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अगरबत्ती...!!!

वह…! फुटपाथ पर मुझसे मुलाकात हुई… भीख मांगते हुए…! उम्र करीब 70 साल… देखने में काला और शरीर पर आधा इंच मैल…

 

अगर मैं तीन फीट दूर भी चला जाऊं तो मुझे एक अजीब, बहुत गंदी गंध आती है…

शरीर पर ‘नहीं’ कहने के लिए एक मल्की साड़ी… (मल्की शब्द बहुत थीटा है)

इसे साड़ी क्यों कहें? बुनियादी तौर पर सवाल यही है…वह वस्तुतः साढ़े पांच फीट का कपड़ा अपने शरीर पर लपेटती है…जिसे ढंकना होता है वह उजागर हो जाता है…और दुर्भाग्य से वह नहीं जानती…इसे महसूस नहीं करती। ..आंखों की किसी समस्या के कारण वह देख नहीं पाती…! पूरा आलम ये है कि इस दादी के पास कोई न जाए… कोई इनके पास न बैठे…! फिर भी मैं जाता हूं, बैठता हूं.. उसके पास..उसके भरे-भरे गालों से एक-एक शब्द निकलता है… ठीक वैसे ही जैसे शंकर की पिंडी पर लटका हुआ अभिषेक का कलश बूंद-बूंद करके उस पिंडी पर अभिषेक करना चाहिए…! अत्यंत शुद्ध एवं सात्विक! वह भिखारी से कहती है… बेबी, अगर तुम मुझे कुछ दे सकते हो, तो अपने आप को परेशानी में मत डालो और मुझे कुछ भी मत दो… पहले तुम ले लो, खुश रहो, जो भी बचा है और अगर तुम मुझे देना चाहते हो तो ही देना। दे दो… अन्यथा मत दो!गोलियाँ माँगते हुए कहती है, डॉक्टर साहब, गोलियाँ तभी देना जब मेरे लिए देना संभव हो, अरे, कई लोग हैं जिनको मुझसे भी ज़्यादा दिक्कत है, पहले वो दे दो… मैं क्या करूँगी, बस मुझे सहन करो। ..! दूसरों के बारे में सोचने के उसके रवैये के कारण मैं उसकी ओर आकर्षित हुआ… उसके पास बैठकर उसकी बातें सुनना… उसकी बातों से इतनी खुशबू आने लगती है कि शरीर से आने वाली दुर्गंध का अहसास ही नहीं होता…वह पास बैठ कर पूछती है, एक श्लोक बोलूं…? और आपके उत्तर की प्रतीक्षा किये बिना, यह “सार्वभौमिक प्रार्थना” कहना शुरू कर देता है… सभी को सद्बुद्धि दे… स्वास्थ्य दे… और अपना मधुर नाम सदैव मुँह में रहने दे…! इस दुनिया में जिसके पास सब कुछ है…वो “लाचार” है क्योंकि वो कुछ और पाना चाहता है…और ये दादी जिसने सब कुछ खो दिया है वो दूसरों को खुश रखने के लिए “प्रार्थना” कर रही है…! अपने लिए मांगना मजबूरी बन गई है… और दूसरों के लिए मांगना इबादत बन गई है… इन दादी के कारण ही मुझे दोनों में अंतर समझ आया…!यह दादी, एक मैनेजर की पत्नी… के पास रस्तापेट में एक पुराना बंगला था, जिसमें बहुत सारी संपत्ति और कुलीनता थी… सब कुछ था… लेकिन घर में कोई बच्चा नहीं था… दो बार बच्चे की गर्भ में ही मौत हो गई …वह बच गई… तीसरी बार डॉक्टरों ने कहा… अब तुम बच्चा नहीं चाहती… गोद ले लो… इतने में मेज़बान चले गए… जितने भी रिश्तेदार थे इतनी देर से “दूर” “करीब” आ गया… ईंट उठा ली गई… सारे “रिश्तेदार” एक “बैग” लेकर आये… उसने इस बैग के साथ सबकुछ कैरी किया… अपनी आंखों के नीचे..पहले जितने भी “रिश्ते” थे वो में चले गए… और महल का यह कुलीन मालिक अब फुटपाथ की रानी के रूप में रहता है… पिछले 15 वर्षों से… सार्वभौमिक प्रार्थना गाओ… सभी को खुश रखो…! तन पर कपड़ा न हो तब भी…हम गाते हैं…सबका कल्याण करो…! आरत प्रार्थना करता है चाहे सब लूटें…. सबका भला करो… कल्याण करो….सुनने वाले को पता नहीं चलता कि “वह” उसकी बात सुन रहा है या नहीं… फिर भी गोब-या अपने गालों से मुस्कुरा रहा है, ऊपर देख रहा है और आत्मविश्वास से कह रहा है और आपका प्यारा नाम उसके मुंह में हमेशा बना रहे…! मैंने एक बार मौसी से कहा- मौसी, तुम दिल से तो बहुत खूबसूरत हो लेकिन इतनी गन्दी क्यों रहती हो? वो बोली… गंदा…? मैं कहाँ गंदा हूँ…??? ओह यह गंध…? मैंने निगलते हुए कहा… वो बोली- क्या तुम्हें इससे गंदी गंध आती है बेबी?तुम अभी छोटे हो बेबी…ओह, सड़क पर इस गंदी गंध ने मुझे बचा लिया…! उसने मुस्कुराते हुए कहा…!!!मेरा मतलब है…? वह कान के पास आकर बोली… क्या आप जानते हैं कपूर जलाएंगे तो कीड़े आसपास नहीं आएंगे… मच्छर अगरबत्ती जलाएंगे तो मच्छर आसपास आकर नहीं काटेंगे… ये गंदगी नहीं है बेबी, ये मेरा कपूर है… मेरी अगरबत्ती है… इस कपूर और इस अगरबत्ती की वजह से समाज के कीड़े-मकोड़े और मच्छर भी मेरी हवा में नहीं आते…बापरे…यह विचार सुन कर मैं कांप उठा…. वह जानबूझकर सिर्फ शील की रक्षा के लिए गंदगी में रहती है… हम किस तरह के समाज में रह रहे हैं? यहां खुद को बचाने के लिए पहले खुद को मिट्टी में लोटना पड़ता है…बदबू को अपना खोल बनाना पड़ता है…इस बूढ़ी औरत ने खुद को न्यू-यम से बचाने के लिए अपने शरीर पर मिट्टी लगा ली थी… उसे जानबूझकर दुर्गंध आती थी… अजीब बात है कि कैसे… गंदगी और बदबू से किसी की पवित्रता बरकरार रहती थी।मैंने मौली मनोमन को प्रणाम किया… अब मैं सोचने लगा कि उसके शरीर पर लगी एक इंच गंदगी उसके शरीर के तीन हिस्सों पर फैली हुई पवित्र राख है… और उसकी दुर्गंध सुगंधित कपार की गंध है…!! !

मैं 27 तारीख को इन दादी को आंखों के ऑपरेशन के लिए ले गया था…उसे देखकर अस्पताल में बैठे बाकी सभी लोगों ने अपनी नाक सिकोड़ लीं। यह सही है, कोई नहीं जानता था कि यह कीचड़ में खिलने वाला कमल है… दूसरों के लिए यह गंध थी… और मेरे लिए सुगंध… सन्दर्भ एक झटके में कैसे बदल जाते हैं, है न?बेबी शी शू की “माँ” से कभी “बदबू” नहीं आती… भले ही बदबू आती हो… जब आसपास के किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है, तो शव के पास रखी अगरबत्ती की गंध अप्रिय होती है। गंध और सुगंध हमारे मन के विचार हैं… सामने वाले के प्रति आपकी भावना महत्वपूर्ण है… यदि आपकी भावना अच्छी है, तो खुशबू ही खुशबू है, अन्यथा यह सिर्फ गंदी गंध है…!!!मेरी नज़र दादी की आधी पहनी हुई साड़ी पर पड़ी… और चुपचाप हमारी भौंहों की ओर देखा… भुवड़ ताई ने भुवड़ बाबा को उसी मूक दृष्टि से देखा… किसी ने किसी से कुछ नहीं कहा…बाबा तुरंत उठे और बाहर चले गए… ठीक 20 मिनट बाद वापस आए… दो साड़ियाँ, एक गाउन, मोती साबुन, बॉडी स्क्रब और तौलिया के साथ…! मैं भुवड़ ताई से यही कहना चाहता था…बिना बोले भी, वे जानते थे…कभी-कभी कितनी गूंगी आंखें इतनी वाक्पटु हो जाती हैं…? फिर भुवद ताई इस मौली को अस्पताल के बाथरूम में ले गईं… दो घंटे तक नहलाया जैसे कि बच्चे को रगड़ रही हों…भुवद ताई इस बार मुझे एक लड़की की तरह महसूस हुआ… बिना किसी गंध के…! जो यह समझ लेता है कि जो कुछ है वह सुगंध है और उस सुगंध का अनुभव करता है… और वह एक छोटे से मासूम बच्चे की दादी बन गईं… जब वे दोनों बाथरूम से बाहर आये तो सबसे खुशबूदार खुशबू मेरी आंटी के हाथों की थी…. वो दुनिया के सबसे खूबसूरत हाथ थे… और बहुत खुशबूदार….!खूबसूरत दादी का नया लुक देख मैं हैरान रह गया… 27 तारीख को अजी की आंख का ऑपरेशन भी हो गया… अब उन्हें दिखना शुरू हो जाएगा! ऑपरेशन के बाद मैंने उसके हाथ पकड़कर कहा… अजी… आज हमने आपके शरीर से “राख” और “तांबे की गंध” दूर कर दी है… आपने ये सीपियां हटा दी हैं… लेकिन चिंता मत करो। ..आज से आपको ऐसे कवचकुंडलों की जरूरत नहीं पड़ेगी….अर्थ? दादी ने कहा… मैंने कहा…. अब मैं तुम्हें ऐसी जगह व्यवस्थित करने जा रहा हूं जहां तुम्हारा सम्मान किया जाएगा… अब से तुम गटर में फुटपाथ पर नहीं रहोगे… मैं तुम्हें एक बेहतर जगह पर रखूंगा….! लेकिन आप मेरे लिए ऐसा क्यों कर रहे हैं? तीनों ने मासूमियत से पूछा…मैंने ये बात बड़ी मासूमियत से कही… आपने मुझसे कहा ना? आपका शिशु गर्भ में दो बार गुजर चुका है।ओह, यह कभी ख़त्म नहीं हुआ…. डॉक्टर ने आपसे झूठ बोला… मैं आपका बच्चा हूँ…!!!मेरा फिर से जन्म हुआ है…!!! उसकी आँखें चमक उठीं….मेरे गाल पर हाथ फिराते हुए वो खुशी से मुस्कुराई…श्लोक बोला…?हमेशा की तरह उत्तर की आशा किए बिना… तीनों ने अपनी आँखें बंद कर लीं… मेरे हाथ पकड़ लिए…हाथों में रखकर अपने हाथ भी जोड़ लिए… …और शुरू हुई सार्वभौमिक प्रार्थना….मेरे हाथ लेकर….सबको सद्बुद्धि दो…सबका भला करो, सबको सुख, संपत्ति, सुख, कल्याण, सुरक्षा दो…और अपना मधुर नाम सदैव मुख में रहने दो….! मैं उसे एकटक देख रहा था…. मुझे उस वक्त ऐसा लग रहा था कि वो कोई सुगंधित धूप है जो खुद जलकर दूसरों को खुशबू दे रही है….!!! और सारा आकाश अत्यंत सुगंधित हो गया…!!!

 

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