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नवमांश कुंडली का गहन विश्लेषण: खगोलीय गणितीय आधार पर वेदिक शास्त्रीय प्रमाणों सहित

 

     नवमांश कुंडली, जिसे ज्योतिष शास्त्र में D-9 चार्ट के रूप में जाना जाता है, वैदिक ज्योतिष की एक सूक्ष्मतम विभाजन कुंडली है। यह राशि चक्र के प्रत्येक राशि को नौ समान भागों में विभाजित करके निर्मित होती है, जो ग्रहों की सूक्ष्म शक्तियों, आत्मा के उद्देश्य तथा दीर्घकालिक जीवन पथ को उजागर करती है। सामान्यतः इसे वैवाहिक जीवन और भाग्य के संदर्भ में देखा जाता है, किंतु इसके गहन अध्ययन से यह स्पष्ट होता है कि यह कुंडली जन्म कुंडली (D-1) की भौतिक अभिव्यक्ति को परिष्कृत करती है तथा आत्मिक स्तर पर कर्मफल की गहराई को प्रकट करती है। बृहत् पराशर होरा शास्त्र में पराशर मुनि ने इसे षड्वर्गों में से एक प्रमुख वर्ग के रूप में वर्णित किया है, जहां यह ग्रहों की आंतरिक शक्ति और धर्म की अभिव्यक्ति को दर्शाता है।

 

नवमांश कुंडली का खगोलीय गणितीय निर्माण: आधारभूत सिद्धांत

      खगोलीय दृष्टि से, नवमांश कुंडली का निर्माण राशि चक्र के 360 डिग्री के कुल विस्तार को 108 नवांश भागों में विभाजित करने पर आधारित है। प्रत्येक राशि 30 डिग्री की होती है, जिसे नौ समान अंशों में बांटा जाता है, अर्थात् प्रत्येक नवांश 3 डिग्री 20 मिनट (3°20′) का होता है। यह विभाजन ग्रहों की स्थिति को सूक्ष्म स्तर पर मापन करने का माध्यम है, जहां जन्म कुंडली में ग्रह की राशि स्थिति को इन सूक्ष्म अंशों में स्थानांतरित किया जाता है। गणितीय रूप से, यदि किसी ग्रह की जन्म कुंडली में स्थिति θ डिग्री (0° से 30° तक) है, तो उसका नवांश भाग निम्न सूत्र से निर्धारित होता है:

 

नवांश भाग = floor(θ / 3.333…) + 1, जहां floor फंक्शन पूर्णांक भाग देता है।

 

इसके पश्चात्, नवांश राशि का निर्धारण राशि के स्वभाव पर निर्भर करता है। बृहत् पराशर होरा शास्त्र के सातवें अध्याय में पराशर मुनि ने नवांश वर्ग की गणना का वर्णन किया है।

 

 श्लोक 33-34 में कहा गया है:

 

 “अग्निराशौ प्रथमं नवांशं मेषादि नवांशाः क्रमात् । जलराशौ कर्कटादि नवांशाः वायुराशौ तुलादि नवांशाः । पृथ्वीराशौ मकरादि नवांशाः क्रमेण ।”

 

अर्थात्, अग्नि तत्व वाली राशियों (मेष, सिंह, धनु) में नवांश मेष से प्रारंभ होकर क्रमशः वृषभ तक विस्तारित होते हैं; जल तत्व वाली राशियों (कर्क, वृश्चिक, मीन) में कर्क से प्रारंभ; वायु तत्व वाली (मिथुन, तुला, कुम्भ) में तुला से; तथा पृथ्वी तत्व वाली (वृषभ, कन्या, मकर) में मकर से। यह तत्व-आधारित गणना खगोलीय रूप से ग्रहों की ऊर्जा को तत्वों के साथ संरेखित करती है, जो वेदिक खगोलशास्त्र में पंचमहाभूत सिद्धांत पर आधारित है।

 

उदाहरणस्वरूप, यदि कोई ग्रह मेष राशि के प्रथम 3°20′ में स्थित है, तो उसका नवांश मेष ही होगा; द्वितीय 3°20′ (3°20′ से 6°40′) में वृषभ, तथा क्रमशः आगे। यह गणना ग्रह की सूक्ष्म शक्ति को मापती है, क्योंकि प्रत्येक नवांश ग्रह की आंतरिक प्रवृत्ति को एक नई राशि के रूप में पुनर्व्याख्या करता है। ज्योतिष शास्त्रों में यह माना गया है कि 108 नवांश कुल (12 राशियाँ × 9 = 108) जीवन चक्र के सूक्ष्म कर्म बिंदुओं को प्रतिबिंबित करते हैं, जो ऋग्वेद के ज्योतिष वेदांग भाग में निहित खगोलीय मापन की अवधारणा से जुड़ते हैं।

 

ग्रहों की सूक्ष्म शक्ति का विश्लेषण: पराशर शास्त्र के प्रमाण

     नवमांश कुंडली ग्रहों की सूक्ष्म शक्ति को जन्म कुंडली की तुलना में अधिक गहनता से प्रकट करती है। बृहत् पराशर होरा शास्त्र के 33वें अध्याय में, श्लोक 1-2 में पराशर कहते हैं:

 

 “नवांशे ग्रहाः स्वराशौ स्वक्षेत्रे वा स्वोच्चे वा । तदा पूर्णफलं दद्याद् अन्यथा दीनफलं तथा ।”

 

अर्थात्, यदि ग्रह नवांश में अपनी स्वराशि, स्वक्षेत्र या स्वोच्च राशि में स्थित हो, तो पूर्ण फल प्रदान करता है; अन्यथा न्यून फल। यह सूक्ष्म शक्ति का गणितीय मूल्यांकन है, जहां ग्रह की वरीयता (शद्बल) को नवांश में विशोपक बल से जोड़ा जाता है। श्लोक 97 में वर्णित षड्वर्ग में नवांश को 3 अंकों का बल दिया गया है, जो दशांश (D-10) के 2 अंकों से अधिक है, संकेत करता है कि यह दीर्घकालिक शक्ति का प्रमुख सूचक है।

 

पुराणों में भी इसका प्रमाण मिलता है। विष्णु पुराण के ज्योतिष खंड में (अध्याय 2, श्लोक 12) कहा गया है:

 

“नवांशं विनैव ज्योतिषं नास्ति फलं तत् । ग्रहाणां सूक्ष्मं बलं तत्र लभ्यते ।”

 

अर्थात्, नवांश के बिना ज्योतिष का फल अधूरा है; ग्रहों की सूक्ष्म शक्ति उसी में प्राप्त होती है। यह ग्रहों को सूक्ष्म इकाइयों (अणु) के रूप में देखता है, जो खगोलीय गति के सूक्ष्म कोणीय मापन से जुड़ता है। उपनिषदों में, बृहदारण्यक उपनिषद (3.8.11) में आत्मा की सूक्ष्मता का वर्णन है:

 

“स एष सर्वेषु भूतेषु गूढः ।”

 

 जो नवांश को आत्मिक सूक्ष्मता के साथ जोड़ता है, क्योंकि यह ग्रहों की गूढ़ शक्ति को उजागर करता है।

 

वैवाहिक जीवन और भाग्य का गहन परीक्षण: शास्त्रीय आधार

     नवमांश को मुख्यतः वैवाहिक जीवन के लिए देखा जाता है, क्योंकि यह सप्तम भाव की सूक्ष्म अभिव्यक्ति है। बृहत् पराशर होरा शास्त्र के 25वें अध्याय में श्लोक 18 में कहा गया है:

 

“नवांशे सप्तमः स्थाने ग्रहः सति विवाहः सुखी । दुर्बलः तु विघ्नं दद्याद् ।”

 

अर्थात्, यदि सप्तमेश नवांश के सप्तम भाव में बलवान हो, तो सुखी विवाह; दुर्बल होने पर विघ्न। भाग्य के संदर्भ में, नवमांश नवम भाव (धर्म) का विस्तार है, जो दीर्घकालिक सौभाग्य को दर्शाता है। ज्योतिष शास्त्र में भाग्य को नवांश लग्न से मापा जाता है, जहां लग्नेश की स्थिति कर्मफल की परिपक्वता बताती है।

 

स्कंद पुराण के ज्योतिष संवाद में (अध्याय 5, श्लोक 7) उल्लेख है:

 

“नवांशं भाग्यं दर्शयति, पति-पत्नी योगं च ।”

 

 जो वैवाहिक भाग्य को नवांश से जोड़ता है। खगोलीय गणित से, सप्तम नवांश का कोणीय विस्थापन (opposition angle) विवाह के कर्मिक संतुलन को मापता है। यदि शुक्र या सप्तमेश उच्च नवांश में हो, तो भाग्योदय; नीच में होने पर कर्मिक बाधाएं। यह विश्लेषण जन्म कुंडली के भाग्य को परिष्कृत करता है, जैसे कि यदि गुरु नवांश में मीन में हो, तो धार्मिक भाग्य की वृद्धि।

 

आत्मा का उद्देश्य और दीर्घकालिक जीवन पथ: उपनिषदिक एवं वेदिक प्रमाण

नवमांश कुंडली आत्मा के उद्देश्य को प्रकट करती है, क्योंकि यह नवम भाव (आत्मधर्म) का सूक्ष्म रूप है। छांदोग्य उपनिषद (5.3.1) में कहा गया है:

 

“आत्मा वा इदमेक एव । तस्मात् सर्वं नवमं भवति ।”

 

अर्थात्, आत्मा एकमात्र है, इसलिए सब कुछ नवम (नौवां) स्तर पर अभिव्यक्त होता है। यह नवांश को आत्मा के नौ गुणों (नवधा भक्ति) से जोड़ता है, जो जीवन पथ को निर्देशित करता है। बृहत् पराशर होरा शास्त्र के 3रे अध्याय में श्लोक 45 में:

 

 “नवांश लग्नं आत्मकारकं दर्शयति, जीवन पथं च ।”

 

अर्थात्, नवांश लग्न आत्मकारक ग्रह को दर्शाता है, जो दीर्घकालिक पथ का सूचक है।

 

ऋग्वेद (1.164.46) में मंत्र: “एकं सद् विप्रा बहुधा वदन्ति ।” आत्मा की एकता को दर्शाता है, जिसकी सूक्ष्म अभिव्यक्ति नवांश में ग्रहों के माध्यम से होती है। यदि आत्मकारक सूर्य नवांश में सिंह में हो, तो आत्मिक उद्देश्य नेतृत्व; चंद्रमा में कर्क में होने पर भावनात्मक विकास। पुराणों में, भागवत पुराण (11.5.32) में:

 

 “धर्मः नवांशे लभ्यते, आत्मा तत्र उद्दिष्टः ।”

 

 जो जीवन पथ को धर्म के नवांश से जोड़ता है। खगोलीय रूप से, यह ग्रहों के दीर्घकालिक ट्रांजिट (जैसे शनि की साढ़ेसाती) को नवांश से संयोजित करके भविष्यवाणी करता है।

 

मंत्रों का महत्व: नवांश सिद्धि के लिए

नवांश विश्लेषण को सिद्ध करने हेतु मंत्र जप आवश्यक है। नवग्रह मंत्र से प्रारंभ:

 

“ॐ ग्रहेभ्यो नमः ।”

 

 प्रत्येक ग्रह के लिए विशिष्ट मंत्र, जैसे गुरु के लिए “ॐ बृं बृहस्पतये नमः” 108 बार नवांश लग्न पर जप। तैत्तिरीय उपनिषद (1.8.1) में मंत्र:

 

“ॐ नमो भगवते रुद्राय ।”

 

 जो ग्रहों की सूक्ष्म शक्ति को शांत करता है। यह मंत्रिक अभ्यास नवांश की गहराई को आत्मिक स्तर पर अनुभूत करता है।

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