियम
    • दशमी के दिन से ही सात्विक आहार ग्रहण करें।
    • लहसुन, प्याज, तला-भुना भोजन, मांसाहार तथा नशा आदि का परित्याग करें।

एकादशी का दिन

    • प्रातःकाल स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
    • घर में भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
    • पीपल के पत्ते, तुलसीदल और गंगाजल से भगवान का पूजन करें।
    • धूप, दीप, नैवेद्य अर्पित करें और विष्णु सहस्रनाम या विष्णु मंत्र का जप करें।
    • इस दिन दान का विशेष महत्व है। अन्न, वस्त्र, जल, और दक्षिणा ब्राह्मणों को देना चाहिए।
  1. उपवास नियम
    • व्रती को इस दिन अनाज का सेवन नहीं करना चाहिए।
    • फलाहार, दूध, दही, फल, मेवे या केवल जल पर निर्भर रह सकते हैं।
    • रात्रि में भगवान विष्णु का स्मरण करते हुए जागरण करना शुभ माना जाता है।
  2. द्वादशी का पारण
    • दूसरे दिन प्रातः स्नान कर भगवान का पूजन करें।
    • ब्राह्मण को भोजन कराएँ और दक्षिणा दें।
    • इसके पश्चात् स्वयं फलाहार या अन्न ग्रहण करके व्रत का पारण करें।

इंदिरा एकादशी और पितृपक्ष

इंदिरा एकादशी का सबसे बड़ा महत्व इसलिए है क्योंकि यह प्रायः पितृपक्ष के दौरान आती है। पितृपक्ष में पितरों की आत्मा को तर्पण और श्राद्ध के माध्यम से तृप्त किया जाता है। इस समय किया गया इंदिरा एकादशी व्रत पितरों को विशेष रूप से संतुष्ट करता है और उन्हें उच्च लोकों की प्राप्ति कराता है।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण

यदि वैज्ञानिक दृष्टि से देखें तो एकादशी व्रत का पालन करना शरीर और मन दोनों के लिए लाभकारी है।

  1. उपवास का महत्व – महीने में दो बार उपवास करने से पाचन तंत्र को विश्राम मिलता है।
  2. मानसिक शांति – ध्यान और पूजा से मानसिक तनाव कम होता है।
  3. दान का महत्व – दूसरों की मदद करने से सकारात्मक ऊर्जा बढ़ती है।
  4. पूर्वजों का स्मरण – यह परंपरा हमें अपनी जड़ों और पूर्वजों से जोड़े रखती है।

सामाजिक और सांस्कृतिक पहलू

भारत में हर एकादशी को सामाजिक रूप से भी महत्व दिया गया है। लोग एकत्र होकर मंदिरों में भजन-कीर्तन करते हैं। इंदिरा एकादशी के दिन ब्राह्मणों को भोजन कराने और गरीबों को अन्नदान करने की परंपरा है। इससे समाज में सहयोग और दया का भाव विकसित होता है।

आधुनिक जीवन में प्रासंगिकता

आज के भाग-दौड़ वाले जीवन में भी इंदिरा एकादशी का महत्व कम नहीं हुआ है।

  • यह हमें आध्यात्मिक शांति प्रदान करती है।
  • परिवार में पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता का भाव जगाती है।
  • उपवास और सात्विक आहार से शारीरिक स्वास्थ्य सुधरता है।
  • दान-पुण्य से समाज में करुणा और सहयोग की भावना विकसित होती है।

निष्कर्ष

इंदिरा एकादशी केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह श्रद्धा, भक्ति और कृतज्ञता का प्रतीक है। यह दिन हमें यह याद दिलाता है कि हमारे पितरों ने जो मार्ग प्रशस्त किया है, उसका सम्मान करना हमारा कर्तव्य है।

इस व्रत से व्यक्ति अपने पापों से मुक्त होकर पवित्र जीवन जी सकता है और साथ ही अपने पितरों को भी मोक्ष की ओर अग्रसर कर सकता है। इसीलिए कहा गया है –

इंदिरा एकादशी का व्रत करने से पितृ प्रसन्न होते हैं, भगवान विष्णु कृपा करते हैं और जीवन में सुख-शांति एवं समृद्धि का आगमन होता है।”

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